Saturday 17 April 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 4.

पाकिस्तान को जोड़ रहा था इस्लाम, और तोड़ रही थी विविधता। हर प्रांत की संस्कृति भिन्न थी। पूर्वी पाकिस्तान तो खैर भोगौलिक दूरी भी अच्छी-खासी थी, और बीच में था भारत। अब पाकिस्तान के राजनयिक या फौजी दिल्ली से ट्रेन पकड़ कर कलकत्ता और ढाका कैसे जाते? हालांकि आम नागरिक सीमा पार कर भारतीय रेल पकड़ कर ही पूर्वी पाकिस्तान जाते थे। एक पाकिस्तानी व्यक्ति के अनुसार, यह काफ़ी महंगा पड़ता था, और कोई ज़रूरत भी नहीं थी। व्यापारी ट्रक भारत से गुजर कर ही पाकिस्तान जाते थे। मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत के रास्ते एक 800 मील के पाकिस्तान अधिकृत कॉरीडोर की मांग की थी, मगर भारत इसके लिए कभी राजी नहीं हुआ। वल्लभभाई पटेल ने इस मांग पर कहा था, “यह एक खूबसूरत बकवास है, जिसे गंभीरता से नहीं लेना चाहिए”। बिहार-यूपी से गुजरती हुई, भारत को दो भागों में काटती एक पाकिस्तानी जमीन वाकई बेतुकी ही थी। 

भाषा और संस्कृति की विविधता भारत में कहीं अधिक थी, मगर भारत ने एक जरूरी काम जल्दी कर लिया। संविधान का निर्माण। पाकिस्तान को संविधान बनाते-बनाते एक दशक लग गए, और जब बन कर तैयार हुआ, लोकतंत्र ही साफ हो चुका था। उससे पहले वह गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया ऐक्ट (1935) को ही संविधान रूप में प्रयोग करते थे, जिसके बाद कुछ अस्थायी व्यवस्था हुई। जो पाकिस्तान का संविधान अब मौजूद है, वह तो 1973 में ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के समय बना। दशकों तक देश बिना संविधान के ही चलता रहा!

संविधान बनाने में एक समस्या थी। वह किस कानून से चलेंगे? इस्लाम धर्म के सदियों पुराने बनाए कानून से? या आधुनिक दुनिया के कानून से? मसलन भारतीय संविधान तो आधुनिक लोकतंत्र का टेक्स्टबुक संविधान था। 

पाकिस्तान के मुसलमान पीढ़ियों से भारत में रहे थे, जहाँ हिन्दू-सिख और अन्य धर्मी भी उनके साथ रहते थे। उनकी तुलना अरब देशों के मुसलमानों से संभव नहीं थी। भले धर्म-आधारित राष्ट्रवाद से पाकिस्तान बना हो, शरिया कानून की ख़ास समझ सभी को नहीं थी। उन्होंने तो ब्रिटिश कानून देखा था। 

यह भी ध्यान रहे कि एक बड़ा तबका तरक्कीपसंद पढ़े-लिखे मुसलमानों का था, जिनमें कई कम्युनिस्ट ख़यालातों के थे और इस लिहाज़ से धर्म को पूरी तरह समर्पित नहीं थे। नमाज़ी मुसलमान तो कम ही थे। हाँ! उन्होंने पढ़ सब रखा था। एक वाकया है कि फ़ैज अहमद फ़ैज जब जहल में थे, तो बाकी कैदियों को कुरान पढ़ाते। जेलर ने टोका कि आप तो ला-मज़हबी (नास्तिक) हैं, आपको कुरान-शरीफ़ की क्या समझ?

पूर्वी पाकिस्तान में तो लगभग बाइस प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू थी, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान में दो प्रतिशत से भी कम थी। ज़ाहिर है वहाँ इस्लाम संविधान लाना कठिन था। एक तरफ भाषा आंदोलन पहले से चल रहा था, यह दूसरी चोट तो देश ही हिला कर रख देती।

अमरीका के राष्ट्रपति आइजनहावर ने यह समस्या हल कर दी। एक बार जब अयूब ख़ान रक्षामंत्री बन गए, अमरीका ने करोड़ों डॉलर की राशि पाकिस्तान को इस शर्त पर देने का वादा किया, अगर वे साम्यवाद से लड़ने के लिए हाथ मिलाएँ। साम्यवाद से लड़ने का मतलब सोवियत से लड़ना तो था ही, उन तमाम तरक्कीपसंद विचारधारा के मुसलमानों से भी लड़ना था जिनके हाथ में पत्र-पत्रिकाएँ, अखबार, साहित्य जैसी चीजें थे। जिनके मन में एक आधुनिक लोकतांत्रिक पाकिस्तान था।

अमरीकी डॉलर ने पूर्वी पाकिस्तान के जूट उद्योग को भी छोटा बना दिया। अब उन्हें दबा कर रखना आसान था। अमरीका पाकिस्तान को उस तानाशाही में तब्दील करने वाला था, जहाँ यह कठिनता से हासिल आज़ादी खत्म हो जाएगी।
(क्रमश:)

प्रवीण झा 
(Praveen Jha)

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 3.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/04/3_16.html
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