यह कहना सही नहीं होगा कि सीज़र ने लोकतंत्र का खात्मा किया। अगर लोकतंत्र मजबूत हो तो किसी भी व्यक्ति में दम नहीं कि उसे हिला सके। लेकिन, जब भ्रष्टाचार के दीमक लोकतंत्र को पूरी तरह खोखला कर दें, फिर तो एक फूँक ही काफ़ी है।
ईसा पूर्व 53 के रोम में कोई भी प्रधानमंत्री नहीं बन सका, क्योंकि सभी प्रत्याशियों पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। सिसरो ने अपने एक प्रवासी मित्र को चिट्ठी लिखी,
“यहाँ आकर देखो! हमारे महान रोम गणराज्य को क्या हो गया। सड़कों पर प्रत्याशी खुले-आम धन बाँट रहे हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है। ऐसे में तानाशाही कभी भी आ सकती है।”
वोट के लिए नोट बाँटने की प्रथा आज नहीं शुरू हुई, यह लोकतंत्र की पुरानी कहानी है। जब रोम में अराजकता बढ़ती गयी, जगह-जगह दंगे होने लगे, तो सिनेट ने पोम्पे मैग्नस को बुलाया कि अब वही रोम की कमान संभालें। एक तरह से पोम्पे को तानाशाह का पद दिया गया, जो उन्होंने बखूबी सँभाला।
जूलियस सीज़र अब भी रोम से दूर गॉल में अपनी सेना के साथ थे। उस समय उनके कमांडर के रूप में एक नवयुवक आए थे- मार्क एंटोनी। जिन्होंने शेक्सपीयर के नाटक पढ़े होंगे, वे इस नाम से अनजान न होंगे। उनकी विस्तृत चर्चा आगे होगी।
बहरहाल, एक तरफ़ जूलियस सीज़र लौट कर रोम की सत्ता सँभालना चाहते थे, वहीं पोम्पे अपने इस पद से इतने खुश थे कि वे सीज़र को रोम आने नहीं देना चाहते थे। अब इन दो पूर्व ससुर-दामाद रहे मित्रों के मध्य दरार आने लगी थी। इतना ही नहीं, केटो जैसे सांसद जूलियस सीज़र को एक भ्रष्ट सेनापति मानते थे, और उन्हें बर्खास्त करना चाहते थे। लेकिन, सच यह था कि पोम्पे महान अब डूबते सूरज थे, और जूलियस सीज़र उगते सूर्य। पिछले दस वर्षों में उनसे बड़ी विजय रोमन इतिहास में कम ही लोगों ने दर्ज की थी।
ईसा पूर्व 49 तक यह तय होने लगा कि रोम पर या तो पोम्पे का राज होगा, या सीज़र का। चूँकि पोम्पे रोम में थे, वह अपनी उस जमाने की मीडिया का इस्तेमाल कर सीज़र के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करने लगे। उन्हें एक शैतान और अराजक सेनापति बताया गया। उन पर इल्जाम लगाए गए कि वह लूट का सारा धन अकेले पचा रहे हैं, अपनी सेना को रोम के ख़िलाफ़ भड़का रहे हैं। यह बातें ग़लत नहीं थी, लेकिन भ्रष्ट तो सभी रोमन कुलीन थे। सीज़र पर अगर आरोप थे, तो बाकियों पर भी थे।
जूलियस सीज़र ने गॉल प्रवास के दौरान एक और कार्य शुरू किया था। उन्होंने रोम में एक ‘शॉपिंग मॉल’ या ‘बिजनेस सेंटर’ का कंसेप्ट लाया। वह सिनेट के ठीक सामने एक बड़ा भवन बनवा रहे थे, जहाँ व्यवसायियों के कार्यालय होते, बड़े सम्मेलन होते, चुनाव चर्चा होती, साहित्यकारों का जमघट होता। यह कहलाया ‘सीज़र का फोरम’। आज यह चीजें साधारण लगेंगी, मगर प्राचीन रोम में इस तरह का व्यवसायिक केंद्र बनाना एक अलग सोच थी। बाद में तो इसके ठीक सामने घोड़े पर बैठे जूलियस सीज़र की मूर्ति भी लगी। यह एक तरह से तमाम सांसदों के मुँह पर तमाचा था कि गॉल में रह कर भी जूलियस सीज़र रोम का केंद्र संभालते हैं।
आखिर यह परिस्थिति आ गयी कि जूलियस सीज़र को देशद्रोही घोषित कर दिया गया, और उनको अपनी सेना त्यागने कहा गया। उस दिन सीज़र अपनी सेना के साथ रात्रिभोज में बैठे, और कहा, “पासा फेंका जा चुका है” (The Die has been cast).
गॉल और इटली के मध्य स्थित रुबिकॉन नदी को पार कर जूलियस सीज़र की सेना ने अपने ही राज्य पर आक्रमण कर दिया। उनकी सेना के सामने पोम्पे के सिपाही टिक न सके। सीज़र की सेना अधिक अनुशासित थी, और युद्ध की नियमित प्रैक्टिस में थी। पोम्पे दशक पहले अच्छे कमांडर रहे थे, मगर अब उनमें वह ताकत नहीं रही थी। सीज़र बड़ी आसानी से रोम में घुस गए, और तानाशाह बन बैठे।
पोम्पे भाग कर पहले स्पेन की तरफ़ गए। वहाँ सेना संगठित की। लेकिन, जूलियस सीज़र की सेना ने वहाँ भी उन्हें मात दी। आखिर पोम्पे भाग कर मिस्र चले गए, जहाँ उनके मित्र टॉलेमी तेरहवें का राज था। टॉलेमी के मंत्रियों ने समझाया कि यह पोम्पे किसी काम का नहीं, हमें जूलियस सीज़र को खुश रखना चाहिए। उन्होंने पोम्पे महान को मार डाला और उनका कटा हुआ सर लेकर जूलियस सीज़र के पास आए कि वह शाबासी देंगे। अपने पुराने मित्र और रोम के महान सेनापति पोम्पे का सर यूँ एक थाल में देख कर सीज़र रो पड़े।
उन्होंने कहा, “जिसने भी मेरे मित्र का यह हश्र किया है, उसे ज़िंदा रहने का कोई हक नहीं”
सीज़र के सैनिकों ने उन सभी मंत्रियों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं, सीज़र की मुलाक़ात मिस्र के राजा टॉलेमी की बहन से हुई। अधेड़ उम्र के जूलियस सीज़र इस बीस वर्ष की खूबसूरत युवती के पाश में जकड़े गए। उन्होंने उनके साथ रातें गुजारी, उन्हें मिस्र की रानी बनाया, और एक शिशु सीज़र का जन्म हुआ। लेकिन, इनकी जोड़ी बेमेल थी।
उम्र के लिहाज़ से सीज़र के कमांडर मार्क एंटोनी और उस युवती क्लियोपेट्रा की जोड़ी कुछ बेहतर थी। यही रोम का भविष्य भी था।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - दो (8)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/8.html
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