अगर गॉल रोमनों का सर्वनाश कर देते तो दुनिया कुछ और होती। ज़रा सोचिए कि ईसा से चार सौ वर्ष पूर्व दुनिया कैसी थी।
भारत, फ़ारस, यूनान और उत्तरी अफ़्रीका में सभ्यताओं के कई खेप गुजर चुके थे। बुद्ध और महावीर आकर जा भी चुके थे, और पाटलिपुत्र में शिशुनाग वंश का राज था। यूरोप उस समय क्या था? असभ्य गॉल, जर्मैनिक, सेल्टिक (barbarians) का समूह?
जिस ग्रीको-रोमन सभ्यता की नींव पर आज की विकसित दुनिया खड़ी है, उसके लिए रोम का खड़ा होना ज़रूरी था। मगर रोम को हुआ क्या था? जिन कैमिलस ने अभी-अभी एक युद्ध जीता था, उनकी सेना गॉल के डर से भाग क्यों गयी?
हुआ यूँ था कि जब कैमिलस ने एत्रुस्कनों के गढ़ वेई पर आक्रमण किया, तो उन्होंने सैनिकों से कहा था कि लूट का माल आपस में बाँट लेंगे। इसी उम्मीद से सैनिक पूरे जोश से लड़े थे। मगर जब वे लूट कर आए, तो सिनेट ने इस बँटवारे पर अड़ंगा लगा दिया, और कैमिलस को भ्रष्टाचारी करार दिया। उनके अनुसार यह संपत्ति राजकीय खजाने में डाली जानी थी। कैमिलस को पद त्यागना पड़ा। नतीजा यह कि जब गॉल आए, तो सेना का जोश ठंडा था। वे भाग लिए।
इस मध्य गॉल भी रोम को लूट कर, शराब में धुत्त होकर, भूखे और हताश होने लगे। उन्हें तो जंगलों में शिकार कर, खदानों में जीवन बिता कर, लूट-पाट की आदत थी। इस रोम शहर में भला वे क्या करते? उनके पास अदम्य शक्ति थी, किंतु ज्ञान का अभाव था। वे शराब पीना जानते थे, बनाना नहीं। महल तोड़ना जानते थे, निर्माण करना नहीं। ऐसी प्रवृत्तियों की वजह से उनका असुर चित्रण किया गया होगा।
पहले तो रोमनों ने सोचा कि रोम त्याग कर वेई में ही बस जाया जाए, क्योंकि वह नगर गॉल ने तोड़ा नहीं था। लेकिन सिनेट ने विचार किया कि कुछ धन देकर उनसे वापस लौटने का अनुरोध किया जाए। रोमन स्त्रियों ने अपने आभूषण उतार कर सोना इकट्ठा किया। जो कुछ पुरानी लूट का ख़ज़ाना था, वह जमा किया गया। इस तरह लगभग एक हज़ार पाउंड सोना बाँध कर गॉल को रिश्वत देने की पेशकश की गयी।
गॉल इस डील के लिए तैयार हो गए। यूँ भी उन्हें अब रोम में बोरियत हो रही थी। हालाँकि उन्होंने सोने की माँग बढ़ा दी, और इस कारण जिन्होंने कहीं कुछ छिपा कर सोना रखा था, वह भी देना पड़ा।
जब यह सोने की नाप-तौल चल ही रही थी, उसी समय कैमिलस पहुँच गए, और सिनेट सदस्यों पर बरस पड़े-
“यह कैसी कायरता है? हमारा जीता हुआ धन आप इन असभ्यों को फिरौती में दे रहे हैं? यूँ तो वे हमें धमका कर लूटते रहेंगे।”
उन्होंने सेना की ओर मुड़ कर अपनी तलवार फेंकी और कहा,
“Ferro, Non Auto!”
(सोने से नहीं, लोहे से)
रोमन सेना अपने सेनापति को वापस देख कर जोश में आ गयी, और उन्होंने गॉल पर आक्रमण कर दिया। थके-हारे, बीमार गॉल अब लड़ने की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने उस वक्त रोम छोड़ कर निकल जाना ही उचित समझा।
इस बेइज़्ज़ती ने हालाँकि रोम को जगा दिया। वे अपने ध्वस्त नगर की एक-एक ईंट को फिर से जोड़ने लगे। अब उन्होंने अपना नया मंत्र बनाया- “आक्रमण ही सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा है।”
अगले एक सदी तक रोम लगातार आक्रमण करता रहा और अपनी सीमाएँ बढ़ाता रहा। समुद्र तट से शुरु हुआ राज्य अब आल्प्स पहाड़ों की तराई को छूने लगा था, और लगभग संपूर्ण वर्तमान इटली तक फैल चुका था। दक्षिण में भी उसने विस्तार करना शुरू किया, लेकिन इटली के आखिरी छोर तक पहुँच कर रोमन घोड़ा बिदक गया।
रोमनों ने कभी समुद्र में युद्ध करना तो क्या, एक जहाज बनाना भी नहीं सीखा था। जबकि उनका सबसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी तो समुद्रों को राजा था। उनसे ही मैंने यह कहानी शुरू की थी, और अब वक्त आ गया है कि कहानी पूरी की जाए।
अब मुकाबला असभ्य गॉल से नहीं, बल्कि कहीं अधिक सभ्य और उन्नत राज्य ‘कार्थेज’ से था।
(क्रमश:)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास (11)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/11.html
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