Monday 30 May 2022

डायर्मेड मक्कलक / ईसाइयत का इतिहास - अ हिस्ट्री ऑफ़ क्रिश्चियनिटी ( 8 )

आगे बढ़ने के पहले उस समय के पैलेस्टीन से पुनर्परिचय कर लेना उचित होगा. पैलेस्टीन का भूखंड भूमध्य सागर के पूर्वी-दक्षिणी तट पर था. इसके प्रमुख क्षेत्र पश्चिम में सागर और पूर्व में जॉर्डन नदी से घिरे थे. जॉर्डन नदी उत्तर से दक्षिण दिशा में बहती है. माउंट हर्मन (~2800 मीटर) से निकल कर यह गलीली सागर से उसके उत्तरी सिरे पर मिलती है फिर दक्षिणी सिरे से निकल कर मृत सागर (समुद्र तल से 420 मीटर नीचे) में मिलजाती है. ईराक से आते यहूदियों को अपनी प्रतिश्रुत भूमि (प्रॉमिस्ड लैंड) तक पहुँचने के लिए जॉर्डन नदी पार करना पड़ा था. उनके प्रमुख क्षेत्र नदी के पश्चिम में स्थित थे. पैलेस्टीन उस काल में चार क्षेत्रों में बँटा था - (उत्तर से) गलीली, समारिया, जूडेआ, और इडोमेआ (एडोम). ईसा का परिवार गलीली क्षेत्र का था.

ईसा के जन्म के वर्ष पर मतैक्य नहीं है.  जूलियस अफ्रीकानस (160-240 ई.) उस काल के एक विद्वान् थे जो बाद में चर्च के इतिहास के संभवतः पहले अध्येता भी हुए, जूलियस अपने समय में ईसाई बनने वाले पहले कुछ नामी व्यक्तियों में रहे. उन्होंने ही ईस्वी सन को लैटिन (तदनुसार अंग्रेजी भी ) में एडी (अन्नस डोमिनी - हमारे प्रभु का वर्ष) का नाम दिया. उनकी गणना से मसीहा का जन्म सृष्टि के पाँच हजार पाँच सौंवें वर्ष में हुआ था. बाद के इतिहासकारों ने जूलियस की गणना को बिना गुण-दोष परखे स्वीकार कर लिया. जूलियस का मानना था कि ईसा हेरोड के राज्य-काल के अंतिम वर्ष में जन्मे थे, जैसा ल्यूक और मैथ्यू के सुसमाचारों में लिखा है. वास्तव में हेरोड की मृत्यु 4 ई. में हुई थी.

ईसा के जन्म और शैशव को छोड़ कर हम वयस्क हो चुके ईसा को जानने और उनके द्वारा छेड़े जन-आंदोलन को समझने के प्रयास करते हैं. ईसा ने अपने उपदेशों में प्रभु को मानवता का पिता बताया है. ईसा के पहले, तनख़ में बस एक बार ईश्वर को पिता कहा गया है. न्यू टेस्टामेंट में जीसस हमेशा ईश्वर को पिता कहते देखे जाते हैं. 

ईसा ने ईश्वर के लिए सदा आरमाइक शब्द 'अब्बा' का प्रयोग किया था, जिसका यहूदी परम्परा में ईश्वर के लिए कभी प्रयोग नहीं हुआ था.

इस नवीनता को स्थापित रखने के लिए न्यू टेस्टामेंट के यूनानी अनुवाद में भी इस आरमाइक शब्द 'अब्बा' को बरकरार रखा गया था. मानवता का पिता ईश्वर है, यह जीसस के सन्देश का एक महत्वपूर्ण अंग था. इसे 'प्रभु की प्रार्थना' (द लॉर्ड्स प्रेयर) में भी देखा जाता है जो जीसस ने अपने शिष्यों को सिखाया था. लेकिन इस प्रार्थना के यूनानी अनुवाद में अब्बा की जगह यूनानी शब्द 'पाटेर' आ गया और शायद इसी के चलते अधिकांश ईसाइयों के लिए 'अब्बा' अपरिचित रह गया.

