कार्थेज एक पूँजीवादी समृद्ध राज्य था, जहाँ अधिकांश व्यापारी रहा करते थे। उनके अपने मंदिर और देवियाँ थी, अपना गणतंत्र था। उनके पास इतना धन था कि वे दो दशक तक रोमनों से युद्ध का खर्च वहन करते रहे।
वहीं रोम एक सामंतवादी गणतंत्र था, जिनका प्रमुख उद्योग कृषि और उससे जुड़े उद्योग जैसे शराब बनाना था। रोम का धन कुछ विशिष्ट लोगों के पास केंद्रित था। ज़ाहिर है जितनी खुशहाली कार्थेज़ में थी, उतनी रोम में नहीं थी। मगर कुछ लोग बहुत ही अधिक रईस थे।
जो ‘सेंट्रल हीटींग’ आज यूरोप में दिखती है, वह अपने ढंग से रोम के रईसों ने बना ली थी। वहाँ एक आग की भट्ठी से दीवालों के साथ बने खोखले स्तंभों को गरम किया जाता, जिससे पूरा घर गरम रहता। उनके स्नानागारों में भी ऐसी व्यवस्था थी।
अपना वैभव बढ़ाने के लिए रोम को कार्थेज पर विजय पानी ही थी।
ई. पू. 207 में हानिबल के भाई हस्त्रुबल एक विशाल सेना लेकर इटली की ओर बढ़ने लगे। मेटॉरस नदी के किनारे उनकी रोमन सेना से भिड़ंत हुई, जिसमें हस्त्रुबल मारे गए। विजयी रोमन जनरल नीरो, हस्त्रुबल का सर हाथ में लेकर आए और उनके भाई हानिबल की छावनी के आगे एक खूँटे पर लगा आए। संकेत स्पष्ट था कि अब लड़ाई आक्रामक होगी।
स्पेन के विजेता जनरल शिपियो ने ठान लिया कि अब अफ़्रीका में कार्थेज के घर घुस कर हमला करेंगे। कुछ हज़ार की सेना लेकर ही वह ई. पू. 202 में अफ़्रीका में दाखिल हो गए। वहाँ ज़ामा नामक स्थान पर कार्थेज़ के हाथी-सेना ने रोमनों पर आक्रमण कर दिया। मगर इस बार शिपियो की रणनीति तैयार थी। उन्होंने जोर-जोर से बिगुल बजाना शुरू किया, जिसे सुन कर हाथी बदहवास होकर भागने लगे और उन्होंने अपनी ही सेना को रौंद दिया।
हानिबल को जब खबर मिली, वह इटली से अपनी सेना लेकर अपना घर बचाने अफ़्रीका की ओर भागे। लेकिन, यहाँ रोमनों ने उनको चक्रव्यूह में फाँस लिया। हानिबल की सेना बुरी तरह मारी गयी, और स्वयं हानिबल जैसे-तैसे जान बचा कर भागे।
आखिर रोमनों की न सिर्फ़ जीत हुई, बल्कि कार्थेज पर उन्होंने ढेरों जुर्माने और प्रतिबंध लगा दिए। भूमध्य सागर पर रोम का कब्जा हो गया, और खूब धन भी मिला। इतना ही नहीं, इस युद्ध का विस्तार इतना अधिक था, कि रोमन साम्राज्य अब पूरे दक्षिण यूरोप में फैल चुका था। इटली से स्पेन और उत्तर अफ़्रीका तक उनकी सत्ता थी। गॉल और अन्य यूरोपीय समुदाय आज की जर्मनी-ऑस्ट्रिया के जंगलों में सिमट गए।
इस युद्ध के बाद रोम विश्व-महाशक्ति बन गया। अब उनकी नज़र पूरब की ओर थी। यूनान की ओर। वहाँ क्या चल रहा था?
यूनान को तो फ़ारस की सेना ने पाँचवी सदी में ध्वस्त कर दिया था। सभी मंदिर तोड़ दिए थे। जब सिकंदर आए, तो उन्होंने यूनान को एकीकृत कर फ़ारस से खिलाफ़ जंग छेड़ा। वहाँ के राजा दारा तृतीय को शिकस्त देकर पूरे मध्य एशिया और मिस्र पर अपना राज कायम किया। मगर सिकंदर तो ई. पू. 323 में ही चल बसे, यूनान पुन: बिखर गया। मिस्र अलग, मैकडोनिया अलग, मध्य एशिया अलग। सबके अपने-अपने राजा, और आपसी षडयंत्र।
यह बिखरा हुआ यूनान तो जैसे रोमनों का ही इंतज़ार कर रहा था। अगले सात सौ वर्षों में रोमन साम्राज्य को यूनान को पूरी तरह पचा कर एक ‘ग्रीको-रोमन संस्कृति’ को जन्म देना था।
द्वितीय प्युनिक युद्ध के बाद ही रोमनों ने यूनान पर आक्रमण शुरू कर दिए। ख़ास कर ई. पू. 190 में जब रोम यूनान में घुसा, तो मालूम पड़ा कि उनके पुराने शत्रु हानिबल भी वहीं छुपे बैठे हैं। जब तक रोमन सेना काला सागर के निकट उनके ठिकाने तक पहुँचती, हानिबल ने आत्महत्या कर ली।
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (15)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/15.html
#vss
No comments:
Post a Comment