“मित्रों! रोमवासियों! देशवासियों! मेरी बात ध्यान से सुनें
मैं आज सीज़र को दफ़नाने आया हूँ, उनकी प्रशंसा करने नहीं
एक व्यक्ति के द्वारा की गयी बुराई उसके बाद भी कायम रहती है,
अच्छाई अक्सर अस्थियों के साथ दफ़न हो जाती है।
यही सीज़र के साथ भी हो।”
[Friends, Romans, countrymen, lend me your ears;
I come to bury Caesar, not to praise him.
The evil that men do lives after them;
The good is oft interred with their bones;
So let it be with Caesar.]
- एन्टॉनी (विलियम शेक्सपीयर के नाटक ‘द ट्रैजेडी ऑफ जूलियस सीज़र’ में)
मैंने भोजन की मेज पर, यात्राओं में, शराबखाने में, गाहे-बगाहे यूरोपीय लोगों से जूलियस (यूलियस) सीज़र के बारे में बात की। पूछा कि वे क्या सोचते हैं। कुछ मुस्कुराए, कुछ गंभीर हुए, कुछ हँसने लगे, कुछ सोचने लगे, कुछ को ख़ास कहना नहीं था। यह नाम सिर्फ़ रोम या इटली से नहीं जुड़ा, यह संपूर्ण पाश्चात्य सभ्यता का एक सूत्र है।
रूस में सीज़र से ज़ार शब्द की उत्पत्ति हुई तो नीदरलैंड में कैसर की। इस एक नाम से न जाने कितने लोगों ने कितने वर्षों तक राज किया। लेकिन, ताज्जुब इस बात का है कि इस नाम के मूल व्यक्ति ने बमुश्किल पाँच बरस से कुछ अधिक ही शासन किया। भला इन पाँच वर्षों में ऐसा क्या कर गए कि इक्कीस सदियों बाद भी यह नाम गूँज रहा है?
किताबों से इतर जनमानस को समझ कर भी यही लगता है कि सीज़र कोई आदर्श व्यक्ति नहीं थे। लेकिन, उन बेईमान, कूटनीतिज्ञ, और भ्रष्ट व्यक्ति को ही दुनिया ने आदर्श बना लिया। एक पाँच साल के बच्चे को सीज़र की कहानी से दूर रखना चाहिए, मगर जब वह बड़ा हो जाए और उसे इस दुनिया में जीने की डगर तलाशनी हो, उस समय शायद जूलियस सीज़र काम आए।
सीज़र के जीवन से मिलेगी ‘स्ट्रीट-स्मार्ट’ बनने की और भीड़ में आगे निकलने की बुद्धि। रसातल से शीर्ष पर पहुँचने की बुद्धि। हार को जीत में बदलने की बुद्धि। खाली फटी जेब को नोटों से भरने की बुद्धि। बँधे हाथों से आक्रमण की विधि। पासा (dice) चलने की बुद्धि, और उसे पलटने की बुद्धि।
हालाँकि भारतीयों के लिए कूटनीति कोई नयी चीज नहीं, और सीज़र से सदियों पूर्व ही कौटिल्य आ चुके थे। पंचतंत्र भी लिखा जा चुका था। साम, दाम, दंड, भेद की स्थापनाएँ मौजूद थी, और प्रयोग होते रहे थे। लेकिन, उसमें जूलियस सीज़र को जोड़ देने से आज की पश्चिम-संचालित विश्व-राजनीति की जड़ें समझने में सुविधा होगी।
क्रोनी-कैपिटलिज्म जैसे भारी-भरकम शब्दों की मुहर मिल जाएगी। लोकतंत्र के सभी लूप-होल एक साथ उभर कर दिख जाएँगे। जनता की ताकत का दुरुपयोग किस हद तक जा सकता है, एक व्यक्ति को देवता बना दिए जाने से क्या होता है, सीज़र के बाद इतिहास के कई तानाशाहों की कुंडली निकल कर आ जाएगी।
सीज़र जैसा बनने से अधिक सीज़र की ग़लतियाँ समझी जा सकती है। जैसा ऊपर एंटोनी का कथन कहता है कि सीज़र की अच्छाई तो उनकी अस्थियों के साथ चली गयी। उनकी बुराई दुनिया में न सिर्फ़ कायम रही बल्कि गुणात्मक रूप से बढ़ती गयी। उनकी वह काली छाया आज भी दुनिया पर मंडरा रही है।
जब जूलियस सीज़र जवान हो रहे थे, उस समय रोम की सत्ता के लिए उनके फूफा मारियस और महत्वाकांक्षी सुल्ला के मध्य द्वंद्व चल रहा था। वहीं क्रैसस और पोम्पे नामक दो व्यक्ति रोम की गद्दी के लिए तिकड़म लगा रहे थे। उस समय सीज़र को शायद अपनी मंजिल दिख नहीं रही थी। क्योंकि अगर उन्हें मंजिल दिख जाती तो वह उसे जीत कर कहते-
Veni, Vidi, Vici!
[वेनी विडी विची]
मैं आया, मैंने देखा, मैंने जीता!
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (19)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/19.html
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