Friday 18 May 2018

Ghalib - Aib kaa dariyaft karnaa hai hunarmandi / ऐब का दरियाफ्त करना है हुनरमंदी / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 87.
ऐब का दरियाफ्त करना है हुनरमंदी ' असद '
नक़्स पर अपने हुआ तो मुततलब कामिल हुआ !!

Aib kaa dariyaaft karnaa hai hunarmandee ' Asad '
Naqs par apne huaa to mut'talab kaamil huaa !!
- Ghalib

अपनी दुर्बलताओं और दोषों को जान लेना सबसे बड़ा गुण है। जो व्यक्ति अपने दोषों को जानकर उन दुर्बलताओं और दोषों के प्रति सजग रहता है वही व्यक्ति पूर्ण और सफल होता है।

ग़ालिब का यह शेर, नीति की बात करता है। खुद के भीतर झांकने की बात करता है। खुद को पहचानने की और खुद को जानने की बात करता है। खुद के भीतर खुद की ही तलाश की बात करता है। आत्म दीपो भव की बात करता है। अप्प दीपो भव की बात करता है। Know Thyself की बात करता है। जो व्यक्ति अपनी दोषों और दुर्बलताओं को जान लेता है वह मिथ्या आत्म अहंकार से मुक्त हो जाता है। संसार मे कोई भी व्यक्ति दोषरहित नहीं हुआ है। ईश्वर के अवतार भी दुर्बलताओं और दोषों से मुक्त नहीं रहे हैं। सारे पैगम्बर भी कहीं न कहीं किसी दोष या दुर्बलता से युक्त रहे हैं। पर हम उनके दोष उनके प्रभामण्डल से आच्छादित होने के कारण नहीं देख पाते हैं। रोशनी चीजें दिखाती तो है पर अतिशय रोशनी आंखे चुंधिया देती है। ग़ालिब इसी सनातन सत्य की ओर इशारा करते हैं कि जब दोष और दुर्बलताओं का संज्ञान हो जाएगा तो उसका निदान भी आसान होगा। यह बिल्कुल डायग्नोसिस और फिर उसके इलाज की बात है। अतः अपने दोषों और दुर्बलताओं को जानना भी एक प्रकार का हुनर है, कौशल है। यह हुनर जिसके पास है वही इन दोषों से निकलने की राह ढूंढ सकता है और बेहतर हो सकता है।

इसी संदर्भ में, कबीर का यह दोहा पढ़ें। वह भी अपने दोषों और दुर्बलताओं को जानने के पक्ष में है।
दोख पराये देखि करि,,चल्या हसन्त हसन्त,
अपने नयन्ति न आवइ, जिनकी आदि न अंत !!
( कबीर )

दूसरे के दोषों को देख कर तो तू हंसता जाता है, पर अपने दोषों को जिसका न आदि है और न अंत, का कुछ भी तू  विचार नहीं करता है ।

विचार सार्वकालिक होते हैं। जब तक वे प्रासंगिक रहते हैं जीवित रहते हैं। अपने दोषों और दुर्बलताओं को जानने और फिर उनके निदान कर के आगे बढ़ना भी जीवन का एक अंग ही है।

© विजय शंकर सिंह

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