एक दशक पहले (2012) ब्रिटेन और यूरोप मुख्यभूमि के मध्य स्थित जर्सी द्वीप के खेतों में एक वृद्ध ‘मेटल डिटेक्टर’ लिए कुछ खोज रहे थे। छुटपन से ही उनका अनुमान था कि इस जमीन में कहीं खजाना गड़ा है। ढूँढते-ढूँढते उम्र निकल गयी, लेकिन एक दिन उनका डिटेक्टर बज उठा। उन्होंने फावड़ा लेकर खोदना शुरू किया, तो डिटेक्टर भी तेज बजने लगा। आखिर उन्हें खजाना मिल गया! जमीन में गड़े हज़ारों सोने-चाँदी के सिक्के!
अनुमान लगाया गया कि जब जूलियस सीज़र इन द्वीपों की तरफ़ सेना लेकर बढ़ रहे थे, तो गॉल कबीले ये सिक्के ज़मीन में गाड़ कर भाग गए। उसके बाद वे या तो मारे गए, या कभी लौट न सके। दो हज़ार वर्ष बाद वे सिक्के हमारी पीढ़ी ने ही देखे।
मैं इन सिक्कों की कहानी ढूँढने के लिए पुन: जूलियस सीज़र की लिखी पुस्तक ही पलटने लगा। शायद कहीं किसी और खजाने का पता मिल जाए, और मैं भी एक डिटेक्टर लेकर अपना बुढ़ापा वही ढूँढते बिताऊँ। सूत्र मिले भी होंगे, तो मैं सार्वजनिक नहीं करुँगा। किताब की बात कह देता हूँ, जो मुझे कुछ अलग नज़र आयी।
अपनी किताब में सीज़र कहीं भी ‘मैं’ यानी प्रथम पुरुष में बात नहीं करते। वह लिखते हैं- ‘सीज़र ने वहाँ आक्रमण किया’। उनका बनाया महानायक वह स्वयं हैं, लेकिन लिखते यूँ हैं जैसे वह कोई तीसरा हो। दूसरी बात कि उनकी भाषा बहुत ही सरल है, जबकि वह अपनी कविताएँ कठिन लिखते थे। कविताएँ वह कुलीनों के लिए लिखते थे, वीर-गाथा आम जनता के लिए लिख रहे थे। तीसरी बात कि अतिशयोक्ति कम से कम मेरे जैसों को नहीं पची। उनके हिसाब से लाखों गॉल मारे गए, मगर रोमन बहुत कम मरे। अब इतिहासकार भी इसे मिथ्या ही मानते हैं। दोनों तरफ़ मिला कर पाँच-दस हज़ार मरे होंगे, लाखों नहीं।
यह बात पक्की है कि जिस तरह से उन्होंने युद्ध रणनीति का वर्णन किया है, वह एक तरह से गाइड है। इसका प्रयोग रोमन शासकों से लेकर नेपोलियन तक ने किया। सीज़र पक्के रणनीतिकार थे, और युद्ध चक्रव्यूहों से जीतते थे, सिर्फ़ शक्ति से नहीं।
जैसे एक नौसेना युद्ध का वर्णन है, जब गॉल (सेल्टिक) जहाज रोमनों पर भारी पड़ रहे थे। सीज़र ने देखा कि उनके जहाज सिर्फ़ वायु से चलते हैं, कोई खेबैया नहीं। जबकि रोमन जहाजों में पतवार भी थी, और पाल भी। सीज़र ने अपने भालों में आगे एक तेज़ चाकू लगा दिया। उनसे रोमनों ने वह रस्सी ही काट दी, जो जहाज को पाल से जोड़ती थी। गॉल जहाज निष्क्रिय हो गए, और सभी मारे गए।
जर्मैनिकों से युद्ध का वर्णन है कि राइन नदी के दूसरी तरफ़ खूँखार कबीले रोमनों को नदी पार नहीं करने दे रहे थे। वे उनके नाव डुबो देते। सीज़र ने दस दिन के अंदर एक पूरा पुल ही बनवा कर नदी पर गिरा दिया। रोमन सेना आराम से पुल पार कर जर्मैनिकों पर टूट पड़ी।
रही बात इंग्लैंड की। वहाँ कोई सभ्यता थी नहीं। कई रोमन मानते थे कि यूरोप के बाद दुनिया खत्म है। आगे कोई द्वीप नहीं। कुछ सेल्टिक मछुआरे इस द्वीप को ढूँढ कर वहाँ बस गए थे। सीज़र ने दो खेपों में मुश्किल जीत की तरह चित्रण किया है, लेकिन यह सिर्फ़ समुद्री दूरी के कारण मुश्किल होगी। वहाँ कोई बड़ी सेना मिलने के अनुमान नहीं।
पूरे नौ वर्ष लगा कर आखिर सीज़र ने गॉल को हर जगह पराजित किया, और लगभग आधे से अधिक यूरोप पर कब्जा कर लिया। गॉल को भी अपनी कमजोरी का अहसास हुआ कि वे तमाम कबीले एकजुट नहीं थे। सभी जहाँ-तहाँ जैसे-तैसे लड़ रहे थे।
ईसा पूर्व 52 में वर्सगटोरिक्स नामक एक सरदार ने सभी गॉल को एकजुट करने का अभियान चलाया। सीज़र अपनी सेना लेकर गए, लेकिन युद्ध नहीं किया। रोमन सैनिक वर्सगटोरिक्स की राजधानी अलिसिया नगर के बाहर गड्ढे खोदने लगे। एक हफ्ते के अंदर पूरे नगर की परिधि में कई फीट गहरे गड्ढे खुद गए।
इतना ही नहीं, सीज़र ने उस परिधि के बाहर एक और बड़ी परिधि बनायी, और वहाँ भी उसी तरह गड्ढे खोद दिए। यानी, रोमन सेना अब वहाँ खड़ी थी, जहाँ न कोई अंदर से आक्रमण कर सकता था, न बाहर से। उनके दोनों तरफ़ गड्ढे थे। किलों के बाहर घेराबंदी (siege) तो अधिकांश युद्धों में देखी गयी, लेकिन यह दोहरी घेराबंदी अलग ही मॉडल था। एक महीने तक तीनों सेनाएँ (नगर की गॉल सेना, रोमन सेना, बाहर से आयी गॉल सेना) एक-दूसरे का मुँह देखती रही।
आखिर जब रसद खत्म होने लगी, गॉल सरदार ने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें बाद में रोम ले जाकर सूली पर लटका दिया गया। जूलियस सीज़र विजयी होकर रोम लौटे थे। जनता उनका जयगान कर रही थी। कुलीन उन्हें रास्ते से हटाने का तरीका सोच रहे थे। उनकी शंका वाज़िब थी।
जूलियस सीज़र की आँखों में उन्हें सदियों से चले आ रहे रोमन गणतंत्र का अंत दिख रहा था।
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - दो (7)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/7.html
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