लीला नायडू पर राज कपूर की पहली निगाह शम्मी कपूर की शादी की दावत में पड़ी थी. लीला के पिता रामैय्या नायडू देश के नामी न्यूक्लियर साइंटिस्ट थे जबकि माता मार्था मांगे स्विस फ्रेंच मूल की पत्रकार-इंडोलोजिस्ट. इस वजह से उसने अपने शुरुआती जीवन का बड़ा वक्फा यूरोप में बिताया था और संसार भर के बड़े नामों से उसकी मुलाक़ात थी. अल्फ्रेड हिचकॉक, बर्गमैन, ज्यां रेनुआ और फ्रांसुआ त्रुफो जैसे नामी लोगों से मिल चुकने के बाद वह एक व्यापक विश्वदृष्टि से संपन्न हो चुकी थी. बेइंतहा खूबसूरत तो वह थी ही.
पहली मुलाक़ात के कुछ दिन बाद राज कपूर ने लीला को मिलने का न्यौता भेजा. वह पिता को साथ लेकर गयी. राज कपूर ने बताया कि वे मुल्कराज आनंद की किताब ‘द गॉडेस एंड द ट्रैक्टर’ पर फिल्म बनाने की मंशा रखते हैं और लीला को लीड रोल में लेना चाहते हैं. इस पर लीला ने मासूमियत के साथ राज कपूर के कहा कि इस रोल के लिए वे कुछ दिन गाँव में रह कर तैयारी करना चाहेंगी. राज कपूर थोड़ा हैरान होकर कहने लगे कि गाँव में गर्मी होगी और मच्छर काटेंगे. लीला ने विनम्रतापूर्वक कहा कि ग्रामीण स्त्री का रोल करने के लिए गाँव में रह कर ही तैयारी की जा सकती है. राज कपूर ने एक असहाय निगाह डॉ. नायडू पर डाली और कहा – “आप तो कतई नहीं चाहेंगे न कि आपकी बेटी एक रोल के चक्कर में महीना भर गाँव जा कर रहे?” डॉ. नायडू ने असमंजस में कहा कि एक बार कोशिश कर लेने में क्या हर्ज है.
मामला वहीं फंसा रह गया.
छः महीने बाद लीला को फिर से आर.के. स्टूडियो से बुलावा आया. सूचना-प्रसारण मंत्रालय में काम करने वाली लीला की पारिवारिक मित्र ने उसे पहले से बता रखा था कि राज कपूर एक अच्छे निर्देशक तो हैं लेकिन उन्हें अपनी फिल्मों की हर लीड हीरोइन के साथ इश्क हो जाने की लाइलाज बीमारी है.
स्टूडियो पहुँचते ही लीला को सारी बात समझ में आ गई. स्क्रीन-टेस्ट के तौर पर लीला को ड्रेस-ट्रायल देना था और शूटिंग के सारे काम की देखरेख उनकी हालिया हीरोइन नरगिस कर रही थीं. लीला को जिन कपड़ों को पहन कर आने को कहा जा रहा था उनमें से कुछ फिल्म की ‘गॉडेस’ के लिहाज से ज्यादा ही तंग और भड़कीले थे लेकिन लीला ने वही किया जैसा उससे कहा जा रहा था. आखिरकार उसे पहनने के लिए साटिन का एक पैंट-सूट दिया गया.
लीला से अब नहीं रहा गया. उसने पूछा – “गाँव में रहने वाली औरत ये सब तो नहीं पहनेगी न!”
राज कपूर समझ गए उनका वास्ता एक समझदार औरत से पड़ा है. झेंपते हुए बोले – “दरअसल मैं आपको एक साथ चार फिल्मों के लिए साइन करने की सोच रहा हूँ.”
राज कपूर के मुताबिक़ लीला को एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करना था जिसके बाद उन्हें आर के स्टूडियो की नई खोज के रूप में प्रोजेक्ट किया जाना था. लीला ने साटिन का एक पैंट-सूट नहीं पहना और राज कपूर से सोचने का समय माँगा.
बंबई फिल्म इंडस्ट्री में लीला नायडू अपने तरह की अकेली औरत थी. असाधारण प्रतिभा की स्वामिनी अभिनेत्री लीला नायडू ने चुनी हुई हिन्दी फिल्मों में अभिनय किया, डॉक्युमेंट्री फ़िल्में बनाईं, फ्रेंच नाटकों के अंगरेजी तर्जुमे किये, 1954 का मिस इंडिया खिताब जीता, ‘सोसायटी’ और ‘कीनोट’ जैसी पत्रिकाओं का सम्पादन किया, प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के लिए एक्सक्लूसिव दुभाषिये का काम किया, 1955 में ‘वोग’ ने उन्हें दुनिया की सबसे सुन्दर दस स्त्रियों में चुना, साल्वाडोर डाली ने उनका पोर्ट्रेट बनाया और एक हॉलीवुड फिल्म का वह रोल करने से इनकार कर दिया जिसके लिए दुनिया भर की अभिनेत्रियाँ लाइन में लगी थीं.
करियर की बिलकुल शुरुआत में राज कपूर की मंदाकिनी बन जाना उसके लिए सबसे आसान होता लेकिन उसे अपने आधुनिक, चेतनासंपन्न और आजाद होने का पूरा अहसास था और जीवन की विराटता का भी.
बंबई का सिनेमा लीला नायडू जैसी स्वतंत्र और अपार प्रतिभावान अभिनेत्री के साथ न्याय करने लायक तब भी नहीं था अब भी नहीं है.
अपनी बायोग्राफी में लीला नायडू बताती हैं कि उस दिन आर. के स्टूडियो से घर लौटकर उन्होंने राज कपूर को एक नोट लिखकर बताया कि वे उनके साथ काम करने में असमर्थ हैं. उनका दाखिला ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में हो गया था. उन्हें वहां जाने की तैयारी में करनी थी.
अशोक पांडेय
( Ashok Pandey )
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