यूनानी अपने को हेल्ले / हेलास कहते थे, जिससे उनकी संस्कृति हेलेनिक संस्कृति कहलाई. पड़ोस में रहते गैर-यूनानियों की बोली उन्हें किसी अबोध बच्चे के बड़बड़ाने के समान लगती थी, जिससे वे गैर-यूनानी 'बारबेरियन' कहलाए. यूनानी प्रायद्वीप पहाड़ी क्षेत्र है, उनके नगर राज्यों के संसाधनों पर बस सीमित जनसंख्या टिक सकती थी इसलिए यूनानी भूमध्य सागर के तट पर सुदूर क्षेत्रों में उपनिवेश बना कर बसने लगे - आज के इटली, फ़्रांस और लेवांट में. यूनानी यह भी जानते थे कि उनके पड़ोस में ऐसे भी 'बारबेरियन' थे जिनकी संस्कृति उनसे बहुत अधिक प्राचीन थी - मिश्र और फ़ारस.
फ़ारसी साम्राज्य एशिया माइनर तक फैला हुआ था, जहाँ बसे कुछ यूनानी नगरों पर फ़ारसी साम्राज्य का आधिपत्य था. साम्राज्य और यूनान दोनों विस्तारवादी थे. उनके बीच युद्ध होना ही था और जब नगर-राज्यों के एक अनौपचारिक संघ ने फ़ारसी साम्राज्य से लोहा लेने की ठानी तो पचास साल से अधिक लम्बा युद्ध चला था. इसमें यूनानी विजयी रहे थे.
इसी युद्ध का विवरण लिखने के क्रम में इतिहास लेखन की शुरुआत हुई. युद्ध का इतिहास हेरोडोटस ने लिखा, जो स्वयं एशिया माइनर में बसी एक यूनानी बस्ती के रहने वाले थे. किताब लिखने के लिए हेरोडोटस यथा संभव उन जगहों पर गए थे जहाँ उस लम्बे खिंचे युद्ध में महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ लड़ी गयीं थीं. इस तरह खोज बीन कर लिखी अपनी किताब को उन्होंने नाम दिया "हिस्टोरिया", जिसका अर्थ होता है - जाँच पड़ताल. (हिज़स्टोरी से हिस्ट्री का कोई सम्बन्ध नहीं है.)
आने वाले वर्षों में, उस काल के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्य पर विजय पाने के दम्भ में एथेंस का गणतंत्र पूरी तरह भ्रष्ट हो गया और एक अन्य नगर राज्य स्पार्टा के साथ उसका युद्ध हुआ, पेलोपोनेशियन युद्ध. सत्ताईस वर्षों तक चले इस युद्ध में स्पार्टा विजयी रहा था, जहाँ की राजनीति गणतंत्रात्मक नहीं थी. प्लैटो की किताब 'रिपब्लिक' में वर्णित आदर्श नगर को स्पार्टा पर आधारित माना जाता है.
यूनानी लोगों के तीन युद्ध के वर्णन मिलते हैं. पहला ट्रोजन युद्ध, जो प्राचीन यूनान काल खंड में 'शायद' हुआ था. ट्रॉय के लोग हेलास नहीं थे किन्तु यूनानी संस्कृति के अनुगामी थे. इस युद्ध से होमर के दो काव्य जन्मे जो आज भी पढ़े जाते हैं - इलियड और ओडीसी. फ़ारसी साम्राज्य से हुए युद्ध से हेरोडोटस के लिखे इतिहास का प्रादुर्भाव हुआ और पेलोपोनेशियन युद्ध से तुसीडाइड्स के लिखे इतिहास का.
तुसिडाइड्स पेलोपोनेशियन युद्ध में पराजित हुए एथेंस के एक प्रमुख सेनानायक थे. पराजय की ग्लानि से अभिभूत हो उन्होंने एथेंस छोड़ दिया था और विभिन्न युद्धस्थलों का निरीक्षण कर वे पराजय के कारणों को समझने के प्रयास कर रहे थे. हेरोडोटस ने जहाँ फ़ारस से हुए युद्ध के घटनाक्रम के वर्णन किये थे वहीं तुसिडाइड्स अपने युद्ध की घटनाओं के पीछे उनके कारण खोज रहे थे. उनके लेखन की सबसे महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि थी कि व्यक्तियों के समूह के आचरण और अभिप्रेरण उन व्यक्तियों के आचरण और अभिप्रेरण से भिन्न हो सकते हैं जो उस समूह को बनाते है.
तुसीडाइड्स के इतिहास के करीब पचास वर्ष बाद यूनानी प्रायद्वीप के उत्तर में स्थित एक गैर यूनानी राज्य मैक्डोनिया के राजा फिलिप द्वितीय ने यूनानी नगर राज्यों की तरफ अपनी लोलुप दृष्टि डाली. 338 ई. पू. में फिलिप के विरुद्ध यूनानी नगर-राज्य उसी प्रकार एक होकर लड़े जैसे कभी वे फ़ारसी साम्राज्य के साथ लड़े थे, लेकिन इस बार विजयश्री ने गैर यूनानी फिलिप को वरा. पूरे प्रायद्वीप पर आधिपत्य स्थापित करने के जल्द बाद उसके अपने एक सैनिक ने उसकी हत्या कर दी और उसका बीस साल का बेटा सिकंदर (एलेग्जेंडर) मैक्डोनिया के साथ साथ पूरे यूनान का भी राजा बना.
