यह इतिहास-कथा कार्थेज के ध्वस्त करने से शुरू हुई थी। हमने पढ़ा कि कार्थेज के नायक टाइबेरियस और उनके भाई गेयस ने गरीबों के अधिकार की लड़ाई लड़ी। नतीजतन वे कुलीनों द्वारा मारे गए।
कार्थेज़ उत्तरी अफ़्रीका के नुमिडिया राज्य (आज के मोरक्को, अल्जीरिया और लीबिया) के अंतर्गत आ गया। वहाँ के राजा मिसिप्सा रोम को खर्चा-पानी भेज देते थे। जब वह मृत्यु-शय्या पर थे, तो उन्होंने अपने दो पुत्रों और एक दत्तक-पुत्र जुगुर्था को बुला कर कहा, “तुम तीनों ही राजा बनने के योग्य हो। लेकिन, यह संभव नहीं। मेरा विचार है कि तुम यह राज्य तीन हिस्से में बाँट लो”
राजा के मरते ही जुगुर्था ने अपने एक भाई हिम्पसाल को मरवा दिया। अब रोमन सिनेट ने इन बचे हुए दो भाइयों के मध्य बँटवारा कर दिया। जुगुर्था महत्वाकांक्षी थे। ई. पू. 112 में उन्होंने अपने भाई अदिरबाल के राज्य पर आक्रमण कर दिया, और वहाँ के तमाम इतालवी व्यापारियों को मार डाला। रोमन जनता आग-बबूला हो गयी, और नुमिडिया पर आक्रमण का माहौल बनने लगा।
जुगुर्था रोम की कमजोरी अच्छी तरह जानते थे। जब रोमन जनरल बेस्टिया उनसे लड़ने आए, उन्होंने उन्हें रिश्वत दे दी। कुछ प्रमुख रोमन नेताओं की भी जेब भर दी। घूस खा चुके सांसदों ने जुगुर्था को माफ़ करने की पैरवी कर दी। जनता अब इस भ्रष्टाचार से पक चुकी थी। बाज़ारों में यह चर्चा हो रही थी कि रोम में अब एक भी ईमानदार व्यक्ति नहीं बचा।
उस समय मसीहा बन कर उभरे एक फौजी जनरल मारियस। उन्होंने जनता के मध्य खड़े होकर कहा,
“ये कुलीन अपने पूर्वजों की संपत्ति पर मौज कर रहे हैं। भ्रष्टाचार में डूब चुके हैं। मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ। मेरे पास नौकर नहीं हैं, रसोइया नहीं है, तो ये मुझे असभ्य कहते हैं। मेरे अंदर रोम का रक्त और पसीना है, और मैं अपने भाइयों के नरसंहार का बदला उस जुगुर्था से अवश्य लूँगा”
मारियस की लोकप्रियता देखते हुए सिनेट को उन्हें प्रधान चुनना पड़ा, और वह सेना लेकर नुमिडिया की ओर निकल पड़े। मारियस की ख़ासियत थी कि वह सेना में किसी सेनापति की तरह नहीं रहते। बल्कि सभी के साथ बैठ खाना बनाते, गड्ढे खोदते, तंबू गाड़ते। ऐसा रोमनों ने कभी देखा नहीं था कि रोम का प्रधान यूँ उनके साथ बैठ गप्पें लड़ा रहा हो।
इस नयी ऊर्जा के साथ रोमन सेना ने आसानी से नुमिडिया पर विजय पा ली, और जुगुर्था भाग कर पड़ोसी राज्य में अपने ससुर के पास चले गए। मारियस के सहयोगी सुल्ला को जब यह खबर हुई, उन्होंने जाकर धमकाया कि जुगुर्था को उनके हवाले कर दिया जाए।
वह जुगुर्था के बाल खींच कर मारियस के पास ले गए, और साथ ही कुछ यूँ माहौल बनाया कि वही ज़ंग जीत कर आए हैं। रोम में उन्होंने एक मूर्ति भी बनवायी जिसमें सुल्ला जुगुर्था को गिरफ़्तार कर रहे थे। यह देख कर प्रधान मारियस ठगा सा महसूस करने लगे कि सारी लड़ाई उन्होंने लड़ी, क्रेडिट सुल्ला ले गया।
इसका दूसरा पहलू यह था कि मारियस सर्वहारा वर्ग से और गरीब परिवार से उठ कर प्रधान बने थे। जबकि सुल्ला कुलीन वर्ग से थे, और राजनीति बेहतर समझते थे।
जो भी हो, यह बात अब स्पष्ट दिखने लगी थी कि सेनापतियों के हाथ में शक्ति केंद्रित हो रही थी, और सिनेट भ्रष्ट नेताओं की मंडली बन कर रह गयी थी। वहाँ की स्थिति समकालीन इतिहास में पाकिस्तान जैसी समझी जा सकती है, जहाँ सेना की ताकत भ्रष्ट लोकतंत्र से अधिक रही है, और वे समय-समय पर मिलिट्री शासन लाते रहे हैं।
जल्द ही रोम में भी यही स्थिति होने वाली थी। कुशल सेनापतियों की परीक्षा की घड़ी भी आ गयी। इस बार जर्मैनिक कबीले लूट-पाट करते हुए रोमन साम्राज्य में हर दिशा से घुस रहे थे। इतिहासकारों ने दर्ज किया है कि वे शराब हाथ में लिए, ठहाके मारते हुए किसी आसुरी सेना की तरह आ रहे थे और इतालवी लोगों को कह रहे थे,
“अपनी बीवी-बेटियों को कोई आखिरी संदेश देना है तो दे दो, मिलना-जुलना हो तो मिल लो। हम उन्हें लेने आए हैं।”
मारियस और सुल्ला भले सत्ता के लिए एक-दूसरे से नफ़रत पाले बैठे थे, मगर जब शत्रु आए, वे एक हो गए। जर्मैनिक कबीलों ने खूब रक्तपात किया, मगर रोमन सेना ने उन्हें अंतत: उन्हें मार भगाया। मारियस और सुल्ला एक बार पुन: नायक कहलाए।
अब इन दो नायकों के मध्य रक्त-पात होने वाला था। ऐसा अकल्पनीय युद्ध जब रोम पर रोमन सेना ने ही आक्रमण कर दिया।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (17)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/17.html
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