सुसमाचार (गॉस्पेल) ईसा के जन्म और शैशव के बाद के दो दशकों पर मौन हैं. ईसा की अगली चर्चा उनके सेवा-काल (मिनिस्ट्री) की है, जब वे जनता को उपदेश दे रहे होते हैं या रोगियों को चंगा करते दीखते हैं. 28-29 ई. में, ल्यूक के अनुसार, ईसा के रिश्ते के एक भाई जॉन द बैप्टिस्ट ने भी आम जनता को उपदेश देना शुरू किया था. इस के जल्द बाद ईसा उपदेश देते मिलते हैं. ल्यूक के अनुसार ईसा लगभग तीस के थे जब उन्होंने उपदेश देना शुरू किया था. 

यह उपदेश काल जॉन के सुसमाचार के अनुसार तीन वर्ष का था और शेष तीन सुसमाचारों के अनुसार एक वर्ष का.  उपदेश के क्षेत्र में, शायद जॉन (द बैप्टिस्ट) और ईसा एक सीमा तक प्रतिद्वंद्वी थे, क्योंकि चारो सुसमाचार इस बात पर काफी जोर देते हैं कि ईसा जॉन से अच्छे और अधिक प्रभावोत्पादक उपदेशक थे. मैथ्यू, ल्यूक और मार्क के अनुसार ईसा का उपदेश-काल मुख्यतः पैलेस्टीन के उत्तरी भाग गलीली में बीता था और अंत में वे दक्षिण की तरफ आए थे. जॉन के सुसमाचार में ईसा के जूडेआ में उपदेश देने की बात है.

ईसा अपने उपदेशों में कैसे शब्दों का व्यवहार करते थे इस पर चारो सुसमाचार एक मत नहीं हैं. मैथ्यू, ल्यूक और मार्क के सुसमाचारों में कुछ समानाताएं हैं जो प्रायः जॉन के लिखे में नहीं मिलतीं. चारो सुसमाचार पहली सदी ई. के लिखे हैं लेकिन जॉन ने शायद शेष तीनो के एकाध दशक बाद लिखा. मैथ्यू, ल्यूक और मार्क के सुसमाचारों को एक साथ सिनॉप्टिक गॉस्पेल्स कहा जाता है. सिनॉप्टिक गॉस्पेल्स में ईसा ने कभी अपने को ईश्वर का पुत्र नहीं बताया है. जॉन के सुसमाचार में उन्हें ऐसा बोलते दिखाया गया है. 

ईसा ने "मनुष्य का पुत्र" का कई बार प्रयोग किया है. जैसे, एक बार सबात (यहूदी सप्ताहांत) पर बोलते हुए ईसा ने कहा था सबात मनुष्य के लिए बना है न कि मनुष्य सबात के लिए, इस लिए मनुष्य का पुत्र सबात का भी स्वामी है.

कई बार ईसा अपने उपदेश का प्रारम्भ "आमेन" से करते थे, जैसे "आमेन, मैं तुमसे कहता हूँ ..".  हिब्रू लेखन में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था. संवाद के आरम्भ में आते इस आमेन को इतना महत्वपूर्ण समझा गया था कि यूनानी अनुवादों में भी इसे यथावत रहने दिया गया. सोलहवीं या सत्रहवीं सदी से इंग्लैंड में इस आमेन के लिए "वेरिली" (अर्थ: वस्तुतः) लिखा जाने लगा.

ईसा के प्रवचन में ताने, विडम्बना या परिहास को जगह मिली थी या नहीं इस पर पक्के तौर पर कुछ कहना कठिन है. हास या कभी कभी व्यंज्ञोक्ति भी उन छोटी कहानियों में देखने को मिल जाती हैं जिन्हे हम आज पैरेबल कहते हैं. यहूदी परम्परा में पैरेबल जैसी कोई चीज नहीं होती थी. ईसा के बाद हिब्रू साहित्य में पैरेबल एक साहत्यिक विधा के रूप में स्थापित होगया. क्या उपदेश का यह रूप इतना प्रभावी था कि वे यहूदी भी, जो ईसा के अनुगामी नहीं बने थे, उनकी इस शैली से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके?

