Saturday, 24 April 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय -10.


पिछले वर्ष (2020) इमरान ख़ान के एक कथन ने ट्विटर पर हंगामा किया जब उन्होंने कहा, “भारतीय क्रिकेट टीम जब खेलने आती तो मुझे टॉस करते वक्त उनके कप्तान पर दया आती। वे हार से डरे हुए नजर आते।”

ज़ाहिर है वह खूब ट्रॉल हुए लेकिन हमने अस्सी-नब्बे के दशक में वाकई पाकिस्तान को अधिकांश जीतते हुए ही देखा। 2004 से पहले भारत पाकिस्तान में एक सीरीज़ तो क्या, एक टेस्ट मैच भी नहीं जीत पायी थी। गावस्कर और अज़हरुद्दीन की टीम तक नाकाम रही। यह ठीक है कि भारत ने उन्हें आसानी से जीतने भी नहीं दिया। बीस में पंद्रह टेस्ट ड्रॉ रहे। दोनों तरफ से खेल बराबर रहा। वे आपस में बदला ले लिया करते। 2004 में हारने के बाद जब अगले साल पाकिस्तान की टीम भारत आयी तो टेस्ट में बराबरी की। उसके अगले वर्ष भारत पाकिस्तान से हार कर लौटी। उसके बाद तो खैर कभी गयी ही नहीं। 

क्रिकेट यहाँ इसलिए ला रहा हूँ, क्योंकि 1965 की ज़ंग किसने जीती, यह उत्तर कठिन है। यह खेल भारत जीता या हारा या ड्रॉ रहा? दोनों ही देशों में इस युद्ध के जश्न मनाए जाते हैं। पाकिस्तान 6 सितंबर को हर साल रक्षा दिवस मनाता रहा है, जबकि भारत हाजी पीर दर्रे पर फ़तह का जश्न मनाता है।

1965 के युद्ध में अगर कच्छ को पहला टेस्ट माना जाए, तो वहाँ पाकिस्तान ने ठीक-ठाक ताकत दिखायी। लेकिन, कश्मीर में ऑपरेशन जिब्राल्टर तो फेल रहा। भारत को घुसपैठ की जानकारी हुई, वहाँ राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। शेख अब्दुल्ला को तीन साल के लिए हिरासत में ले लिया गया। भारतीय फौज ढूँढ-ढूँढ कर घुसपैठियों को गिरफ्तार कर रही थी, या मार रही थी। इतना ही नहीं भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान अधिकृत सेक्टर में प्रवेश किया और हाजी पीर दर्रे पर 28 अगस्त को झंडा फहरा दिया। इस तरह पाकिस्तान की जमीन पर क़ब्ज़ा पहले भारत ने ही किया। 

पाकिस्तान ने बदले में अपना ऑपरेशन ग्रैंड-स्लैम तैयार रखा था। उनकी योजना थी कि कश्मीर के अखनूर पुल को तोड़ कर भारत को पूरी तरह कश्मीर से काट देना है। चिनाब नदी पर बना यह पुल पुराना हो गया था, और तोड़ना आसान था। यह अयूब ख़ान को ग़लत जानकारी थी कि पुल टूटते ही कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा। यह पुल महत्वपूर्ण था, मगर यह इकलौता रास्ता नहीं था, जिससे सेना कश्मीर पहुँच सकती थी।

लेकिन, अख़नूर की लड़ाई भारत हारने की स्थिति में था। भारतीय फौज की वहाँ चार छोटी बटालियन थी, जिनके पास पाकिस्तान के टैंकों और हथियारों का कोई मुकाबला नहीं था। अख़नूर में पाकिस्तानी सेना की टुकड़ी भारतीयों से छह गुणा बड़ी थी। सितम्बर की पहली तारीख को उनका आक्रमण हो चुका था, और भारत के पास समय कम था। 

तभी, पाकिस्तान ने न जाने क्यों कमान बदल ली, और युद्ध दो दिन टल गया। अब स्वयं जनरल याह्या ख़ान कमान संभालने वाले थे। उनके आते-आते भारतीय सेना ने अपनी टुकड़ियाँ बढ़ा ली। फिर भी यह पुल बचाना कठिन था। वह उन्हें बस कुछ समय रोक सकती थी। 

कश्मीर में इस तरह नियंत्रण रेखा पार करना पहले भी होता रहा था। दोनों तरफ से। लेकिन, ऐसी स्थिति कम ही बनती कि युद्ध का ऐलान करना पड़े। अब भारत के पास पूर्ण युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं था। तभी भारतीय सेना ने ऐसा मोर्चा खोला, जिसने पाकिस्तान को हिला कर रख दिया। 5 सितंबर की रात को सेना ने लाहौर की तरफ़ बढ़ना शुरू कर दिया, और सुबह तक लाहौर के बाहर आकर खड़ी हो गयी। 

अब पाकिस्तान को तय करना था कि उनके लिए कश्मीर महत्वपूर्ण है या लाहौर!
(क्रमश:)

( Praveen Jha प्रवीण झा )
पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 9.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/04/9_23.html

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