Saturday 28 May 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास - तीन (1)

‘रोम जलता रहा, नीरो बंसी बजाते रहे’

यह एक ऐसा फ़ेक-न्यूज़ है, जिसने दुनिया की रंगत बदल दी। इस एक मिथ्या से न सिर्फ़ संपूर्ण यूरोप और अमेरिका का ईसाईकरण बल्कि ईसाइयों का विभाजन (कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट) भी जुड़ा है।

दरअसल बंसी या वायलिन/फिडल जैसी चीजें उस वक्त थी ही नहीं। न उस काल-खंड के किसी रोमन इतिहासकार ने ऐसा लिखा। 18 जुलाई, 64 ई. को रोम में भयानक आग अवश्य लगी, जो हफ़्ता भर या अधिक चलती रही। यह 18 जुलाई वही तारीख़ है, जब चार सौ वर्ष पूर्व (ई. पू. 387) रोम को गॉल ने नेस्तनाबूद किया था। रोमन इतिहास में यह एक शोक का दिवस है, जब दो बार रोम ध्वस्त हुआ।

नीरो उस समय क्या कर रहे थे? इस उत्तर के साथ इतिहास को बदलते देखिए। 

उस भयानक आग के समय नौ वर्ष आयु के रहे रोमन इतिहासकार टैसिटस के अनुसार - 

‘नीरो रोम से दूर अपने जन्मस्थान एंटियम (अब एंजियो) में थे। वह लायर (हार्प या संतूर जैसा यंत्र) बजा रहे थे। जब उन्हें जानकारी मिली, वह तुरंत रोम की रक्षा के लिए भागे और आग बुझाने के प्रयास करवाए।’

आग के पाँच वर्ष बाद पैदा हुए सूटोनियस के अनुसार- 

‘नीरो को रोम की पुरानी बस्तियाँ पसंद नहीं थी। उन्होंने स्वयं पूरे रोम में आग लगवायी। उनके आदमी मशाल लेकर घूम रहे थे, और जान-बूझ कर आग लगा रहे थे।’ 

इस घटना के डेढ़ सौ वर्ष बाद डियो के अनुसार-

‘नीरो ने अपने कुछ शराबी और शरारती गुर्गों को भेज कर आग लगवायी। नीरो स्वयं यह तमाशा ऊपर पैलेटाइन पहाड़ के राजमहल से खड़े होकर देख रहे थे, और लायर बजाते हुए गीत गा रहे थे, जिसे उन्होंने नाम दिया- ट्रॉय पर कब्जा’

तीनों इतिहासों को मिला कर देखा जाए, तो टुकड़ों-टुकड़ों में सच मिल सकता है। जब नीरो लायर बजा रहे थे, उस समय उन्हें आग लगने की खबर मिली। वह रोम पहुँचे, और आग पर बेहतर निगरानी के लिए एक पहाड़ की ऊँचाई से देखने लगे। अपनी राजधानी को जलते देख, संभव है कि उन्होंने उस पहाड़ी पर ट्रॉय पर कब्जे से जुड़ा करुणामय यूनानी गीत गाया हो।

प्रश्न यह है कि इतिहास बदला क्यों गया। इसका उत्तर भी टैसिटस का लिखा पढ़ कर मिल सकता है। वह लिखते हैं-

“नीरो ने इस आग की ज़िम्मेदारी एक घृणास्पद समुदाय क्रिश्चियन पर तय कर दी। यह किसी क्राइस्टस नामक व्यक्ति से जन्मा समुदाय था, जिसे टाइबेरियस के राज में पोन्टियस पिलाते ने सजा दी थी…उनके समुदाय के लोगों को भयानक यातनाएँ दी गयी। नीरो ने उन्हें पागल कुत्तों के सामने फिंकवा दिया। सूली पर टाँग दिया। जिंदा जला दिया…हालाँकि इन यातनाओं ने रोमवासियों में इस समुदाय के प्रति घृणा के बजाय संवेदना का संचार किया।”

माना जाता है कि इन्हीं यातनाओं में यीशु के दो देवदूतों पॉल और पीटर को भी मार दिया गया। आधुनिक इतिहासकारों का बहुमत मानता है कि यह पूरी कहानी बाद में बदली गयी है। जब स्वयं संत पॉल या पीटर ने अपने लेखों में ‘क्रिश्चियन’ शब्द का प्रयोग नहीं किया है, तो यह शब्द आया कहाँ से?

संभव है कि आग न नीरो ने लगायी, न किसी क्रिश्चियन समुदाय ने। सौ-दो सौ साल बाद यह तय किया गया हो कि आग लगवानी किस से और कैसे है। इसी से रोम का भविष्य तय होने वाला था। 

जिन संत पीटर को कथित रूप से शहंशाह नीरो ने रोम में आग लगाने के आरोप में सूली पर लटका दिया था, आज उनकी ही शिष्य परंपरा के कैथोलिक पोप रोम पर राज करते हैं। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

रोम का इतिहास - दो (18) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/18_27.html 
#vss

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