जीसस के पैरेबल बहुत असरदार होते होंगे क्योंकि उसमे सामयिक समाज की ऐसी कहानियाँ रहतीं थीं जिनसे उनके श्रोता भली भाँति परिचित रहते थे. उदाहरण के लिए अलेक्सेंड्रिआ में बसे यहूदी समाज में एक धनी और एक निर्धन की अंत्येष्टि / शवयात्रा की एक प्रचलित कहानी को जीसस के द्वारा कुछ विशेष बातों पर जोर देते हुए दो विभिन्न पैरेबल में कहा गया है. उनके पैरेबल, प्रायः, आने वाले 'ईश्वर के राज्य' की ओर इशारा करते थे. और कैसे लोगों को उसके लिए तैयार रहना चाहिए. 

एक पैरेबल में, गृहस्वामी की अनुपस्थिति में उसके घर में चोरी हो गयी. जीसस ने कहा, यदि गृहस्वामी को पहले से पता रहता कि चोर किस समय आने वाले हैं तब उस समय वह अनुपस्थित नहीं रहता. तात्पर्य यह कि ईश्वर का राज्य आने वाला है, हम सबों को इस बात की सूचना (जीसस से) मिल गयी है अब हमारा दायित्व है कि हम उसके लिए तैयार रहें. यह कुछ अजीब लगता है कि ईश्वर के राज्य के आने की तुलना यहाँ चौर कर्म से हो गयी है.

आने वाले दिनों में, ईश्वर के राज्य में, सब कुछ बदल जाएगा इस आशय की कई कहानियों का संग्रह मैथ्यू में मिलता है - सरमन ऑन द माउंट शीर्षक में. ल्यूक ने अपने सुसमाचार में एक छोटा संग्रह रखा है और उन्होंने ईसा को पर्वत पर बोलते हुए नहीं दिखा आकर मैदानों में बोलते दिखाया है. ईसाइयों में मैथ्यू का वर्णन अधिक लोकप्रिय है. (गांधी जी के चलते अनेक गैर ईसाई भारतीय भी मैथ्यू के सरमन ऑन द माउंट से पूरी तरह अपरिचित न होंगे.)

सरमन ऑन द माउंट का मुख्य बिंदु है निःश्रेयस या स्वर्गसुख (बीऐटटूड). संक्षेप में, इस दुनिया के दुखी ईश्वर के राज्य में दुखी नहीं रहेंगे - जो निर्धन हैं, भूखे हैं, रो रहे हैं या जिन्हे सभी घृणा की दृष्टि से देखते हैं उन सबों के भाग्य ठीक विपरीत रूप ले लेंगे. सरमन ऑन द माउंट की यह बात चर्च के साथ सदियों से चिपकी रही है. कभी तो चर्च के ऊँचे पदाधिकारियों के समृद्ध और भव्य जीवन को देख कर यह बात याद आ जाती है, कभी यही बात दरिद्र लोगों को अपना जीवन जी पाने का सहारा बन जाती है और कभी इस से प्रभावित हो चर्च से सम्बंधित अनेक व्यक्ति आजन्म दरिद्रता की शपथ भी लेते दीखते हैं. 'ईश्वर का राज्य' वस्तुतः ईसा के सबसे महत्वपूर्ण संदेशों में रहा है. 

इस ईश्वर के राज्य का उल्लेख प्रभु की प्रार्थना (द लॉर्ड्स प्रेयर) में भी मिलता है - 'दाई किंगडम कम'. कहते हैं, ईश्वर का राज्य आने पर अपने विश्वास के चलते ही ईसा यहूदियों के (मूसा के दिए) नियमों की अवहेलना कर देते थे: ईश्वर का राज्य आएगा और तब नए नियम भी आएँगे. 

ईसाई चर्च के प्रारम्भिक वर्षों में एक बहुत महत्वपूर्ण विषय रहा था, ईश्वर का राज्य कब आएगा?
(समाप्त) 

~ सचिदानंद सिंह Sachidanand Singh की टाइमलाइन से। 

ईसाइयत का इतिहास (7) 
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/7_30.html
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