चित्र: माउंट विसुवियस की राख के नीचे मिले शहर पॉम्पे के अवशेष
“यहूदियों पर यहूदी होने का कर लगाया गया। उन पर भी, जो रोमन मंदिर जाते, लेकिन छुप-छुपा कर अपना यहूदी धर्म-पालन कर रहे थे। कुछ यहूदी जैसे अन्य पंथ भी गुप्त रूप से अपनी गतिविधियाँ कर रहे थे [संभवत: आरंभिक ईसाई]। शक होने पर जाँच की जाती। मेरी किशोरावस्था की एक स्मृति है जब एक नब्बे वर्ष के बुजुर्ग को भरे दरबार में नंगा कर यह जाँच किया गया कि उसका खतना हुआ है या नहीं।”
- सूटोनियस (69-122 ई.)
रोमन राजा वेस्पासियस ने यहूदियों पर विजय के बाद एक मेहराब (Arch of Titus) बनवाया, जो आज भी रोम में मौजूद है। यह भविष्य के विजयों के लिए एक चिह्न बन गया। पेरिस के मेहराब से लेकर दिल्ली के इंडिया गेट तक इसी की नकल पर बने।
‘यहूदी कर’ लगाने के बावजूद वेस्पासियस की छवि एक कुशल राजा की है, जिनके समय नीरो द्वारा खाली किया खजाना पुन: भर गया। यह और बात है कि उन्होंने जनता पर तरह-तरह के कर लगाए। उस समय चर्मकार सार्वजनिक मूत्रालयों से पेशाब लाकर चमड़ा कमाने (tanning) में उपयोग करते थे। उन्होंने पेशाब पर भी कर लगा दिया!
वेस्पासियस जूलियस सीज़र या किसी शाही परिवार के नहीं थे। वह आम जनता से उठकर गद्दी तक पहुँचे थे। हालाँकि उन्होंने भी अपना वंश ही आगे बढ़ाया। उनके बाद उनके पुत्र टाइटस और डोमिटियन एक-एक गद्दी पर बैठे। टाइटस के समय ही यूरोप इतिहास का सबसे भयंकर विस्फोट हुआ।
79 ई. में नेपल्स की माउंट विसुवियस ज्वालामुखी फट पड़ी, और शहर के शहर भस्म हो गए। हज़ारों लोग पाषाण रूप में बदल गए। कुछ की तो खोपड़ियाँ शीशे में बदल गयी। सदियों बाद जब यह राख हटाई गयी, तो उनके नीचे पूरा शहर और सैकड़ों कंकाल जहाँ-तहाँ बिखरे मिले। उसके बाद से यह ज्वालामुखी शांत है, लेकिन दुनिया के सबसे ख़तरनाक ज्वालामुखियों में माना जाता है। अगर यह आज फट पड़ा तो कम से कम तीन लाख लोग मारे जाएँगे।
टाइटस के बाद आए उनके भाई डोमिटियन ने लगभग सत्रह वर्ष तक राज किया। उन्हें शक था कि वह मारे जाएँगे। इस कारण अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी पर विश्वास नहीं करते। हमेशा अपने तकिए के नीचे तलवार रख कर सोते। माना जाता है कि एक दिन उनकी पत्नी ने ही वह तलवार गायब कर दी, और डोमिटियन मारे गए। उसके बाद एक नर्वा नामक साठ वर्ष के सिनेटर शासक बने, जो दो वर्ष बाद यूँ ही मर गए।
ऐसा लग रहा था कि रोम अपनी अंतिम साँसें ले रहा है। हर दूसरे प्रांत में विद्रोह हो रहे थे। ख़ास कर सुदूर प्रांत जैसे ब्रिटेन संभालना कठिन हो रहा था। रोम का दीया बुझने ही वाला था, कि एक बार फड़फड़ाया।
98 ई. में ट्राजन नामक एक योद्धा को गद्दी पर बिठाया गया। उन्होंने पद संभालते ही अपने सेनापति को तलवार देते हुए कहा,
“अगर मैं अच्छा काम करूँ, तो यह तलवार मेरी रक्षा में प्रयोग करना। अगर मैं बुरा काम करूँ, तो इसी तलवार से मेरा गला काट देना”
इस शपथ के साथ ट्राजन ने रोम को पुन: अपना गौरव लौटाया। वह स्वयं युद्घभूमि पर जाते, और जूलियस सीज़र की तरह जीत दर्ज़ कर लौटते। उन्होंने डैन्यूब पर एक पुल बनाया, और डाचिया राज्य पर विजय पाकर उसे रोम में मिलाया। उस प्रांत का नाम पड़ा- रोमानिया। यह नाम अब तक कायम है।
ट्राजन ही पहले रोमन राजा बने, जो अपनी सेना लेकर फारस तक पहुँच गए। आर्मीनिया से लेकर ईरान तक को रोम में मिलाया। वह आगे बढ़ते जा रहे थे, कि तभी खबर मिली यहूदियों ने पुन: विद्रोह कर दिया है। वह वापस लौट ही रहे थे कि सीरिया के निकट लकवाग्रस्त हुए और मर गए।
इतिहासकार मानते हैं कि फ़ारस की खाड़ी से पूर्व को निहारते ट्राजन की इच्छा संभवत: भारत पहुँचने की थी। अगर पहुँचते तो उनकी टक्कर कुषाण राजा कनिष्क के पिता विमा से होती। लेकिन, किसी रोमन राजा की यह इच्छा कभी पूरी न हो सकी।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - तीन (2)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/2_29.html
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