यहूदी यूँ तो शांत प्रवृत्ति के लोग थे, लेकिन उनकी अपनी महत्वाकांक्षाएँ थी। उनके दो फाँक थे। पहले कहलाते सदुसी, जो ग्रीको-रोमन संस्कृति में घुल-मिल रहे थे। दूसरे कहलाते फारिसी, जो इस मिलावट के विरोधी थे, शुद्धतावादी थे। यीशु मसीह और उनके अनुयायियों को जो सजा मिली, वह फारिसी गुट से मिली, क्योंकि उनके अनुसार यीशु लोगों को धर्म से भटका रहे थे। वहीं, रोम में आग लगने के बाद जो सजाएँ मिली, वह फारिसी यहूदियों को मिली क्योंकि वे रोम-विरोधी थे।
रोम में लगी आग के बाद सदियों से शांत पड़े यहूदी अचानक आक्रामक हो गए। इसके कारण समझने के लिए यहूदियों के इतिहास और मिथक में कुछ पीछे लौटता हूँ।
‘ओल्ड टेस्टामेंट’ के अनुसार राजा सोलोमन ने जेरूसलम की पवित्र भूमि में एक मंदिर (first temple) बनाया था। अंदाज़ लगाया जाता है कि यह ईसा से हज़ार वर्ष पुरानी बात है। ईसा से लगभग छह सदी पूर्व बेबीलोन के राजा नबूनज्जर ने यह मंदिर लूट कर इसका नाश कर दिया। सभी यहूदियों को गुलाम बना कर वह बेबिलोन ले गए।
कुछ यहूदियों ने बेबिलोन से भाग कर पुन: जेरूसलम की पहाड़ी पर एक मंदिर (second temple) स्थापित किया। कालांतर में यहूदी धीरे-धीरे अपनी पितृ-भूमि लौटे, और राजा हिरोड के समय इस मंदिर को भव्य बनाया गया। यह पूरा यूदाया प्रांत (फ़िलिस्तीन) यूनानियों और रोमनों के समय यहूदी-बहुल रहा। लेकिन, इनके पास सैन्य-शक्ति नहीं थी। ये शासकों से समन्वय बना कर, ज़रूरत पड़ी तो रिश्वत देकर, अपनी जगह सुरक्षित रखते।
इनका एक धार्मिक न्यायालय ‘सन्हेद्रिन’ था, जो इनके निजी मामलों को सुलझाता। यीशु को भी सजा इन्होंने ही दी। इनके धार्मिक निर्णयों में अमूमन रोमन प्रशासन हस्तक्षेप नहीं करते। इसके बदले वे अपने मंदिर (सिनागॉग) में रोमन राजा की वंदना करते, और रोमन राज्यपालों (गवर्नर) को खुश रखते।
लेकिन, रोम में लगी आग के बाद यहूदियों का रुख बदलने लगा। उन्हें यह आभास हुआ कि रोम की सत्ता अब खत्म होने वाली है। यह संभावना तो खैर है ही कि वाकई कुछ फारिसी यहूदियों ने षडयंत्र के तहत यह आग लगायी हो। अब यहूदियों के सामूहिक रूप से भड़कने, और संगठित होकर लड़ने की बात थी, क्योंकि यहाँ वे कमजोर थे। सदियों सर झुका कर जिए, अब क्या लड़ते? फिर भी, धर्म को लेकर कट्टर तो थे ही।
66 ई. में यूदाया प्रांत के सीजेरिया स्थान पर कुछ यूनानियों ने यहूदी सिनागॉग के बाहर चिड़ियों की बलि देनी शुरू की। यहूदी भड़क गए कि यह बदमाशी जान-बूझ कर की जा रही है। उनके पवित्र स्थल में पाप किया जा रहा है। उस समय यूदाया के रोमन गवर्नर फ्लोरस से उनकी नाराज़गी चल रही थी, क्योंकि उन्होंने यहूदियों पर कर बढ़ा दिए थे। सिनागॉग का ख़ज़ाना भी उन्होंने जब्त कर लिया था।
यहूदियों के एक युवा धर्मगुरु इलीज़ार ने कहा, “जागो भाइयों! कब तक इन रोमनों की जी-हज़ूरी करते रहोगे। यह हमारी पवित्र भूमि है। निकाल बाहर करो इन अपवित्र लोगों को”
यहूदी पूरे प्रांत में दंगे करने लगे। रोमन राजाओं की वंदना की प्रथा बंद हो गयी। खुले-आम गवर्नर को ‘भिखारी’ कहते, और उनका भेष धारण कर कटोरा लेकर घूमते।
जब नीरो तक खबर पहुँची, तो क़िस्सा है कि वह हमेशा की तरह गा-बजा रहे थे। उन्होंने देखा कि जहाँ बाकी लोग वाह-वाही कर रहे हैं, उनके सिपहसलार वेस्पासियस खर्राटे मार रहे हैं। उन्होंने उनको उठा कर यूदाया भेज दिया कि अगर संगीत नहीं पसंद तो वहाँ जाकर दंगे संभालें।
वेस्पासियस और फ्लोरस ने मिल कर यहूदियों को सूली पर लटकाना शुरू किया। लेकिन, इससे यहूदी एकजुट ही होते गए, और रोमनों पर भारी पड़ते गए।
जब 68 ई. में नीरो ने आत्महत्या कर ली, तो रोम में कोई शासक नहीं बचा। उस एक साल के अंदर चार शासक आए। ज़ाहिर है कि एक-दूसरे को मार कर ही आए। आखिर वेस्पासियस को ही रोम संभालने लौटना पड़ा। उन्होंने अपने पुत्र टाइटस को यहूदी-विद्रोह की ज़िम्मेदारी सौंप दी।
70 ई. में टाइटस ने ऐसा कत्ल-ए-आम मचाया कि यहूदी लगभग पूरी तरह से साफ़ हो गए। उस ख़ौफ़नाक मंजर का वर्णन करने वाले जोसेफस के अनुसार ग्यारह लाख यहूदी मारे गए। उनका पवित्र मंदिर तोड़ दिया गया। पूरे यूदाया में एक यहूदी नहीं बचा। जो प्रवासी थे, उन्होंने ही थोड़ा-बहुत धर्म बचा कर रखा। उनमें भी कई अपनी पहचान छुपाने के लिए मूर्ति-पूजक बन गए।
यीशु के अनुयायियों ने इस घटना को ईश्वर का दंड माना, जो यीशु को सजा देने के कारण मिला। कई यहूदी चुपचाप इस नए पंथ से जुड़ गए। किताब (ओल्ड टेस्टामेंट) एक ही थी, और यीशु वाली बात उन्हें ठीक लग रही थी। उन्हें लगा कि वाकई यीशु ईश्वर के दूत थे, तभी उनकी अवहेलना से यह भीषण तबाही आयी।
यूँ कहा जा सकता है कि इस घटना के बाद यहूदा के वंशज यहूदी और ईसा के अनुयायी ईसाई दो अलग-अलग धर्मों का रूप लेने लगे।
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सदुसी- Sadducee, फारिसी- Pharisee
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - तीन (3)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/3_30.html
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