Saturday, 7 May 2022

प्रवीण झा / रोम का इतिहास (17)

 (चित्र: रोमन बाज़ारों में गुलाम बिक्री का चित्रण)

गणतंत्र जब बड़ा होता है, तो उसे सँभालना कठिन हो जाता है। ख़ास कर जब वे भिन्न भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों से बनी हो। दक्षिण इटली का राज्य रोम मात्र 130 वर्षों में एक विशाल राज्य में तब्दील हो गया था। उसकी संसद में जहाँ अपने आस-पास के खेतों और सड़कों की बातें होती थी, अब ऐसे प्रदेशों की बात करनी थी जो उन्होंने देखी भी नहीं थी। न उनके पास ऐसी कोई प्रशासन व्यवस्था थी, न कोई सिविल सर्विस की परीक्षा होती थी। 

कौन लुसितानिया, कौन बैक्टिका, कौन सार्डीनिया संभालता? कैसे संभालता? आय-कर संरचना कैसी होती? सेनाएँ कैसे बाँटी जाती? कुछ भी तो तय नहीं था। रोमन गणराज्य में यह माहौल उपयुक्त था एक शाश्वत चीज के लिए- भ्रष्टाचार!

लोग पैरवी लगा कर इन प्रांतों के गवर्नर बनने लगे। वहाँ जाकर खूब कमाते, और रोम के ख़ज़ांची को कहते - ‘यह प्रांत तो गरीब है। यहाँ धेला भी हाथ नहीं लगता, सब प्रशासन में ही खर्च हो जाता है।’

रोमन इतिहासकार सिसरो एक गवर्नर वेरस की चर्चा करते हैं, जिन्होंने पहले वर्ष की कमाई अपने लिए रखी, दूसरे वर्ष की कमाई वकीलों को दी, तीसरे वर्ष की कमाई भ्रष्ट न्यायाधीशों को रिश्वत दी, रोम के ख़ज़ाने में कुछ नहीं आया। मुमकिन है कि यह सुन कर आज के नेता स्मरण आ जाएँ। यह भ्रष्टाचार मानव इतिहास में तब से है, जब से पूँजी है, शक्ति है, अव्यवस्था है।

रोमन अपने छह गुणों पर गर्व करते थे- साहस, धर्मनिष्ठा, गंभीरता, दृढ़ता, आत्म-नियंत्रण और ग्लानि। ये छह के छह गुण ध्वस्त होने लगे। न सिर्फ़ गवर्नरों या रईसों में, बल्कि भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक हर वर्ग में किसी विषाणु की तरह पसरने लगा। हर कोई रिश्वत ले-दे कर काम करवाने लगा। पिसने लगी गरीब जनता।

प्युनिक युद्ध से लगभग ढाई लाख तो गुलाम ही लाए गए थे। इन गुलामों के आने के बाद खेतों और बाज़ारों में रोमन गरीब जनता के लिए वैतनिक कार्य ही नहीं बचा। यूनान से शिक्षक आने लगे, जिन्होंने रोमन बच्चों को यूनानी मूल्य देने शुरू किए। यूँ तो यूनानी मूल्य बुरे नहीं थे, लेकिन यह रोमन सामाजिक मूल्य तो नहीं था। रोमनों के बच्चे ग्रीक होते जा रहे थे।

दूसरी तरफ़ इस बड़े साम्राज्य में कई नये और विचित्र पंथ आ गए थे। सब की अपने देवी-देवता और अपने व्यवहार थे। कुछ मानव-बलि देते, कुछ यौन-संबंधों से साधना करते। रोमन भी उनकी तरफ़ खिंचे जा रहे थे, और अपने देवी-देवताओं से दूर हो रहे थे। ख़ास कर एक बैकिक पंथ का ज़िक्र आता है, जो इतने प्रभावी थे कि आखिर रोमन सिनेट ने उनके सभी अनुयायियों को मार डालने का आदेश दिया। 

लेकिन, यूनानियों के प्रभाव में रोमनों ने खूब लिखना-पढ़ना शुरू किया। कविताएँ रचना, इतिहास लिखना, नाटक लिखना, यह सब इसी काल में शुरू हुआ। लेकिन, जब इतिहास और कविताएँ लिखी जाती है, तो मानव-संवेदना भी उमड़ने लगती है। गुलामों को स्वतंत्रता दिखने लगती है, घरों में बंद स्त्रियों को मुक्ति। यूनानी शिक्षा से एक बुद्धिजीवी वर्ग तैयार होने लगा, जो रोमनों की सत्ता को हिलाने वाला था। 

हालाँकि कुछ बुलबुले आए। जैसे एक हुए कैटो (ई. पू. 234-149)। उन्होंने प्युनिक युद्ध के नायक शिपियो पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए, और सभी युद्धों के हिसाब माँगे। शिपियो गुस्से में नाक फुलाते हुए रोम छोड़ कर चले गए, और कहा कि उन्हें इस कृतघ्न रोम में न दफ़नाया जाए। 

कैटो न सिर्फ़ आर्थिक भ्रष्टाचार खत्म करने आए थे, बल्कि यूनानी प्रभाव से भी रोमनों को मुक्त करना चाहते थे। एक रसूखदार व्यक्ति पर उन्होंने इसलिए जुर्माना लगा दिया क्योंकि वह अपनी पत्नी को सार्वजनिक रूप से गले लगा रहे थे। उन्होंने कहा कि ये यूनानी हमारी स्त्रियों का शर्म-लिहाज ही खत्म कर रहे हैं।

ऐसे कितने कैटो आए और गए। एक परंपरावादी कैटो इस इतिहास में आगे भी आएँगे। उनके रोके, रोम कहाँ रुकने वाला था। 

अगर रोम ने यूनान की ज़मीन पर शासन किया, तो यूनान ने रोम के दिमाग पर। 
(क्रमशः)

प्रवीण झा
© Praveen Jha

रोम का इतिहास (16)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/16.html 
#vss 


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