Tuesday 13 April 2021

कविता - अरक्षितों का गीत-बर्तोल्त ब्रेख़्त (‘द गुड वूमैन ऑफ़ सेज़ुआन‘ नाटक से)

हमारे मुल्क़ में
एक क़ाबिल आदमी
मुहताज़ होता है क़िस्मत का
जब तक मिल न जाये उसे
कोई मज़बूत सरपरस्त
मुश्क़िल ही है कि साबित कर पाये वह
क़ाबिलियत ख़ुद की।
किसी भले आदमी के लिये बचा पाना ख़ुद को
नामुमकिन ही है
और तो और ईश्वर ख़ुद भी
निस्सहाय ही रहते हैं यहां।

आह, आखि़र क्यों नहीं हैं ईश्वर के पास
आत्मरक्षा के ख़ुद के साज़ो-सामान
और हैं तो क्यों नहीं तैनात करते उन्हें वे
बुराई के खि़लाफ़ अपनी मुहिम में
अच्छाई की ताज़पोशी और 
दंगों की रोकथाम के लिये
और इस दुनिया में अमन के हालात लाने के लिये?

आह, आखि़र क्यों नहीं करते ईश्वर 
काम ख़रीद और बिक्री के 
क्यों रोक नहीं लगाते नाइन्साफ़ी पर
क्यों नाश नहीं कर देते वे भुखमरी का
क्यों नहीं दे देते रोटी हरेक शहर को
और खुशहाली हरेक घर के लिये?
आह, आखि़र क्यों नहीं करते ईश्वर 
काम ख़रीद और बिक्री के?

(अंग्रेज़ी से अनुवाद- राजेश चन्द्र, Rajesh Chandra  5 नवम्बर, 2018)

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