ग़ालिब - 80.
एक हंगामे से मौकूफ है, घर की रौनक,
नौहा ए गम ही सही, नगमा ए शादी न सही !!
Ek hangaame se mauqoof hai, ghar kii raunaq,
Nauhaa e gham hii sahee, nagmaa e shaadee na sahee !!
मौकूफ - स्थगित, बर्खास्त यहाँ इसका अर्थ बिना है।
नौहा ए गम - गम के गीत
नग्मा ए शादी - खुशी के स्वर या गान .
घर की शोभा घर मे होने वाली हलचल, बातचीत, शोर ओ गुल, से ही होती है। गम के ही गीत गूंजे, अगर आंनद भरा गीत नहीं गूंज रहा हो ।
यह शेर सन्नाटे से डराता है। सन्नाटे से भागता हुआ लगता है यह शेर। ग़ालिब को सन्नाटा या खामोशी में डूबा हुआ माहौल पसंद नहीं है। वे सन्नाटे को घर की रौनक नहीं मानते हैं। वे चाहते हैं कि घर मे हलचल, शोर शराबा होता रहे। यह हलचल और शोर शराबा ही किसी के घर की रौनक होती है। शोर चाहे आंनद भरे गीतों की हो या मातम में डूबे स्वरों की, यह हलचल हमे जीवंतता का एहसास कराती है। नौहा ए ग़म हों या शादी के नग़्मे, यह तो सुख और दुख के चलायमान चक्र की नियति है। यह तो सभी के घरों में समय समय पर चलता रहता है। पर अगर यह दोनों ही समाप्त हो जाँय तो जो वीरानी या खामोशी होगी वह एक प्रकार की जड़ता होगी, मृत्यु होगी। और ग़ालिब उसी जड़ता या मृत्यु के खिलाफ है। वे जीवंतता के पक्ष में हैं। यह एक प्रकार का आशावाद है कि, जब तक हम चेतन बने रहेंगे आगे बढ़ते रहेंगे।
इसी शेर से हट कर थोड़ा ऐतरेय ब्राह्मण का यह प्रसिद्ध श्लोक पढ़ते हैं ।
चरन् वै मधु विन्दति चरन् स्वादुमुदुम्बरम् ।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरंश्चरैवेति ॥
(चरन् वै मधु विन्दति, चरन् स्वादुम् उदुम्बरम्,सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यः चरन् न तन्द्रयते, चर एव इति ।)
इतस्ततः भ्रमण करते हुए मनुष्य को मधु (शहद) प्राप्त होता है, उसे उदुम्बर (गूलर?) सरीखे सुस्वादु फल मिलते हैं । सूर्य की श्रेष्ठता को तो देखो जो विचरणरत रहते हुए आलस्य नहीं करता है । उसी प्रकार तुम भी चलते रहो (चर एव) ।
यहाँ चलना शाब्दिक और भौतिक रुप में नहीं है, ब्लकि जाग्रत, सजग और सतर्क रहने में है। यह श्लोक, निश्चित रूप से ग़ालिब के जेहन में यह शेर लिखते समय नहीं रहा होगा। पर अपने शेर के माध्यम से जो वे अभिव्यक्त करना चाहते है, उसे यह श्लोक अनोखे तरह से अभिव्यक्त कर रहा है। संदेश स्पष्ट है। जड़ता मृत्यु और चेतनता जीवन है। जीवंतता ही जीवन की शोभा है, रौनक है ।
© विजय शंकर सिंह
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