महत्वाकांक्षी सिकंदर ने जल्द ही एक बहुत बड़ा साम्राज्य बनाया जो मिश्र से भारत की सीमा तक फैला हुआ था. सिकंदर के साम्राज्य के तत्कालीन विश्व पर अभूतपूर्व सांस्कृतिक और व्यावसायिक प्रभाव पड़े. सिकंदर की अकाल मृत्यु के बाद उस साम्राज्य को उसके मैक्डोनियन और यूनानी सेनापतियों ने आपस में बाँट लिया. इसी बाँट के बाद मिश्र में टॉलेमी का राजवंश आया था.
ये यूनानी या मैक्डोनियन सेनापति यूनानी संस्कृति के प्रवर्तक थे. उनके चलते यूनान से बाहर दूर दूर तक, मिश्र से अफ़ग़ानिस्तान तक, यूनानी ललित कलाएं स्थानीय रूपों में पनपीं जिन्हे एक साथ मिलाकर हेलेनिस्टिक (हेलेनिक नहीं) सांस्कृतिक क्षेत्र कहा जाता है - यदि हेलेनिक यूनानी संस्कृति हुई तो हेलेनिस्टिक को यूनानोन्मुखी कह सकते हैं.
मिश्र में, जिसकी अपनी संस्कृति यूनान से बहुत अधिक पुरानी थी, टॉलेमी द्वारा यूनानोन्मुखी संस्थाएं स्थापित करना साहस का ही काम कहा जा सकता था. सिकंदर की विजय के बाद बसाए गए नगर अलेक्सेंड्रिया में टॉलेमी ने एक उच्च शिक्षा केंद्र स्थापित किया, जिसे मध्ययुगीन (या आधुनिक भी) विश्वविद्यालयों का पूर्ववर्ती कहा जा सकता है. टॉलेमी के राजवंश की अंतिम शासक क्लियोपाट्रा हुई जिसके बाद मिश्र रोम के अधीन आ गया.
रोम-वासियों ने, जो अपने को प्राचीन यूनान के उत्तराधिकारी के रूप में देखते थे, एक किंवदंती प्रचलित की थी कि ट्रॉय से पलायन किए किसी व्यक्ति ने रोम को स्थापित किया था. ई. पू. आठवीं सदी में रोम प्राचीरों से घिरा, एक राजा द्वारा शासित नगर बन चुका था. इसके तीन सौ वर्षों के अंदर रोम वासियों ने अपने राजा को विस्थापित किया और अपने लिए फिर कभी किसी राजा को नहीं आने दिया. राजा के जाने के बाद रोमवासियों की एक पूरी पीढ़ी आपस में लड़ती रह गयी - एक तरफ सामंत (पैट्रिशियन्स) थे, दूसरी तरफ आम जन (प्लेबियन्स). विजयी सामंतों ने रोम के शासन तंत्र को अपने पास रखा.
रोम के संसाधन कम थे - बस इमारती लकड़ियाँ और पानी. रोम किसी व्यापार मार्ग पर भी नहीं था. उनकी खेती ऐसी नहीं थी कि शहर की बढ़ती आबादी को खिला सके. उन्हें फैलने की जरूरत थी और प्रायः लगातार लड़ते रहना उनकी नियति. इन स्थितियों में वहाँ यूनानी गणराज्य जैसी व्यवस्था नहीं पनप सकती थी. सामंतों ने जो व्यवस्था कायम की उसमे सेनेट में बस सामंत आ सकते थे. राज्य के सारे काम काज दो कौंसुल देखते थे जो बस सामंतों में से एक साल के लिए चुने जाते थे. जनता के हितों की रक्षा के लिए प्रति वर्ष, एक वर्ष के लिए, चुना जाता ट्रिब्यून होता था, जो सेनेट से पारित विषयों को भी अस्वीकार (वीटो) कर सकता था. लेकिन आम जन की स्थिति शायद राजतंत्र के समय से बदतर हो गयी हो.
रोम में भी यूनान के समान अनेक देवी-देवता थे. बाद में रोम के कुछ शासकों को भी देवत्व मिलने लगा था - उनके मंदिर बने, उनकी पूजा होने लगी और उनके नाम बलि भी चढ़ती थी. एक मामले में रोम यूनान से बिलकुल अलग था. यूनानी नगर राज्य किसी बाहरी को नागरिकता देने से बहुत हिचकिचाते थे. रोम वासियों में इस तरह की नस्ली एकांतिकता नहीं थी. अपने जीते देशों को वे रोम के प्रान्त कहते थे और यदि कुछ भी बदले में मिलने की आशा हो तो वृहत स्तर पर अपनी नागरिकता बाँटने से पीछे नहीं हटते थे.
इसके एक दृष्टांत का ईसाई धर्म के इतिहास से गहरा सम्बन्ध है. टार्सस के पॉल नाम (हीब्रू नाम सॉल) के एक तम्बू बनाने वाले ने रोम का नागरिक होने का दावा कर के अपने को गिरफ्तार होने से बचाया था.
(यही सॉल बाद में सेंट पॉल के नाम से जाने गए.)
अ हिस्ट्री ऑफ़ क्रिश्चियनिटी (1)
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