दोस्तोवस्की ने एक छोटी—सी कथा लिखी है। लिखा है कि जीसस के मरने के अठारह सौ वर्ष बाद जीसस को खयाल आया कि मैं पहले जो गया था जमीन पर, तो बेसमय पहुंच गया था। वह ठीक वक्त न था, लोग तैयार न थे और मुझे मानने वाला कोई भी न था। मैं अकेला ही पहुंच गया था। और इसलिए मेरी दुर्दशा हुई; और इसलिए लोग मुझे स्वीकार भी न कर पाए, समझ भी न पाए। और लोगों ने मुझे सूली दी, क्योंकि लोग मुझे पहचान ही न सके। अब ठीक वक्त है। अगर मैं अब वापस जमीन पर जाऊं, तो आधी जमीन तो ईसाइयत के हाथ में है। हर गांव में मेरा मंदिर है। जगह— जगह मेरे पुजारी हैं। जगह—जगह मेरे नाम पर घंटी बजती है, और जगह—जगह मेरे नाम पर मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। आधी जमीन मुझे स्वीकार करती है। अब ठीक वक्त है, मैं जाऊं।
और जीसस यह सोचकर एक रविवार की सुबह बैथलहम, उनके जन्म के गांव में वापस उतरे। सुबह है। रविवार का दिन है। लोग चर्च से बाहर आ रहे हैं। प्रार्थना पूरी हो गई है। और जीसस एक वृक्ष के नीचे खड़े हो गए हैं। उन्होंने सोचा है कि आज वह अपनी तरफ से न कहेंगे कि मैं जीसस क्राइस्ट हूं। क्योंकि पहले एक दफा कहा था, बहुत चिल्लाकर कहा था कि मैं जीसस क्राइस्ट हूं; मैं ईश्वर का पुत्र हूं मैं तुम्हारे लिए संदेश लेकर आया परम जीवन का, और जो मुझे समझ लेगा, वह मुक्त हो जाएगा, क्योंकि सत्य मुक्त कर देता है। लेकिन इस बार, अब तो वे लोग मुझे वैसे ही पहचान लेंगे, घर—घर में तस्वीर है। अब तो कोई जरूरत न होगी मुझे घोषणा करने की। वे चुपचाप खड़े रहे।
लोगों ने पहचाना जरूर, लेकिन गलत ढंग से पहचाना। भीड़ इकट्ठी हो गई, और लोग हंसने लगे, और मजाक करने लगे। और किसी ने कहा कि बिलकुल बन—ठन कर खड़े हो! बिलकुल जीसस जैसे ही मालूम पड़ते हो! खूब स्वांग रचा है! अभिनेता कुशल हो, जरा भी भूल—चूक निकालनी मुश्किल है!
जीसस को कहना ही पड़ा कि तुम गलती कर रहे हो। मैं कोई अभिनय नहीं कर रहा हूं। मैं वही जीसस क्राइस्ट हूं जिसकी तुम पूजा करके बाहर आ रहे हो। तो लोग हंसने लगे और उन्होंने कहा कि जल्दी से तुम यहां से भाग जाओ, इसके पहले कि मंदिर का प्रधान पुरोहित बाहर निकले। नहीं तो तुम मुसीबत में पड़ोगे। और रविवार का दिन है, चर्च में बहुत लोग आए हुए हैं, व्यर्थ तुम्हारी मारपीट भी हो जा सकती है। तुम भाग जाओ।
जीसस ने कहा, क्या कहते हो, ईसाई होकर! पहली दफा जब मैं आया था, तो यहूदियों के बीच में आया था, कोई ईसाई न था; तो मुझे कोई पहचान न सका। यह स्वाभाविक था। लेकिन तुम भी मुझे नहीं पहचान पा रहे हो!
