Friday, 23 April 2021

यात्रा वृतांत - गंगोत्री यात्रा के पड़ाव- 1

गंगोत्री यात्रा पर मैं इसलिए गया, क्योंकि मैं ठीक एक महीने बाद 66 पूरे कर लूँगा। मैंने सोचा, कि अपने स्टेमिना को परखा जाए इसलिए चल पड़े पर्वत शिखरों की तरफ़। हालाँकि  हमारे टूर प्लान में पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा नहीं थी। हमने तय किया था, कि इस बार दुदवा वन्य जीव अभयारण्य ज़ाया जाए। लखनऊ से दुदवा के अंदर वन विश्राम गृह में व्यवस्था के लिए भी कह दिया। किंतु यात्रा से एक दिन पहले वन विभाग से फ़ोन आया कि आपके साथ कोई दस वर्ष से कम उम्र का बच्चा या साठ साल से अधिक उम्र का वयस्क नहीं होना चाहिए, अन्यथा आपको फ़ॉरेस्ट की कोर एरिया में प्रवेश नहीं मिलेगा। मैंने कहा, मेरी ही उम्र साठ से अधिक है। इसलिए मैंने दुदवा जाने का इरादा छोड़ा और तय किया कि हरिद्वार, ऋषिकेश, चंबा, उत्तरकाशी व हर्षिल होते हुए गंगोत्री ज़ाया जाए। सुबह नौ बजे हम निकले। 
मैंने यात्रा के लिए निकलते ही अपनी योजना को फ़ेसबुक पर डाला। मेरे अनेक मित्रों, शुभचिंतकों ने मुझे आगाह किया, कि ठंड बहुत है और यह यात्रा आपके दुराग्रह को बताती है। थोड़ा भय भी लगा। फिर सोचा, कि कभी-कभी दुराग्रह से शरीर की परीक्षा होती है। कपड़े ढेर सारे रखे। तीन फुल जैकेट्स, माइनस में काम करने वाले इनर। स्वेटर और सिर व कानों के लिए मंकी कैप। मफ़लर, बर्फ़ पर चलने वाले जूते एवं गर्म मोज़े। अपने अग्रज श्री विजय किशोर मानव की सलाह पर होम्योपैथी की कुछ दवाएँ। हमारे साथ नोएडा से श्री सुभाष बंसल, उनके पुत्र एडवोकेट राहुल बंसल, उनके भांजे पीयूष गुप्ता थे। रास्ते के लिए भोजन था और थर्मस में चाय थी। वसुंधरा ठीक दस बजे छोड़ा। एलीवेटेड रोड पर चढ़ गए। राजनगर एक्सटेंशन निकले जा कर। वहाँ से एनएच-58 (अब 36) पर चलते हुए मेरठ। चूँकि रैपिड रेल का काम चल रहा है, इसलिए कई जगह अवरोध था। 

सबसे अधिक दिक़्क़त आई मोदीपुरम के आगे दौराला के टोल पर। हमरी ISUZU गाड़ी में जो फ़ास्टटैग लगा था, उसे बैरियर पर लगा सेंसर रीड नहीं कर पा रहा था। टोल पर एक लड़की को बिठा रखा था, इसलिए उससे झिक-झिक करने का क्या लाभ! और डबल टोल 170 रुपए देकर बाहर हुए। फिर नारसन तक कई जगह जाम में फँसे। और वह भी NHAI की मूर्खताओं के कारण। सड़क बनी नहीं और टोल वसूलने लगे। मंगलौर से अपर गंगा कनाल के किनारे का रूट पकड़ा और रुड़की पार हो गए। किंतु कलियर शरीफ़ से फिर रास्ता बंद था, इसलिए नहर का रूट छोड़ कर NH-36 पर आए। पतंजलि समूह का कारपोरेट दफ़्तर देखा और बहादराबाद तो फ़्लाई ओवर से गुजर गए। हरिद्वार पार कर ऋषिकेश तक तो कई बार जाम और रेलवे क्रासिंग में फँसे। शाम चार बजे चढ़ाई शुरू हुई। तब पराठे निकाले गए और आलू की सूखी सब्ज़ी से रैप कर खाना शुरू किया। गाड़ी चलती रही। एक ढाबे में रुके। तब वाशरूम गए और अपने साथ लाई चाय पी। चंबा तक का 68 किमी का सफ़र मज़े से हुआ। पहाड़ी सड़क एकदम सुचिक्कण! रोड के दोनों किनारों पर सफ़ेद लाइन और बीच में पीली पट्टी। दो गाड़ियाँ कहीं पर भी एक-दूसरे को क्रॉस कर सकती हैं। न खड्डे, न गड्ढे न जाम और न ही पहाड़ गिरने का ख़तरा। यह सफ़र मात्र डेढ़ घंटे में पूरा हो गया। चंबा से आगे बढ़े। सूरज ढलने लगा था और पहाड़ की बर्फीली चोटियाँ डूबते सूर्य की लालिमा से अभिभूत थीं। अब सड़क पर कहीं-कहीं निर्माण कार्य चल रहा था, इसलिए संकरी थी। बस सुविधा यह रही कि ट्रैफ़िक कम था। कंडीखाल पहुँचते-पहुँचते रात हो गई। 

