Monday, 26 April 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 12.


          [चित्र: दलदल में फँसे पैटन टैंक]

युद्ध में हथियार से अधिक यह महत्वपूर्ण है कि हथियार चला कौन रहा है। लाहौर फ्रंट पर जब पाकिस्तानी सेना ने हमला करना शुरू किया, तो भारतीय सेना के पास विकल्प क्या था? आगे बढ़ने से उन्हें रोका गया था, और रास्ते भी बंद थे। वहीं, उन्हें यह खबर मिल रही थी कि अख़नूर (कश्मीर) बच गया है। पाकिस्तानी वायु-सेना लाहौर मोर्चे पर बुरी तरह हमला कर रही थी, इस कारण भारतीय सेना अपनी जगह बदल रही थी। पाकिस्तान के युद्ध इतिहास में मेजर जनरल निरंजन प्रसाद के भागने का खूब चटकारे लेकर चित्रण होता है। 

मेजर जनरल प्रसाद पंद्रहवें डिविज़न के कमांडिंग ऑफिसर थे। जब उनकी टुकड़ी पर आक्रमण हुआ, और तीस फौजी मारे गए, तो वह भाग गए। भारतीय सेना के ब्रिगेडियर गुरबख़्श सिंह ने लिखा है कि जब वह अपनी जोंगा जीप पर पहुँचे, तो प्रसाद खेतों में दुबके बैठे हुए थे। उन्होंने अपनी वर्दी-बैज सब उतार फेंका था। ज़ाहिर है उनकी उसी वक्त कोर्ट मार्शल की तैयारी शुरू हो गयी, पाकिस्तान की अख़बारों में यह खबर छपी कि भारतीय सेना दुम दबा कर भाग गयी। 

ऐसी भागने की कहानियाँ पाकिस्तानी फौजियों की भी मिलती है, ख़ास कर टैंक युद्ध में। रचना बिष्ट रावत ने अपनी किताब में एक जिक्र किया है कि धार्मिक कारण से पाकिस्तानी टैंक से कूद कर भाग जाते, क्योंकि जिंदा जल जाना इस्लाम में अपवित्र माना जाता। यह बात हालांकि भारतीय सेना के मुसलमानों पर शायद लागू नहीं थी, और न ही पाकिस्तान के अन्य सैनिकों पर। ऐसी घटना सिर्फ पैटन टैंक के कुछ चालकों में ही देखी गयी। 

युद्ध इतिहासकार अपने सुविधा के हिसाब से एक-दूसरे का भागना कहते हैं, भले ही सेना किसी रणनीति के तहत भी पीछे जा रही हो। लाहौर फ्रंट पर बरकी पोस्ट को छोड़ कर बाकी जगह भारतीय सेना के रुकने का अर्थ नहीं रह गया था। बरकी में तो सेना तीन हफ्ते तक डटी ही रही। 

लाहौर फ्रंट पर दो फौजियों के शौर्य का जिक्र महत्वपूर्ण है। पाकिस्तानी मेजर आर. ए. भट्टी आखिरी दम तक लड़ते रहे, और भारतीय सेना को बरकी में रोक कर वहीं शहीद हुए। उन्हें निशान-ए-हैदर (परमवीर चक्र समक्ष) मिला। भारत के सूबेदार अजीत सिंह सीने में गोली खाने के बाद भी रात भर फ़ायरिंग करते रहे, उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

युद्ध दर-असल इस लाहौर फ्रंट से अलग अब खेमकरण की ओर जा रहा था। पाकिस्तानी सेना अमृतसर में घुसना चाहती थी। 

पाकिस्तान की पैटन टैंक (अमरीका प्रदत्त) उस समय की सबसे आधुनिक टैंकों में थी, जिसके सामने भारतीय टैंक (शेरमान या सेंचुरियन) कमजोर थे। पैटन टैंकों में रात को देखने के लिए इंफ्रारेड रोशनी थी, और यह दो किलोमीटर तक देख सकती थी। जबकि भारतीय शेरमान टैंक में रात की रोशनी नहीं थी, और महज आठ सौ मीटर तक देखने की क्षमता थी। 

यह तय था कि पैटन बनाम भारतीय टैंकों में अगर कुशलता से युद्ध हो तो पैटन ही जीतेगी। भारत को इन टैंकों को रोकने के लिए दूसरी तरकीब लगानी थी। भारतीय सेना ने गड्ढे खोदने और खेतों को पानी से भर कर दलदल बनाना शुरू किया। भारत अब रक्षात्मक मोड में थी। पाकिस्तान की सेना राजस्थान के रेगिस्तान, और पंजाब की सीमाओं से आगे बढ़ रही थी। राजस्थान के मुनाबाव रेलवे स्टेशन और पंजाब के खेमकरण में वह भारतीय सीमा में घुस चुकी थी। अब अमृतसर में घुसने की तैयारी थी। 

पाकिस्तानी सेना और अमृतसर के मध्य रास्ता रोके भारत की चौथी ग्रिनेडियर्स ब्रिगेड थी। चीमा गाँव में यह निर्णायक युद्ध हो रहा था, जहाँ उन टैंकों का कोई सीधा जवाब नहीं था। 

इस ब्रिगेड में RCL राइफ़ल चलाने का नेतृत्व अब्दुल हमीद ने लिया था। वह एक जीप पर यह राइफ़ल लगा कर आगे बढ़ने लगे। सबसे आगे आ रही टैंक को उन्होंने पहले उड़ाया। फिर जब दूसरी को उड़ाया तो उनके जीप को निशाना बना दिया गया। उनके ऊपर गोली-बारी शुरू हो गयी, फिर भी वह एक और टैंक को निशाना बनाने में लगे थे। तभी एक बम उनके जीप पर आकर गिरा, और वह शहीद हुए।

अब्दुल हमीद के विषय में कर्नल ख़ान ने एक साक्षात्कार में कहा है, “हमीद जीप पर था, और ऊपर पेड़ पर बैठे लेफ़्टिनेंट पतंकी पाकिस्तानी टैंकों पर नजर रख रहे थे। वही उसे बता रहे थे कि किस टैंक पर हमला करना है। जब हमीद के ऊपर बम गिरा, तो पतंकी को भी गोली मारी गयी। हमीद मारा गया, और पतंकी अपनी याद्दाश्त हमेशा के लिए खो बैठा। 

उसके ठीक बाद पाकिस्तान के ब्रिगेडियर शमी वहाँ मुआयना करने आए। जब हमारी सेना के गुलाम अहमद ने उन्हें पूछा कि तुम यहाँ कैसे आ गए, तो घबरा कर उसे गोली मार दी। जवाब में हमारे नायक नौशाल अली और कालू शफ़ीक़ ने ब्रिगेडियर को गोलियों से छलनी कर दिया।”

रचना बिष्ट रावत लिखती हैं, “ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ था, जब किसी भारतीय सैनिक ने एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर रैंक के फौजी को यूँ सामने से गोली मारी हो।”

उस दिन अब्दुल हमीद को मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला। अगले दिन एक और परमवीर चक्र मिलना था। एक और युद्ध कहीं और लड़ा जा रहा था।
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
( Praveen Jha )

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 11.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/04/11_25.html
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