Saturday 17 April 2021

प्रेमचंद जी की पत्नी - शिवरानी देवी

प्रेमचंद की मृत्यु के समय प्रसाद जी 
को कहा  एक वाक्य संपूर्ण जीवन की वेदना को दिखाता है, और फिर प्रसाद जी कभी हंस नहीं पाएः

प्रेमचंद जी का शव पड़ा हुआ था। उस निर्जीव शरीर को गोद में  चिपटाये भाभी शिवरानी आकाश का भी हृदय दहला देने वाला करुण क्रन्दन कर रही थी। श्मशान जाने के लिये नगर के सैकड़ो संभ्रान्त साहित्यिक उतावले हो रहे थे। लोग अपने दु:ख का वेग नही सम्भाल पा रहे थे। और भाभी शिवरानी शव को किसी को छूने नही दे रही थी। सबने 'प्रसाद' जी से कहा -- आप ही समझाये। वे आगे बढ़े। भाभी से बोले  -- अब इन्हें जाने दीजिये।

वे क्रोध पूर्वक चीख उठी --- 
"आप कवि हो सकते है पर स्त्री का हृदय नहीं जान सकते। मैंने इनके लिये अपना वैधब्य खंडित किया था। इनसे इसलिये नही शादी की थी कि मुझे दुबारा विधवा बना कर चले जाये। आप हट जाइये"।

प्रसाद जी के कोमल हृदय को वेदना तथा नारी की पीड़ा ने जैसे दबोच लिया। उनका गला भर आया। नेत्रों में आँसू छलछला उठे। मैं ही सामने खड़ा दिखाई पड़ा। मुझसे भर्रायी आवाज में बोले -- ' परिपूर्णा , तुम्ही सम्भालो।' भाभी चिल्लाती चीखती रही और मैंने ' अब यह प्रेमचंदजी नही है, मिट्टी है '--- कहकर मुर्दा उनकी गोद से छीन लिया।

उस घटना के बाद मैंने प्रसाद जी को कभी हँसते नहीं देखा। उनके शरीर मे क्षय घुस चुका था। .....

जब चिता की लपट उन्हें समेटने लगी, सब लोग इधर उधर की बातें भी कर रहे थे। प्रेमचन्द जी के सम्बन्ध में कलप रहे थे। पर एक व्यक्ति मौन ,मूक, एकटक चिता की ओर देखता रहा। प्रेमचंद जी का शव उठाने के समय ऐसी घटना हो गई थी उसके साथ कि उसका मन रो रहा था और शायद वह देख रहा था  -- छ: महीने के बाद अपनी चिता भी  ...........
वह थे श्री जयशंकर 'प्रसाद'।   

(बीती य़ादे ~~ परिपूर्णानन्द वर्मा )

चित्र:- - मृत्यु से दो दिन पहले का चित्र प्रेमचंद जी की सेवा करती शिवरानी देवी / जमाना (ऊर्दू ) अक्टूबर 1936  कानपुर  मे प्रकाशित
#vss

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