Thursday, 1 April 2021

विनोवा भावे की गांधी जी को श्रद्धांजलि

"दुनिया में आज हिंदू धर्म का नाम यदि किसी ने उज्ज्वल रखा है तो वह गांधीजी ने ही रखा है। उन्होंने खुद ही कहा था कि ‘हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए किसी मनुष्य को नियुक्त करने की जरूरत यदि भगवान को महसूस हुई तो इस काम के लिए वह मुझे ही नियुक्त करेगा।’ इतना आत्मविश्वास उनमें था।

उन्हें जो सत्य मालूम होता था, वह साफ-सीधे कह देते थे। बड़े लोग अपनी रक्षा के लिए बॉडी गार्ड यानी देह-रक्षक रखते हैं। गांधीजी ने ऐसे देह-रक्षक कभी नहीं रखे। देह को वे तुच्छ समझते थे। मृत्यु के पहले ही वे मरकर जी रहे थे। निर्भयता उनका व्रत था। जहां किसी फौज को भी जाने की हिम्मत न हो, वहां अकेले जाने की उनकी तैयारी थी।

उनकी इस तरह की निर्भीकतापूर्ण वृत्ति रही। और उनकी मृत्यु भी किस अवस्था में हुई! वे प्रार्थना की तैयारी में थे। यानी उस समय उनके चित्त में भगवान के सिवा दूसरा कोई विचार नहीं था। उनका सारा जीवन ही आपने सेवामय तथा परोपकारमय देखा है। परंतु फिर भी प्रार्थना की भावना और प्रार्थना का समय विशेष पवित्र कहना चाहिए।

ऐसे प्रार्थना के समय ही देह में से मुक्त होने के लिए मानो भगवान ने आदमी भेजा। अपना काम करते हुए मृत्यु हुई। इस विषय में उनके दिल का आनंद और निमित्त मात्र बने हुए गुनहगार के प्रति दयाभाव, इस तरह का दोहरा भाव उनके चेहरे पर मृत्यु के समय था, ऐसा सरदार पटेल को दिखाई दिया।

उन्होंने ही हमें सत्याग्रह सिखाया। खुद आपत्तियां झेलकर सामने वालों को जरा भी खतरा न पहुंचे, ऐसी शिक्षा उन्होंने हमें दी। ऐसा पुरुष देह छोड़कर जाता है, तब वह रोने का प्रसंग नहीं होता। मां हमें छोड़कर जाती है, उस समय जैसा लगता है, वैसा गांधीजी के मरने से लगेगा जरूर, लेकिन उससे हममें उदासी नहीं आनी चाहिए।"

31 जनवरी, 1948 को गांधीजी को दी गई अपनी श्रद्धांजलि में विनोबा

( विजय शंकर सिंह )

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