Sunday, 22 May 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास - दो (13)

            चित्र: एंटनी और क्लियोपेट्रा

जूलियस सीज़र को अधिक से अधिक तीस-चालीस सिनेटरों ने छुरा भोंका होगा, उनकी मृत्यु के अगले वर्ष तीन सौ से अधिक सिनेटरों को मौत के घाट उतार दिया गया। तीन हज़ार से अधिक सीज़र-विरोधियों को मारा गया। ऑक्टावियन और एंटनी की जोड़ी हिंसा के चरम पर थी। सभी मारे जा रहे कुलीनों की संपत्ति कब्जा कर वे अपने सैनिकों को दे रहे थे। इस लोभ में उनकी सेना बढ़ती ही जा रही थी। 

दूसरी तरफ़ ब्रूटस, कैसियस, पोम्पे जूनियर (पोम्पे मैग्नस के पुत्र) और सिसरो के पुत्र उनके ख़िलाफ़ अपनी विशाल सेना तैयार कर रहे थे। ब्रूटस ने यूनान के क्रेटा द्वीप पर अपना मुख्यालय बना लिया और उनकी थलसेना, नौसेना मिला कर ठीक-ठाक ताकतवर थी। शुरुआत में जब एंटनी ने अपनी सेना उनसे लड़ने भेजी, तो उन्हें कड़ी शिकस्त मिली। एंटनी के भाई, जो सेनापति थे, उन्हें मार डाला गया। 

ब्रूटस ने रोम में खबर भेजी, “सिसरो की हत्या का बदला हमने ले लिया है”

यह खबर सुन कर ईसा पूर्व 42 में ऑक्टावियन और एंटनी स्वयं समुद्र के रास्ते उन्हें हराने पहुँचे। आखिर उन्हें जीत मिली। क्रैसस और ब्रूटस, दोनों ने आत्महत्या कर ली।

अपने तमाम शत्रुओं को मारने के बाद ऑक्टावियन और एंटनी ही आपस में सत्ता के लिए भिड़ गए। लेकिन, अंत में संधि हुई कि एड्रियन सागर के पश्चिम ऑक्टावियन राज करेंगे, और पूरब एंटनी। इस संधि को मजबूत करने के लिए ऑक्टावियन ने अपनी बहन का विवाह एंटनी से करा दिया।

ऐसी संधियाँ और ऐसे विवाह तो बस यूँ ही थे। अभी एंटनी की एक पुरानी प्रेमकथा मुकम्मल होनी थी। मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा के तो एंटनी पुराने आशिक थे। जब तक जूलियस सीज़र थे, क्लियोपेट्रा पर सीज़र का हक था। अब तो सीज़र मर चुके थे, और क्लियोपेट्रा की ख़ूबसूरती बढ़ती ही जा रही थी।

प्लूटार्क लिखते हैं, “सोने से लदी हुई क्लियोपेट्रा जब एक नाव पर एंटनी से मिलने आयी, तो वह सुनहरे तकियों पर लेटी हुई थी, और उनकी सेविकाएँ पंखा झल रही थी। यूँ लग रहा था जैसे वही साक्षात वीनस देवी हो”

एंटनी उनके प्रेम में इस कदर पागल हुए कि सभी युद्ध, सभी महत्वाकांक्षाएँ भूल गए। वह उनके साथ बैठ जुआ खेलते, शराब पीते, और उन्हें गहनों से लाद देते। रोमवासियों को अंदेशा था कि क्लियोपेट्रा न सिर्फ़ अपने हुस्न से, बल्कि किसी नशीले पदार्थ के माध्यम से एंटनी के दिल-ओ-दिमाग पर पूरी तरह कब्जा कर चुकी है।

हालाँकि यह ऑक्टावियन के लिए अच्छा ही था कि एंटनी का पीछा छूटा, मगर अब भी एंटनी के पास अपनी विशाल सेना थी। पोम्पे जूनियर से लड़ने के लिए उन्हें एंटनी की ज़रूरत थी। आखिर एंटनी ने क्लियोपेट्रा के मना करने के बाद भी युद्ध में ऑक्टावियन का साथ दिया, और ईसा पूर्व 36 में पोम्पे जूनियर को हरा कर मार डाला। इसके बाद एंटनी पुन: क्लियोपेट्रा के पास आ गए।

एंटनी की भले कोई महत्वाकांक्षा न बची हो, लेकिन क्लियोपेट्रा की तो थी। वह एंटनी का सहारा लेकर पूरे रोम की महारानी बनना चाहती थी, और राजधानी सिकंदरिया में लाना चाहती थी। ऐसी कोशिश उन्होंने पहले जूलियस सीज़र को अपने पाश में बाँध कर भी की थी।

उन दिनों यह व्यवस्था थी कि ऐसे कुलीन अपनी वसीयत रोम के मंदिर में जमा कर देते थे। ऑक्टावियन सीज़र को मालूम पड़ा कि वेस्टल वर्जिन (मंदिर की दासी) के पास एंटनी की वसीयत जमा है, जिसमें उन्होंने अपनी संपत्ति क्लियोपेट्रा के नाम कर दी है। वह एक वर्जिन के साथ रात बिता कर वह वसीयत हथिया लाए। ऐसे वर्जिनों के साथ जूलियस सीज़र भी सोते रहे थे, तो यह भी खानदानी हथकंडा ही था।

उन्होंने सिनेट में वसीयत पढ़ी, जिसमें लिखा था, “मेरी मृत्यु चाहे कहीं भी हो, मुझे सिकंदरिया में क्लियोपेट्रा के साथ ही दफ़नाया जाए”

यह स्पष्ट था कि अब एंटनी पूरी तरह क्लियोपेट्रा के प्रेम में उनके दास बन चुके हैं। ईसा पूर्व 31 में एंटनी और क्लियोपेट्रा ने रोम पर चढ़ाई कर दी, जिसमें उनकी हार हुई। वे भाग कर मिस्र पहुँचे, लेकिन जल्द ही ऑक्टावियन ने उन पर आक्रमण कर दिया। एंटनी की सेना ने जब घुटने टेक दिए तो क्लियोपेट्रा ने संदेश भेजा, “मैं आत्महत्या कर रही हूँ”

यह सुन कर एंटनी ने स्वयं को छुरा भोंक लिया। मरणासन्न एंटनी को क्लियोपेट्रा के पास लाया गया, और उनकी बाँहों में वह चल बसे। क्लियोपेट्रा को गिरफ़्तार कर लिया गया, लेकिन उन्होंने अपने पास छुपाए एक विषैले कीड़े के डंक से अपनी जान दे दी। शेक्सपीयर स्वयं को डंक लगाती क्लियोपेट्रा के अंतिम शब्द अपने नाटक में कुछ इस तरह लिखते हैं,

“As sweet as balm, as soft as air, as gentle, O Antony! Nay, I will take thee too”

वहीं जूलियस सीज़र से हुआ उनका पुत्र सीज़र भी मौजूद था। ऑक्टावियन ने अपने इस भाई को मार डाला, क्योंकि सीज़र अब सिर्फ़ उपनाम नहीं था। 

सीज़र अब सिर्फ़ एक ही हो सकता था। कोई दूसरा नहीं। 
(क्रमश:) 

प्रवीण झा
© Praveen Jha

रोम का इतिहास - दो (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/12_21.html
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