Friday, 4 May 2018

Ghalib - Use kaun dekh saktaa hai / उसे कौन देख सकता है / विजय शंकर सिंहः

ग़ालिब - 75.
उसे कौन देख सकता है, यगाना है वो यकता,
जो दुइ की बू भी होती, तो कहीं दो चार होता !!

Use kaun dekh saktaa hai, yagaanaa hai wo yakataa,
Jo dui kii buu bhii hotii, to kahiin do chaar hotaa !!
- Ghalib

यगाना - एकाकी , अकेला, आत्मीय
यकता - अद्वितीय, 

उसे देख पाना रंच मात्र भी सम्भव नहीं है । वह अद्वितीय तो अकेला ही है ।  यदि उसमे द्वैतता का लेश मात्र भी अंश होता तो, कहीं न कहीं उस से सामना हो ही जाता । वह एक से अधिक हो ही नहीं सकता ।

यह शेर एक दार्शनिक पुट लिये हुए है। यह ईश्वर के अस्तित्व और अद्वैतवाद के बारे में ग़ालिब का शायराना पक्ष है। उसे देख पाना सम्भव ही नहीं है। वह अकेला है, एक ही है और एकाकी है। वह अगर दो होता या अनेक होता तो वह कहीं न कहीं तो टकराता, पर वह तो अकेला है एक है। दो या अनेक होने की तो कोई बात ही नहीं।
कबीर की यह पंक्तियां पढ़ें। कबीर और ग़ालिब की कुछ रचनाओं में दार्शनिक समता है। यह एक दूसरे का सटीक भावानुवाद तो नहीं है, पर जब दार्शनिक गहराइयों में डूब कर उसका अध्ययन करते हैं तो दोनों में कहीं कहीं गज़ब की समता मिलती है।

लोग जाने इहु गीत है,
इहु तो ब्रह्म विचार !!
( कबीर )

मेरी रचनाओं को सुन कर लोग समझते हैं कि यह तो गीत है, पर यह तो ब्रह्न विचार है।
कबीर अपनी रचनाओं को ब्रह्म विचार कहते हैं, पर लोग उनकी रचनाओं को एक गीत समझते हैं। यह गीत तो हैं पर गीत की देह के भीतर जो निर्गुण ब्रह्म है वही कबीर की मूल अभिव्यक्ति है। इसी प्रकार ग़ालिब की अनेक रचनायें रूमानी दिखती हैं पर जैसे ही उनके अंदर गहराई तक पैठ कर उनकी व्याख्या की जाती है तो सूफियाना नूर रोशन होने लगता है। यह शेर भी उसी प्रकार का है।

© विजय शंकर सिंह

1 comment:

  1. Thanks a lot Vijay Shankar Singh ji
    It was excellent explanation.

    You must have done it for other ghazals also. Can you share a link to my mail bhatnagarshivendra@gmail.com or WhatsApp no. 98681-33334

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