वीआईपी कल्चर के नाम पर विज्ञापन जारी करते हुए, पंजाबी के गायक और कोंग्रेस नेता, सिध्दू मुसेवाला की सुरक्षा हटाए जाने का प्रचार, पंजाब सरकार का एक गलत फैसला था। सुरक्षा देने या न देने, उसे वापस लेने या न लेने का निर्णय सरकार का होता है पर किसे सुरक्षा दी जाए, किसे न दी जाए, इसका आकलन न तो राजनीतिक गुणा भाग से तय होना चाहिए, और न ही सरकार की सनक से। हर राज्य में पुलिस का, इंटेलिजेंस विभाग होता है, जिसके अधीन सुरक्षा शाखा होती है, जो वीआईपी सुरक्षा का पर्यवेक्षण करती है। किसी किसी राज्य में सुरक्षा शाखा अलग से भी हो सकती है। I इंटेलिजेंस और सुरक्षा यह दोनो ही विभाग गोपनीय कार्य करते हैं और इनकी रिपोर्ट सरकार को सील्ड कवर में या इनके प्रमुख, सूचना की गंभीरता के अनुसार, निजी तौर पर सरकार के सचिव या मुख्यमंत्री से मिल कर उस रिपोर्ट की अहमियत के बारे में अपनी बात रख देते हैं।
सुरक्षा शाखा, जिसे सुरक्षा देनी होती है उसके जीवन भय का एक मूल्यांकन करती है और फिर उस थ्रेट परसेपशन के आधार पर सुरक्षा की विभिन्न श्रेणी X, Y या Z तय करते हैं। पर यह इतनी आसानी से और नियमानुकूल होता भी नहीं है। सरकार के स्तर से भी यह बता दिया जाता है कि अमुक की सुरक्षा करनी है और उसे गनर या श्रेणिगत सुरक्षा दे दी जाए। फिर इस निर्देश का पालन होता ही है। सरकार पर भी सुरक्षा और गनर के लिए बहुत दबाव रहता है, और राजनीतिक होने के नाते ऐसे दबावों से उनके निर्णय प्रभावित होते भी हैं। इसका कारण है, गनर रखना एक प्रकार का महत्व दिखाना भी होता है और कभी कभी यह सुरक्षा का कम, भौकाल का विंदु अधिक हो जाता है।
अब आते हैं, पंजाब के सिध्दू मूसेवाला की हत्या पर। पंजाब पुलिस ने इस संबंध में कुछ प्रगति की है और उम्मीद है कि हत्या का कारण, षडयंत्र और हत्यारे मय सुबूतों के पकड़े जाएंगे और इस दुःखद अपराध का सच सामने आ सकेगा। एक बात कही जा रही है कि यह गैंग वार का परिणाम है। क्या सिध्दू मूसेवाला का भी कोई गैंग था कि वह किसी प्रतिद्वंदी गैंग के निशाने पर था। या मूसेवाला, खुद ही किसी गैंग के निशाने पर थे जो उनसे रंगदारी वसूलना चाहते थे। यदि वह किसी गैंग के निशाने पर थे तो अचानक उनकी सुरक्षा क्यों कर दी गई? क्या उनको, उनपर होने वाले थ्रेट परसेपशन से, उन्हे आगाह किया गया था कि अब जीवन भय का खतरा कम हो गया है, इसलिए सुरक्षा कम की जा रही है ? यह सब सवाल निश्चय ही, इस हत्या की तफतीश में उठेंगे और हो सकता है उठ भी रहे हों। पंजाब में ड्रग माफिया का लम्बा चौड़ा जाल है और ड्रग अपराध, सभी संगठित अपराधो को जन्म देते हैं। हो सकता है, यह भी अपराध का एक एंगल हो।
सरकार द्वारा जनहित की योजनाओं का प्रचार प्रसार, करने, विज्ञापन देने आदि पर कोई आपत्ति नहीं है क्यों कि यह सरकार का दायित्व है कि, वह लोगों को जागरूक करे और उनके हित की योजनाएं बताए। पर इधर हर सरकारी कार्य को उपलब्धि के रूप में बता कर दिखाने का जो एक नया चलन शुरू हो गया हैं उसमे सरकार एक प्रचार या पीआर एजेंसी बन कर रह गई है। मूसेवाला की सुरक्षा संबंधित निर्णय उचित था या अनुचित यह तो बाद में तय होगा, लेकिन उसका सार्वजनिक रूप से प्रचार करने और उसे एक उपलब्धि के रूप में दिखाने का सरकार का फैसला न केवल अनुचित था बल्कि यह एक प्रकार की गोपनीयता को भंग करना भी है। इंटेलिजेंस और सुरक्षा से जुड़ी सूचनाएं आरटीआई के अंतर्गत भी नहीं दी जाती हैं क्यों कि, इनके सार्वजनिक होने से अनेक समस्याएं उठ खड़ी हो सकती हैं। पुलिस या कानून व्यवस्था का मामला सनक, राजनीतिक द्वेष या जिद से नहीं हल होता है। इसे प्रोफेशनल तरीके से ही निपटाया जा सकता है और प्रोफेशनल तरीके से ही निपटाया जाना चाहिए।
(विजय शंकर सिंह)
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