अपनी आत्मकथा व्यक्ति कब लिखता है ? अमूमन ज़िंदगी के आखिरी चरण में। जब उसने जीवन में बहुत कुछ कर लिया हो। जैसे सचिन तेंदुलकर टीम में आने से पहले या वर्ल्ड कप जीतने से पहले ही लिख देते तो क्या होता ? कौन पढ़ता ? वहीं, सुनील गावस्कर ने अपनी एक आत्मकथा ‘सनी डेज़’ टीम में आने के कुछ ही वर्ष बाद लिख दी। दूसरा खंड ‘रन्स एंड रीन्स’ जब रिटायर होने लगे, उससे पूर्व लिखा।
जनता में छवि बनाने के लिए अपनी कथा पहले ही लिख दी जाती है। इसमें हर तरह के उदाहरण मिलेंगे। मोहनदास क. गांधी ने आत्मकथा तब लिख दी, जब उन्होंने भारतीय राजनैतिक जीवन में पाँच ही वर्ष बिताए थे। वही, एडॉल्फ हिटलर ने तो सत्ता में आने के पहले ही लिख लिया। बिल्कुल विपरीत ध्रुवों पर ये दोनों जन-नेता (mass leader) रहे।
सदियों पहले ऐसी प्रथा जूलियस सीज़र ने शुरू की।
दर-असल जूलियस सीज़र का प्रधानमंत्री काल विवादों से घिरा रहा। उन पर उस जमाने के ‘क्रोनी-कैपिटलिज्म’ के आरोप लगे, क्योंकि वह पूँजीपति क्रैसस की कर-माफ़ी कर रहे थे। वहीं पोम्पे जैसे बाहुबली का साथ लेकर दबंगई करने के भी। आखिर बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों ने जनता के कानों में यह भर दिया कि ये तीनों रोम का अहित कर रहे हैं।
सीज़र को रोम छोड़ कर सुदूर गॉल में जाना पड़ा। अगले नौ वर्षों तक सीज़र रोम से बाहर ही रहे। यह सीज़र स्वयं भी चाहते थे। उनके तीन ध्येय थे। पहला कि वहाँ लूट-पाट कर धन जमा कर सकें। दूसरा, गॉल को हमेशा के लिए हरा कर ‘महान’ कहलाएँ। और तीसरा, एक विशाल सेना के सेनापति बन कर रोम पर कब्जा कर लें!
वहीं गॉल में उन्होंने अपनी डायरी-नुमा विजय-गाथा लिखनी शुरू की। वह युद्ध जीत तो रहे थे, मगर उसकी व्याख्या वह कुछ यूँ करते जैसे वही आदि और अंत थे। जैसे नर्वी के युद्ध में उन्होंने लिखा है कि रोमन सेना अभी तंबू ही गाड़ रही थी, कि खूँखार गॉल कबीले टूट पड़े। सेना अपना हेल्मेट-हथियार उठाती, उससे पहले मारी जा रही थी। तभी जूलियस सीज़र स्वयं ढाल और तलवार लेकर टूट पड़े और गॉल की धूल चटा दी।
ऐसा नहीं लगता जैसे फ़िल्मों में सन्नी देवल और रजनीकांत जैसे नायक अकेले सौ लोगों को देख लेते हैं। मगर यह अतिशयोक्ति ही अब इतिहास में दर्ज है। जब सीज़र स्वयं ही इतिहासकार थे, तो जो लिखा, वही सच। और-तो-और यह लिख-लिख कर जनता तक भिजवाते रहते, और गाँव-गाँव में उनकी विजयगाथा सुनायी जाती, नाटक खेले जाते।
रोम में बैठे उनके दोस्त सिसरो, क्रैसस और पोम्पे भी जलने लगे थे। मगर उनकी अलग ही समस्या थी। सीज़र के बाद वही क्लोडियस प्रधानमंत्री बने, जिनका उनकी पूर्व पत्नी के साथ संबंध रहा था। उस समय सिसरो ने उन्हें बेइज्जत किया था। प्रधान बनते ही उन्होंने सिसरो को रोम से भगा कर उनका घर जला दिया। पोम्पे को भी डरा-धमका कर किनारे कर दिया।
घूम-फिर कर ये लोग जूलियस सीज़र के पास पहुँचे। सीज़र की बेटी जूलिया का विवाह पोम्पे से हुआ था, तो संबंध निजी भी हो गए थे। योजना बनी कि अगला प्रधानमंत्री कोई अपना ही बने। चाहे जो भी जुगत लगानी पड़े। पोम्पे और क्रैसस ने मिल कर चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया, मगर नामांकन की तिथि निकल गयी थी। सीज़र ने सुझाया कि प्रत्याशी को ही उड़ा दो, चुनाव टल जाएगा।
ईसा पूर्व 55 की एक रात प्रत्याशी डोमिटियस और केटो घर से निकले, तो क्रैसस के गुंडों ने हमला कर दिया। दोनों बुरी तरह घायल हुए और चुनाव टल गया। डर से क्रैसस और पोम्पे के ख़िलाफ़ कोई खड़ा ही नहीं हुआ। वे आराम से चुनाव जीत गए। मुझे मालूम है कि यहाँ भी भारत का कोई फ़िल्मी चुनाव याद आ रहा होगा, लेकिन ऐसी घटनाएँ सदियों से होती रही है।
इन दोनों ने रोम की सत्ता तो पायी, मगर अगले साल यह त्रिशासकदल (triumverate) ही बिखर गया। क्रैसस काढ़े (आज के तुर्की) में एक युद्घ में मारे गए। वहीं पोम्पे के साथ अजीब ही घटना हुई। एक दिन पोम्पे के साथ खड़ा एक व्यक्ति घायल हुआ, तो उनका टोगा वस्त्र खून से लथपथ हो गया। उन्होंने वह वस्त्र धुलने के लिए घर भिजवाया। उनकी पत्नी जूलिया (सीज़र की बेटी) गर्भवती थी। उन्होंने जब खून से सना अपने पति का वस्त्र देखा तो बेहोश हो गयी। पहले बच्चा खोया, और फिर मर गयी। इस तरह पोम्पे और सीज़र का रिश्ता भी टूट गया।
दोस्त मरे या बेटी, जूलियस सीज़र का फोकस इन सब बातों से नहीं हिला। वह तो वहाँ फ़तह करने जा रहे थे, जहाँ कभी रोमन सेना पहुँची भी नहीं थी। वहाँ पहुँचना रोम ही नहीं, दुनिया का भविष्य बदलने वाला था।
जूलियस सीज़र की सेना पहुँच रही थी यूरोप मुख्य-भूमि के पश्चिम स्थित द्वीप-समूह- ब्रिटेन!
(क्रमशः)
प्रवीण झा
© Praveen Jha
रोम का इतिहास - दो (6)
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2022/05/6.html
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