रोम भले ही साम्राज्य बन गया, यूनान से स्पेन तक फैल गया, मगर वहाँ का गणतंत्र अब भी रोम तक ही सिमटा था। हद तो यह कि इतालवी और लातिन लोगों को भी सिनेट के लिए मत डालने का अधिकार नहीं था। कहावत है- All roads lead to Rome (सारे रास्ते रोम की तरफ़ जाते हैं)। रास्ते ही क्या, सारी पूँजी, सारी शक्ति रोम नगर में ही सिमटी थी। विद्रोह तो होना ही था।
इतालवी विद्रोही एकजुट हुए और उन्होंने रोमन सेना को पराजित कर दिया। आखिर जैसे-तैसे मारियस और सुल्ला ने मिल कर विद्रोह दबाया और एक एल. सीज़र नामक सिनेटर ने यह प्रस्ताव रखा कि इतालवियों को नागरिकता दी जाए। आखिर ई. पू. 84 तक उन्हें नागरिकता मिल गयी। मगर विद्रोह तो अब साम्राज्य के हर कोने में हो रहे थे।
मध्य एशिया (Asia Minor) के राजा मित्रिडेटस ने रोमनों की सत्ता से इंकार करते हुए उस इलाके में रह रहे लगभग अस्सी हज़ार इतालवियों को मार डाला। उनका दमन करने के लिए जब मारियस जाने लगे, तो सिनेट ने उनके बदले सुल्ला को भेजने की बात कही।
मारियस ने भड़क कर जनता का आह्वान किया, और अपने तमाम विपक्षियों को एक-एक कर मारना शुरू किया। सिनेटरों को धमका कर चुप किया। यह खबर सुन कर सुल्ला ने रोमन सेना लेकर रोम पर ही आक्रमण कर दिया। जब उनकी सेना रोम आयी, तो मारियस-समर्थक रोम वासियों ने उन पर पत्थर फेंके। सुल्ला ने उनके घर ही जला डाले। आखिर मारियस को रोम छोड़ कर भागना पड़ा, सुल्ला ने रोम पर कब्जा कर लिया।
मामला अभी खत्म नहीं हुआ। जब सुल्ला अपनी सेना लेकर मध्य एशिया की तरफ़ निकले, मारियस ने लौट कर पुन: रोम पर कब्जा कर लिया। सुल्ला के घर को आग लगा दी, और उनके बीवी-बच्चे भागे-भागे एथेंस पहुँचे। सुल्ला गुस्से में वापस रोम लौटने की तैयारी कर ही रहे थे, कि खबर आयी मारियस शराब पीते-पीते मर गए।
ईसा पूर्व 83 में जब सुल्ला रोम लौटे तो वहाँ फिर से उनके ख़िलाफ़ माहौल बना हुआ था। मारियस के समर्थकों ने उनका रास्ता रोक लिया। मारियस के पुत्र स्वयं नेतृत्व कर रहे थे। उस समय सुल्ला का साथ दो बाइस-तेइस वर्ष के महत्वाकांक्षी युवाओं ने दिया। एक थे क्रैसस और दूसरे थे पोम्पे।
इन दोनों ने सेना संगठित कर सुल्ला को विजय दिला दी। मारियस के पुत्र को मौत के घाट उतारा गया। एक लंबी सूची बनायी गयी, जिसमें अधिकांश आम जनता के मारियस समर्थक थे। उन सबको मार डाला गया। सुल्ला ने स्वयं को तानाशाह घोषित कर दिया। चार वर्ष बाद सुल्ला स्वयं चल बसे।
इन तमाम घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया था, कि अब सिनेट सिर्फ़ मूक दर्शक रह गयी थी। अब रोम में शक्ति उसी के पास थी, जिसके पास सैन्य-कौशल था। जनता भी यह समझ चुकी थी, और वह अपनी विद्रोही सेना बना रही थी।
ई. पू. 73 में एक यूनानी ग्लैडिएटर गुलाम स्पार्टाकस ने गुलामों की एक फौज खड़ी कर दी, और रोमन सेना को हराते हुए आल्प्स पहाड़ों की ओर बढ़ने लगे। उनका उद्देश्य अंतत: आज़ाद हो जाना था।
सिनेट ने क्रैसस को उन्हें दबाने भेजा, मगर स्पार्टाकस ने उनकी सेना के नाकों दम कर दिया। स्पार्टाकस एक कुशल रणनीतिकार सेनापति थे। क्रैसस भले ही रोम के सबसे धनी व्यक्ति थे मगर सैन्य-कौशल में कमजोर थे। वह तो सिर्फ़ यह चाहते थे कि इस जीत का श्रेय पोम्पे को न मिले।
पोम्पे उस समय स्पेन में एक अन्य विद्रोह से जूझ रहे थे। जब उन्हें खबर हुई, तो वह स्पार्टाकस को हराने निकल पड़े।
उस समय तक गुलामों की सेना आल्प्स पहाड़ पार करने लगी थी, मगर पोम्पे ने उनका रास्ता रोक लिया। आखिर सील नदी के किनारे निर्णायक युद्ध हुआ, जिसमें स्पार्टाकस की सेना हार गयी। क़िस्सा है कि रोम से लेकर कापुआ तक छह हज़ार विद्रोही गुलामों को सूली पर लटकाया गया, ताकि फिर कभी कोई ऐसी जुर्रत न करे। स्पार्टाकस की लाश नहीं मिल सकी। उनका प्रामाणिक इतिहास भले कम लिखा गया, मगर उन पर कई फ़ंतासी फ़िल्म और सीरीज़ ज़रूर बन गए।
पोम्पे ने उचित ही इस जीत का श्रेय लिया, और क्रैसस मन ही मन घुटने लगे। उन दोनों की नज़र रोम की सत्ता पर थी, लेकिन राजनीति बहुत उलझी हुई चीज है। सत्ता के लिए इन दोनों को मिल कर किसी तीसरे व्यक्ति से हाथ मिलाना पड़ा। ऊपर मैंने उनके सिनेटर चाचा का नाम लिखा, जिन्होंने इतालवियों को रोम की नागरिकता दिलायी। यूँ भी वह नाम कोई अनसुना नाम नहीं।जब रोमन गणतंत्र का अंत हुआ, वह नाम राजतंत्र का पर्याय बन गया।
सीज़र। जूलियस सीज़र!
(प्रथम शृंखला समाप्त)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (18)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/18.html
#vss
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