पहाड़ में रात की ड्राइविंग ख़तरनाक होती है, किंतु हमारे युवा एडवोकेट साहब बहुत साढ़े अंदाज़ में गाड़ी चला रहे थे। कंडीसोड में रुके। वहाँ एक ढाबे में चाय पी गई और आटा मैगी खाई गई। लघुशंका से भी निवृत्त हुए। गाड़ी से बाहर आते ही शीत का झोंका आया। कान, मुँह और नाक बंद करने पड़े। इसके बाद चिन्याली सोड के बाइपास से गुजरे। यहाँ फ़ोर लेन सड़क है और रात में इंडिकेटर खूब चमक रहे थे। मातली तक सड़क ऐसी ही है। पहाड़ में फ़ोर लेन में गाड़ी ड्राइविंग आरामदेह है। इसके बाद बड़ेठी चुंगी और रात आठ बजे हम पहुँच गए उत्तरकाशी। क़रीब एक किमी लंबी सुरंग पार करनी पड़ती है। वहाँ से हम लोगों ने अपने पुरोहित पंडित जितेंद्र सैमवाल को लिया। इसके आगे दसवें किमी पर है नैताला। यहाँ पंडित जी का गेस्ट हाउस है गुजरात भवन। यह भवन उनके गुजराती जजमानों ने बनवाया है। ज़मीन पंडित जी की है। इसमें 12 कमरे हैं। हर कमरे में बेड हैं और अटैचड बाथ रूम। बाथ रूम में दोनों तरह की टॉयलेट्स हैं।गाड़ी पार्क करने की खूब जगह है। नीचे कल-कल बहती भागीरथी और चारों ओर ख़ूब ऊँचे-ऊँचे पहाड़। इस भवन की देख-रेख वाराणसी के समीप किसी गांव के एक ठाकुर (शिवराज सिंह) करते हैं। वे 32 साल से उत्तरकाशी में हैं। सेवाभावी हैं, पर अकड़ पुरबिया ठाकुरों जैसी ही है। सिर्फ़ एक समय भोजन करते हैं। 

यहाँ सब सामान उतारा गया। तीन कमरे खोले गए। एक पंडित जी के लिए, एक में मैं और सुभाष बंसल तथा तीसरे में राहुल और पीयूष। पंडित जी ने हम लोगों के आगमन की सूचना पहले से दे रखी थी। इसलिए नए बेड कवर, रज़ाइयों के कवर भी और नई बेड शीट्स। हर कमरे में दो सिंगल बेड हैं। तौलिया, साबुन, टूथ पेस्ट और शैम्पू भी। बाथ रूम के बाहर हवाई चप्पलें। हमारे लिए भोजन तैयार होने लगा। दाल, सब्ज़ी और चटनी ठाकुर साहब ने बनाई तथा कोंदो के आटे की रोटी पंडित जी ने। क्योंकि ठाकुर साहब रोटी नहीं सेक पाते। भोजन के बाद हम लोगों के लिए अलाव लगाया गया। कुछ देर बाद ठाकुर जी एक-एक गिलास गरम दूध लाए, जिसमें कच्ची हल्दी पड़ी थी। अब बंसल जी ने अपना पिटारा खोला। 
(बाक़ी का कल)

शंभुनाथ शुक्ल
( Shambhunath Shukla )

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