जूनागढ़ के अब्दुल हबीब यूसुफ मारफनी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आज़ाद हिंद फौज के लिए उस समय 1 करोड़ रुपया दान दिया था। देश की आज़ादी के इतिहास में आईएनए के योगदान पर कम चर्चा होती है। न तो यह एक एडवेंचर सरीखा अभियान था, न ही किसी तात्कालिक क्रिया की प्रतिक्रिया। यह सुभाष बाबू की अदम्य इच्छाशक्ति, कूटनीतिक कौशल और सैन्य संगठन कौशल का कमाल था। सुभाष बोस का यह नायाब अभियान, दुनियाभर के आज़ादी के इतिहास में एक अलग तरह का प्रयास माना जाता है। पर 'अ फोरगाँटेन आर्मी' औऱ कुछ आईएनए के योद्धाओं के निजी संस्मरणों को छोड़ कर, आईएनए और नेताजी सुभाष के राजनीतिक जीवन पर, शायद ही कोई गंभीर अकादमिक शोध, हुआ हो।
सुभाष बाबू का सबसे बड़ा योगदान यह रहा है कि धर्मांधता और संप्रदायिकता के बेहद खतरनाक दौर में जब पीने का पानी भी धर्म के आधार पर बंट गया था, तब उन्होंने आईएनए को इस छुतहे रोग से बचाये रखा। जब देश आत्महत्या पर उतारू था, धर्म की पहचान ही जान लेने का मोटिफ बना हुआ था, तब भी, जब नेता जी नहीं थे, उनके महान लड़ाके, इस संक्रमण से बचे रहे।
हम केवल उन्ही तीन योद्धाओं को अधिक जानते हैं, जो आईएनए के साथ साथ आइडिया ऑफ इंडिया के प्रतीक बन कर 1945, 46 में लालकिले में अपना मुकदमा झेल रहे थे। पर जापान, सिंगापुर, मलाया, रंगून से लेकर यूरोप के कुछ देशों में नेताजी के अभियान के साथ जुड़े लोगों के बारे में कम ही जानकारी है। ऐसी ही एक शख्सियत अब्दुल हबीब भी थे।
जब नेताजी के आह्वान पर, अब्दुल हबीब ने, एक करोड़ रुपये, आईएनए के फ़ंड में दान दिया तो, नेताजी ने उन्हें गले से लगा लिया और कहा कि,
"Till the time we have sons of motherland like Abdul Habib Yusuf Marfani,no power on this planet can dare to stop us and keep India enslaved any longer".
" जब तक, हमारे पास, अब्दुल हबीब यूसुफ मारफनी जैसे मातृभूमि के सपूत रहेंगे, तब तक इस ग्रह पर स्थित किसी भी ताकत की हैसियत नहीं होगी वह लम्बे समय तक हमे गुलाम बना कर रख सके।"
सुभाष बाबू ने उन्हें सेवक ए हिन्द मेडल से सम्मानित किया था।
( विजय शंकर सिंह )
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