Tuesday, 27 April 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 13.

इतिहास के अध्येताओं/विद्यार्थियों की स्थिति अंपायर की होनी चाहिए। वे जब मैदान में होते हैं तो अपने देश के खिलाड़ी के छक्का लगाने पर उत्साहित नहीं दिखते, और न ही आउट होने पर दुखी नज़र आते हैं। 

हालांकि जब खेल भारत-पाकिस्तान के मध्य हो, तो दोनों तरफ के अंपायर भी कहाँ बच पाते हैं? बिशन सिंह बेदी अपनी टीम ही पाकिस्तान से वापस लेकर आ गए थे कि पाकिस्तानी अंपायर बेईमानी कर रहे हैं। उसी तरह भारतीय अंपायर दारा धोतीवाला हमेशा भारत के पक्ष में खड़े नज़र आते।

1965 का युद्ध तीन हफ्ते से कुछ अधिक चला। मगर चला क्यों? किसे क्या मिला? ध्येय क्या था? अगर सेनाएँ एक-दूसरे की सीमा में कुछ किलोमीटर घुस ही गयीं, तो क्या जमीन मिल गयी? पाकिस्तान को क्या कश्मीर मिल गया? भारत को क्या हाजी पीर मिल गया? अगर यह शक्ति-प्रदर्शन भी था तो किसके लिए था? यह दोनों देशों के मध्य लड़ा गया सबसे भीषण युद्ध था, जो अपनी लक्ष्य से भटका हुआ था। इससे पहले के युद्ध में कश्मीर का बँटवारा हुआ, और बाद के युद्ध में बांग्लादेश का निर्माण हुआ, मगर जिस युद्ध की तुलना विश्व-युद्ध से की गयी वह उसी की तरह निरर्थक था। उससे मात्र विनाश हुआ, हासिल लगभग कुछ नहीं। 

असल-उत्तर/खेमकरण के मोर्चे पर टैंक युद्ध की तरह ही फिलौरा में टैंक युद्ध हुआ। वहाँ भारतीय सेंचुरियन टैंकों का मुकाबला पाकिस्तानी पैटन टैंकों से हुआ। अपने शौर्य के कारण आर्देशिर बुरजोरजी तारापुर को परमवीर चक्र मिला। यह भारतीय सेना की विविधता थी जहाँ एक पारसी  मूल और एक मुसलमान को शौर्य के श्रेष्ठतम सम्मान मिले। इतना ही नहीं, डोगराइ के युद्ध में शौर्य के लिए कर्नल डेसमंड हेड को महावीर चक्र मिला जो आइरिश मूल के एंग्लो-इंडियन थे।

नितिन गोखले ने बिंदुवार सिद्ध किया है कि भारत युद्ध कैसे जीता। उन्होंने लिखा है कि सीज़फायर के बाद कुल जमीन भारत को अधिक मिली। कच्छ के मामले में यह बात सही है, मगर वह युद्ध तो पहले ही निपटाया जा चुका था। अन्य स्थानों पर युद्ध के बाद दोनों ही सेनाएँ बहुधा अपनी-अपनी सीमा पर लौट गयी। 

टैंकों की हानि पाकिस्तान की अधिक हुई। पैटन टैंक पाकिस्तान के पास आ तो गयी थी, मगर प्रशिक्षण नहीं मिला था। इनमें कई दलदल में फँस गयी जिन पर बाद में भारत का कब्जा हुआ। भारत ने एक पैटन नगर ही बसा दिया, जहाँ कब्जा किए पैटन टैंक रखे गए। पाकिस्तान ने भी कब्जा किए भारतीय टैंकों को प्रदर्शित किया। 

कश्मीर के अख़नूर में भारतीय सेना को ख़ासी हानि हुई, और सीज़फायर के बाद ही पाकिस्तानी अतिक्रमण खत्म हुआ। पाकिस्तानी सेना के वापस लौटने के बदले भारत को हाजी पीर जैसा मजबूत किला छोड़ना पड़ा। वह ऐसा नासूर बना जो अब तक भारत झेल रहा है। 

वायुसेना को हुई हानियों पर दोनों ही देश भिन्न आंकड़े देते हैं। पाकिस्तान के अनुसार उन्होंने भारत के सौ से अधिक विमान उड़ाए, जबकि भारत के अनुसार पाकिस्तान के सत्तर से अधिक विमान उड़ाए गए। रक्षा मंत्री यशवंतराव चव्हाण के संसद में दिए बयान के अनुसार भारत द्वारा युद्ध छेड़ने का कारण ही पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा आक्रमण था। इसमें कोई शक नहीं कि वायु सेना हानियाँ दोनों ही तरफ़ हुई।

ऑपरेशन जिब्राल्टर असफल होने के बावजूद भारत के इंटेलिजेंस की कमजोरी की तरह देखा गया। पच्चीस-तीस हज़ार पाकिस्तानी आखिर कैसे कश्मीर में घुस गए कि उनके घुसने के बाद ही खबर हुई। वहीं पाकिस्तान में इसे एक बड़ी ग़लती की तरह देखा गया कि कैसे छह-छह महीने के कैम्प में तैयार कश्मीरियों को भारतीय सेना के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया गया। क्या ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो उन मौतों की ज़िम्मेदारी लेंगे?

यह युद्ध भुट्टो का मास्टर-प्लान तो था ही, मगर यह खेल उससे कहीं बड़ा था। संयुक्त राष्ट्र संघ के सेक्रेट्री जनरल पाकिस्तान और भारत में घूम रहे होते हैं, सीमा पर युद्ध चल रहा होता है। युद्ध के दौरान पाकिस्तान चीन की मदद लेता है, और चीन सिक्किम में लड़ाई की धमकी देता है। अमरीका और इंग्लैंड अचानक घोषणा करते हैं कि हम हथियारों की आपूर्ति बंद कर रहे हैं, युद्ध रोक दिया जाए। यानी अब तक हथियार वही भेज रहे थे। इन सबसे परे सोवियत दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों को ताशकंद बुलाता है, और ऐसे काग़ज पर दस्तख़त कराता है, जो उन दोनों के लिए हृदयाघाती होता है। 

अमरीकी गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर इस युद्ध का परिचय कुछ यूँ लिखा है, “इस युद्ध से दोनों देशों की समस्या तो नहीं सुलझी किंतु अमरीका और सोवियत को एशिया में महाशक्ति बनने में मदद मिली।”
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
( Praveen Jha )

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 13. 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/04/12_26.html
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