रोमन इतिहास पर आगे लिखने बैठा ही था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। कुछ बड़े कार्टन लेकर एक व्यक्ति आए, जो मेरी ही ऑर्डर की हुई एक अलमारी लेकर आए थे। उन कार्टनों से अलमारी तो नहीं निकली, ढेर सारे तख्ते, पेंच, तुकमे निकलते गए। हर तख्ते पर संख्या अंकित थी, और एक पुस्तिका थी कि अलमारी बनानी कैसे है। सुबह तो अलमारी बनाते ही निकल गयी।
खैर, पसीना पोछते हुए रोम की कहानी को दो कदम आगे बढ़ा देता हूँ। दक्षिण में जैसे भारत के नीचे श्रीलंका है, इटली के नीचे सिसली है। जो लोग मारियो पुजो की ‘गॉडफादर’ पढ़ या देख चुके होंगे, वे जानते होंगे कि यह दुनिया भर के माफ़िया का गढ़ माना जाता है। कहते हैं, यहाँ बच्चा पैदा ही डॉन बनने के लिए हुआ करता था।
भूमध्य सागर में स्थित होने के कारण यह हर तरह से एक माकूल जगह थी, जहाँ से व्यापार और युद्ध दोनों नियंत्रित होता। इस पर यूनानियों का अधिकार रहा था, उसके बाद उत्तरी अफ़्रीका के कार्थेज इस पर प्रभाव डालने लगे, अब रोम यहाँ दखल चाहता था। युद्ध तो होना ही था।
यह ईसा से तीन सौ वर्ष पूर्व की बात है, जब आज की तरह जहाज नहीं बने थे। मानव-चालित लंबे नाव होते थे, जिसे ‘गैली’ (Galley) कहा जाता है। इसे बनाने और चलाने में उत्तर अफ्रीकी निपुण रहे थे। इस कारण भूमध्य सागर में लेबनान से आज के स्पेन तक की कड़ी को जोड़ने में इनकी बड़ी भूमिका थी। यह वाइकिंग और चोलों से हज़ार वर्ष पुरानी बात है, जब यूँ समुद्र में युद्ध कम हुआ करते थे। न ही कोई गोला-बारूद था, कि नौसैनिक उससे लड़ते।
फिर, कैसे लड़े?
रोमनों और कार्थेज के मध्य यह युद्ध जिसे प्रथम प्यूनिक युद्ध कहा गया, तेईस वर्षों (264-241 ई. पू.) तक चला। इसमें लड़ने के दो मुख्य तरीके थे। पहला यह कि एक लंबी नाव आकर दूसरे को टक्कर मारती, और डुबाने का प्रयास करती। कभी-कभार वे नाव साथ लगा कर लड़ने का प्रयास करते, मगर संतुलन नहीं बन पाता। बेहतर यही था कि तेजी से नाव चलाते हुए, दूसरे नाव को बीच से दो फाँक कर दिया जाए। इसके लिए नावों में दोनों तरफ़ तेज नोक लगाए जाते।
मगर, यह तो संयोग की बात थी कि कौन कैसी टक्कर मारता है। कोई बेहतर उपाय ढूँढना था। वहाँ रोमनों ने एक खोज की। उन्होंने नाव पर एक पल्लेदार पुल बनाया, जो सीधे दूसरे जहाज पर गिराया जा सकता था। इसे ‘कॉर्वस’ (Corvus) कहा गया। अब रोमन वह पुल दूसरे जहाज पर गिरा देते, और तलवार लेकर उसी तरह लड़ते जैसे वह ज़मीन पर लड़ते आ रहे थे।
मूलत: रोमन जानते थे कि वे नावों की लड़ाई में जीत न पाएँगे। इसलिए, उन्होंने इस कॉर्वस के सहारे एक जल-युद्ध को थल-युद्ध में बदल दिया। हाल में सिसली द्वीप के निकट समुद्र की तलहटी में मिले कार्थेज जहाज उस युद्ध की गाथा कहते हैं, जब रोमनों ने कार्थेज पर लंबे संघर्ष के बाद विजय प्राप्त की।
मेरे मन में इस युद्ध को पढ़ते हुए दो प्रश्न उठे थे। पहला यह कि रोमनों के कई मुक्त दास यह युद्ध और इससे पूर्व के युद्ध लड़े थे। आखिर ये गुलाम लाते कहाँ से थे? मध्य एशिया के गुलाम बाज़ारों से या कहीं और से? इस पर विचित्र तथ्य मिला। इनके कई गुलाम यूरोपीय गॉल थे। वही गॉल, जिन्होंने रोम को बर्बाद कर दिया था। यह कमाल का बिजनेस था। रोमन शराब बना-बना कर इन गॉल को बेचते, और बदले में गॉल उन्हें अपने ही लोग गुलाम के तौर पर देते। उन्हीं गुलामों को खेतों में लगा दिया जाता, जिससे शराब तैयार होती!
दूसरा प्रश्न यह आया कि रोमनों ने आखिर जहाज बनाना सीखा किससे? इसका उत्तर और भी चौंकाने वाला है।
रोमनों को कार्थेज के कुछ बह कर आए टूटे-फूटे नाव मिल गये। उन्होंने उन नावों के पुर्जे-पुर्जे अलग कर लिए। उन्होंने देखा कि कार्थेज ने बहुत ही सलीके से हर तख्ते पर अंकित कर रखा था कि वह किस तख्ते से जुड़ेगा। उन्होंने हू-ब-हू नकल बनानी शुरू कर दी, जैसे मैं आज आलमीरा बना रहा था। उन्होंने अपने शत्रुओं से ही उन्हें हराने का नुस्ख़ा सीख लिया।
आगे क़िस्सा है कि जब कार्थेज की सेना हार कर लौटी तो एक सेनापति के पुत्र हानिबल ने रक्त में हाथ डाल कर सौगंध ली कि वह रोम का अंत कर देंगे। सौगंध तो फिर भी जोश की बात है, उन्होंने रोमनों को जल के रास्ते नहीं, बल्कि थल के रास्ते हराने का निर्णय लिया। ऐसे युद्ध की कल्पना तो रोमनों ने भी नहीं की थी, जब समुद्र के दूसरी तरफ़ दिख रहे कार्थेज उत्तर के आल्प्स से धमक पड़े। जैसे श्रीलंका से कोई सेना अगर हिमालय के रास्ते आ जाए!
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (12)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/12.html
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