Sunday, 1 May 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास (11)

वे असुर थे। पाताल-लोक में रहते थे। उनके कैलेंडर में रात पहले और दिन बाद में आती थी। वे अपनी आयु भी रातों को गिन कर ही तय करते थे। गॉल (Gaul) के संबंध में ऐसी बातें स्वयं जूलियस सीज़र ने लिखी है।

मुझे यह बात पहली नज़र में मिथकीय लगी, लेकिन मैं गॉल इतिहास पर एक किताब पलटने लगा, तो इसके पीछे का सत्य मालूम पड़ा। जूलियस सीज़र की बात अपनी जगह ठीक लगने लगी।

मैं नॉर्वे के जिस शहर में हूँ, वह खदानों का शहर था। मैं एक बार कई फीट नीचे उन ऐतिहासिक खदानों में गया, जहाँ इसके इतिहास के चिह्न दिखे। आज इस शहर के अधिकांश लोग उन खदान में काम करने वालों के वंशज हैं, जो वर्षों पहले दक्षिण यूरोप से आए थे। क्या उन्हें कोई ऐतिहासिक काव्य में पाताल-लोक के वासी लिख सकता है? 

हज़ारों वर्ष पूर्व कैस्पियाई सागर के निकट स्टेपी घास के मैदानों से मनुष्य न जाने कहाँ-कहाँ गए। एक समूह आज के ऑस्ट्रिया के साल्जबर्ग के आस-पास की घाटी में बस गया। साल्जबर्ग का अर्थ है ‘नमक का पहाड़’। ये मानव एक झील की गहराई में जाकर पहाड़ की खुदाई करते, और नमक निकाल कर लाते। सैकड़ों वर्षों तक ये इन्हीं पहाड़ों से खोद कर वह नमक निकालते रहे, जिसे सभ्यताएँ भोजन में स्वाद लाने के लिए प्रयोग करती। ये अंधेरे में जीवन बिताने वाले जुझारू लोग कहलाए ‘सेल्टिक’ (Celtic)।

इन्होंने न सिर्फ़ नमक, बल्कि लोहा और अन्य खनिज भी धरती की गर्भ से खोद कर निकाले। हालाँकि ये घुमंतू लोग थे, लेकिन दक्षिण यूरोप में स्थापित बस्तियाँ कहलायी- गॉल, जिसका अर्थ था बलशाली। ज़ाहिर है खदानों में काम करने के कारण इनका रंग कुछ मटमैला, शरीर फौलादी, और सभ्यता सामाजिक मानकों से जंगली हो गयी। ये जानवरों को मार कर कच्चा खा जाते, और आस-पास के समृद्ध नगरों में रात को घुस कर लूट-पाट भी करते।

इनका कोई संगठित साम्राज्य तो नहीं था, लेकिन जब भी युद्ध लड़ना होता, ये एकत्रित हो जाते और टूट पड़ते। जहाँ जो भी लूटा, वह बाँट लिया। इन्हीं प्रवृत्तियों से रोम के देवताओं के समक्ष इनको पाताल-लोक के असुरों की छवि बना दी गयी होगी। क्योंकि ये तकनीकी रूप से भी पाताल यानी जमीन की गहराई में काम करने वाले लोग ही थे।

रोम पर आक्रमण करने के कई क़िस्से हैं, किंतु एक क़िस्सा मुझे रोचक लगा। एक बार किसी गॉल को एक रोमन ने तोहफ़े में वाइन दे दी। वह जब वाइन लेकर कबीले में आया, तो उनको इसका स्वाद पसंद आया। वे फिर से जब वाइन लेने आए तो रोमनों ने दुत्कार दिया। गॉल कबीले भड़क उठे, और रोम की सारी शराब लूटने का मन बना लिया। 

390 ईसा पूर्व की एक रात इन पाताल-वासियों ने आक्रमण कर दिया। जो सामने दिखता, उसे मारते-काटते हुए वे आगे बढ़ते गए, और रोम के किलों पर पहुँच कर उत्पात करने लगे। रोम वासी जान बचा कर वहाँ से भाग रहे थे, और गॉल वहाँ शराब डकारते हुए उन्माद कर रहे थे। जिस सुरंग बना कर रोम ने अभी-अभी जीत दर्ज़ की थी, वही सुरंग अब उनके भागने का जरिया बन गयी थी।

18 जुलाई की वह तारीख रोमन इतिहास के एक काले दिवस के रूप में दर्ज़ हो गयी, जब गॉल ने इस संस्कृति को एक झटके में खत्म कर दिया। रोम के मनुष्य ही नहीं, देवताओं को भी रोम से भगा दिया गया। उनकी मूर्तियाँ लेकर ‘वेस्टल वर्जिन’ भाग रही थी।*

रोम को मुक्ति अब अगर कोई दिला सकता था, तो वह थे स्वयं गॉल।
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

रोम का इतिहास (10)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/04/10.html 
#vss

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