रोमन-कार्थेज युद्ध सत्रह वर्षों तक चला, और अपने विस्तार के आधार पर यह छोटा विश्व-युद्ध जैसा था। उत्तर अफ़्रीका से स्पेन के रास्ते आज के फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया, इटली, सिसली होते हुए पुन: उत्तरी अफ़्रीका तक यह एक वृत्त पूरा करता था। इसमें थल-सेना और नौसेना लड़े, पैदल सेना, घुड़सवारों और हाथी लड़े; गॉल, जर्मैनिक, अफ्रीकी, यूनानी, रोमन, एत्रुस्कन, सिसिलियन और कई छोटे-मोटे समूह लड़े।
डेढ़ लाख से अधिक मृत्यु हुई। तीसरे और आखिरी प्युनिक युद्ध में तो कार्थेज का नाम-ओ-निशाँ ही दुनिया से मिट गया। एक तरफ़, इस युद्ध ने रोम को भूमध्य सागर और यूरोप की सत्ता दिला दी। दूसरी तरफ़, रोमन गणतंत्र पर प्रश्न उठने लगे। जब तानाशाह चुन कर ही युद्ध जीते जा सकते थे, तो बेहतर यही था कि राजा ही चुन लिया जाए।
इस सारांश के साथ पुन: द्वितीय युद्ध में लौटता हूँ। 218 ई. पू. में यह युद्ध शुरू हुआ, और दो वर्ष बाद ही हानिबल इटली पहुँच चुके थे। उस समय रोमन तानाशाह फैबियस मैक्सिमस ने सीधे लड़ने के बजाय गुरिल्ला युद्ध का रास्ता चुना, और सफल भी रहे।
लेकिन, हानिबल स्वयं चक्रव्यूह रचने के उस्ताद थे। वह जाल बिछा कर रोमनों को घेर लेते, और मार डालते। ख़ास कर कैने की लड़ाई में पचास हज़ार रोमन मारे गए। हालाँकि उसी वर्ष रोमन जनरल मार्सिलेस ने कापुआ में हानिबल को शिकस्त दी। मगर कुल मिला कर युद्ध के पहले दशक में हानिबल का ही पलड़ा भारी रहा।
रोम की इस लगातार हार से जो उनके पुराने जीते हुए क्षेत्र थे, वहाँ भी रोमनों का भाव घटने लगा। एक उदाहरण सिसली द्वीप का देता हूँ, जिन्होंने 214 ई. में स्वयं को रोम का हिस्सा मानने से मना कर दिया।
जनरल मार्सेलस की सेना जब उन पर हमला करने पहुँची, तो वहाँ चमत्कार हो रहे थे। रोमन जहाजों पर आसमान से पत्थर गिर रहे थे। एक यंत्र जहाजों को समुद्र में ही उलट दे रहा था। सिसली बिना सेना के ही अपने विचित्र पुली और लिवरों से रोमनों को मात दे रही थी। यूँ लग रहा था जैसे हॉलीवुड फ़िल्म ‘होम अलोन’ की तरह द्वीप पर बैठा कोई बच्चा वैज्ञानिक तिकड़म लगा रहा हो।
आखिर, जैसे-तैसे तीन वर्ष के बाद सिसली पर काबू पाया जा सका, तो पता लगा कि यह सारी तरकीब वहाँ बैठे एक ग्रीक गणितज्ञ ने लगायी थी। उन्होंने ऐसे लीवर बनाए थे, जो रोमन जहाजों पर चट्टानों की वर्षा करते। वह व्यक्ति तो खैर यहाँ तक दावा करता था कि अगर उन्हें पृथ्वी से बाहर जगह दी जाए तो वह पृथ्वी को उठा सकते हैं।
किंवदंती है कि जब मार्सेलस के सैनिक उन्हें गिरफ़्तार करने पहुँचे, तो वह कोई प्रमेय हल करने में व्यस्त थे। उन्होंने कहा कि वह हल करने के बाद ही कहीं जाएँगे। क्रोधित होकर उस सैनिक ने उन्हें मार डाला।
सिसली द्वीप को तीन साल तक रोमनों से बचाने वाले वही व्यक्ति थे जो कभी उछाल (buoyancy) की खोज करने पर ‘यूरेका यूरेका’ करते हुए नंगे भागे थे। उन आर्कमीडिज़ को भला कौन नहीं जानता?
उस वर्ष 211 ई. में स्पेन के मोर्चे पर रोमनों को फिर से शिकस्त मिल रही थी। वहाँ रोमन जनरल शिपियो बंधु कमान संभाल रहे थे, मगर दोनों मारे गए। उनके चौबीस वर्षीय पुत्र पब्लियस शिपियो को कमान दी गयी। उन्होंने आखिर कार्थेजियन को मात दी, और वहीं से हानिबल की उल्टी गिनती शुरू हुई। स्पेन के रास्ते ही हानिबल की सेना के हथियार आ रहे थे। शिपियो की जीत के बाद वह रास्ता बंद होने लगा।
स्पेन वासियों ने इस युवा जनरल शिपियो को अपना राजा घोषित कर दिया, लेकिन वह जानते थे कि रोम में राजा शब्द प्रतिबंधित है। उस समय उन्होंने एक नयी उपाधि का आविष्कार किया, जो बाद में रोम के विजेता जनरलों के लिए प्रयोग होने लगा। शिपियो को मिली यह उपाधि कहलायी ‘इंपरेटर’ (imperator)।
यह पदवी रोम में गणतंत्र के खत्म होने की दस्तक थी। उन्हें शायद उस वक्त अंदेशा नहीं था कि इम्परेटर आ गए तो ‘इम्परर’ (emperor) भी आ ही जाएँगे।
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (14)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/14.html
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