और तभी पादरी आ गया। चर्च के बाहर और लोग आ गए और बाजार में भीड़ लग गई। जीसस पर जो लोग हंस रहे थे, वे जीसस के पादरी के चरणों में झुक—झुक कर नमस्कार करने लगे! लोग जमीन पर लेट गए। बड़ा पादरी! बड़ा पुरोहित मंदिर के बाहर आया है!
जीसस बहुत चकित हुए। फिर भी जीसस के मन में एक आशा थी कि लोग भला न पहचान पाएं, लेकिन मेरा पुजारी तो पहचान ही लेगा! लेकिन पादरी के जब लोग चरण छू चुके, और उसने आंखें ऊपर उठाकर देखा, तो कहा कि बदमाश को पकड़ो और नीचे उतारो! यह कौन शरारती आदमी है? जीसस एक बार आ चुके, और अब दुबारा आने का कोई सवाल नहीं है।
लोगों ने जीसस को पकड़ लिया। जीसस को अठारह सौ साल पहले का खयाल आया। ठीक ऐसे ही वे तब भी पकडे गए थे। लेकिन तब पराए लोग थे और तब समझ में आता था। लेकिन अब अपने ही लोग पकडेंगे, यह भरोसे के बाहर था। और जीसस को जाकर चर्च की एक कोठरी में ताला लगाकर बंद कर दिया गया। आधी रात किसी ने दरवाजा खोला, कोई छोटी—सी लालटेन को लेकर भीतर प्रविष्ट हुआ। जीसस ने उस अंधेरे में थोड़े से प्रकाश में देखा, पादरी है, वही पुरोहित!
उसने लालटेन एक तरफ रखी, दरवाजा बंद करके ताला लगाया। फिर जीसस के चरणों में सिर रखा और कहा कि मैं पहचान गया था। लेकिन बाजार में मैं नहीं पहचान सकता हूं। तुम हो पुराने उपद्रवी! हमने अठारह सौ साल में किसी तरह व्यवसाय ठीक से जमाया है। अब सब ठीक चल रहा है, तुम्हारी कोई जरूरत नहीं; हम तुम्हारा काम कर रहे हैं। तुम हो पुराने उपद्रवी! अगर तुम वापस आए, तो तुम सब अस्तव्यस्त कर दोगे, तुम हो पुराने अराजक। तुम फिर सत्य की बातें कहोगे और सब नियम भ्रष्ट हो जाएंगे। और तुम फिर परम जीवन की बात कहोगे, और लोग स्वच्छंद हो जाएंगे। हमने सब ठीक—ठीक जमा लिया है, अब तुम्हारी कोई भी जरूरत नहीं है। अब तुम्हें कुछ भी करना हो, तो हमारे द्वारा करो। हम तुम्हारे और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं। तो मैं तुम्हें भीड़ में नहीं पहचान सकता हूं। और अगर तुमने ज्यादा गड़बड़ की, तो मुझे वही करना पड़ेगा, जो अठारह सौ साल पहले दूसरे पुरोहितों ने तुम्हारे साथ किया था। हम मजबूर हो जाएंगे तुम्हें सूली पर चढ़ाने को। तुम्हारी मूर्ति की हम पूजा कर सकते हैं और तुम्हारे क्रास को हम गले में डाल सकते हैं, और तुम्हारे लिए बड़े मंदिर बना सकते हैं, और तुम्हारे नाम का गुणगान कर सकते हैं, लेकिन तुम्हारी मौजूदगी खतरनाक है।
जब भी ईश्वर अपने परम ऐश्वर्य में कहीं प्रकट होगा, तब उसकी मौजूदगी खतरनाक हो जाती है। वे जो हमारे क्षुद्र अहंकार हैं, उन क्षुद्र अहंकारों को बड़ी पीड़ा शुरू हो जाती है। जब भी विराट ईश्वर सामने होता है, तो हमारा क्षुद्र अहंकार बेचैन हो जाता है। हम मरे हुए ईश्वर को पूज सकते हैं, जीवित ईश्वर को पहचानना मुश्किल है।
( ओशो )
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