Saturday, 5 May 2018

कार्ल मार्क्स का अपनी पत्नी जेनी के लिये लिखा उनका एक पत्र / विजय शंकर सिंह


महान दार्शनिक और आधुनिक राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रणेता कार्ल हेनेरिख मार्क्स जो कार्ल मार्क्स या मार्क्स के रूप में जाने जाते हैं के दर्शन, राजनीतिक विचारधारा और इतिहास की दृष्टि पर बहुत कुछ लिखा गया है। मार्क्स की विचारधारा पर आधारित पुस्तको के लिये किसी पुस्तकालय का एक अच्छा खासा स्थान चाहिये। पर आज उनके जन्मदिन पर मैं उनकी निजी जीवन मे झांकने का प्रयास कर रहा हूँ। आज में उनकी पत्नी जेनी और मार्क्स का जेनी को लिखे एक पत्र की चर्चा इस लेख में करूँगा।
मार्क्स जर्मनी के रहने वाले थे पर उनका अधिकतर जीवन लंदन में बीता। लंदन में ही उन्होंने औद्योगिकरण का अभिशाप और श्रम तथा पूंजी के बीच बन रहे शातिराना रिश्ते देखे। उनका अध्ययन बहुत व्यापक था। वे दिन दिन भर पुस्तकालय में बैठ कर अध्ययन किया करते थे। उनकी पत्नी का नाम जेनी था। उनका परिवार जीवन पर्यंत  अभाव में जीता पड़ा। परिवार में सदैव आर्थिक संकट रहता था और चिकित्सा के अभाव में उनकी कई संतानें काल-कवलित हो गई। उन्हें सात संताने थीं। जेनी वास्तविक अर्थों में कार्ल मार्क्स की जीवनसंगिनी थी और उन्होंने अपने पति के आदर्शों और युगांतरकारी प्रयासों की सफलता के लिए स्वेच्छा से गरीबी और दरिद्रता में जीना पसंद किया ।

जर्मनी से निर्वासित हो जाने के बाद मार्क्स ज़्ब लन्दन में आ बसे थे तो लन्दन के जीवन का वर्णन जेनी ने अपने एक पत्र में जो उसने अपने एक दोस्त को लिखा था, इस प्रकार किया है –

“मैंने फ्रेंकफर्ट जाकर चांदी के बर्तन गिरवी रख दिए और कोलोन में फर्नीचर बेच दिया. लन्दन के मंहगे जीवन में हमारी सारी जमापूँजी जल्द ही समाप्त हो गई.। सबसे छोटा बच्चा जन्म से ही बहुत बीमार था । मैं स्वयं एक दिन छाती और पीठ के दर्द से पीड़ित होकर बैठी थी कि मकान मालकिन किराये के बकाया पाँच पौंड मांगने आ गई ।उस समय हमारे पास उसे देने के लिए कुछ भी नहीं था। वह अपने साथ दो सिपाहियों को लेकर आई थी । उन्होंने हमारी चारपाई, कपड़े, बिछौने, दो छोटे बच्चों के पालने, और दोनों लड़कियों के खिलौने तक कुर्क कर लिए । सर्दी से ठिठुर रहे बच्चों को लेकर मैं कठोर फर्श पर पड़ी हुई थी। दूसरे दिन हमें घर से निकाल दिया गया । उस समय पानी बरस रहा था और बेहद ठण्ड थी. पूरे वातावरण में मनहूसियत छाई हुई थी.”
फिर जेनी अपने पत्र में ऐसे में ही दवावाले, राशनवाले, और दूधवाले का विवरण देते हुये लिखतीं हैं कि, ये सब भी अपना-अपना बिल लेकर उनके सामने खड़े हो गए. मार्क्स परिवार ने बिस्तर आदि बेचकर उनके बिल चुकाए.। ऐसे कष्टों और मुसीबतों से भी जेनी की हिम्मत नहीं टूटी. वे बराबर अपने पति को ढाढस बांधती थीं कि वे धीरज न खोयें और अपने अध्ययन में लगे रहें। जेनी चट्टान की तरह अपने पति के साथ खड़ी रहीं । कार्ल मार्क्स के प्रयासों की सफलता में जेनी का अकथनीय योगदान था. वे अपने पति से हमेशा यह कहा करती थीं –
“दुनिया में सिर्फ़ हम लोग ही कष्ट नहीं झेल रहे हैं.”


कार्ल मार्क्स का एक पत्र यहां साझा कर रहा हूँ। पति पत्नी के परस्पर प्रेम और साहचर्य को प्रदर्शित करता मार्क्स का यह पत्र मार्क्स के शुष्क बौद्धिकता के आवरण को भेद कर उनके मर्म और कोमल भावनाओं को उजागर करता है। यह पत्र पेम पत्र कहें या जो भी कहें 1856 का लिखा हुआ है। 1856 में मार्क्स 38 और उनकी पत्नी जेनी 42 वर्ष की थी। जेनी मार्क्स से चार साल बड़ी थीं। मार्क्स फेफड़े के रोग से भी पीड़ित थे। उनका परिवार बड़ा और आय का साधन सीमित था। आय जो उनकी थी वह मूलतः उनके लेखों से होने वाली आमदनी थी। जो कम थी। उनके गम्भीर और पूंजीवाद विरोधी लेखों का बौद्धिक पाठक वर्ग बहुत कम था। जेनी एक सुंदर और भावुक महिला थीं। वे कवितायें भी करती थी। मार्क्स और जेनी की मित्रता दोनों के किशोरावस्था में ही हो गयी थी । उन्होंने अपना लेखकीय कैरियर मार्क्स के अध्ययन के लिये छोड़ दिया। वे मार्क्स के लिये एक बड़ा सहारा थी । इस पत्र में मार्क्स ने जेनी के प्रति वही उत्कट प्रेम और लगाव प्रकट किया है जो उन्होंने अपने युवावस्था में दिखाया था। वक़्त की गर्द पति पत्नी के मधुर और प्यारे रिश्ते पर जम नहीं पाई थीं।
अब आप यह पत्र पढ़ें।
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मेरी प्रियतमा,
मैं तुम्हें फिर लिख रहा हूँ , इसलिए कि मैं अकेला हूँ और इसलिए कि मेरे मन में हमेशा तुम्हारे साथ बातचीत करना मुझे परेशान किए दे रहा है , जबकि तुम इसके बारे में न कुछ जानती हो , न कुछ सुनती हो और न ही मुझे उत्तर दे सकती हो ... मैं तुम्हें अपने सामने साक्षात देखता हूँ , मैं तुम्हें अपनी गोद में उठा लेता हूँ , मैं तुम्हें सिर से पाँव तक चूमता हूँ , मैं तुम्हारे सामने घुटने टेक देता हूँ और आह भरता हूँ : 'मैं आपको प्यार करता हूँ मदाम !' और मैं तुम्हे सचमुच बहुत-बहुत प्यार करता हूँ , उससे भी ज्यादा प्यार करता हूँ, जितना 'वेनिस के मूर' ने कभी किया था | *मिथ्या और भ्रष्ट दुनिया लोगों को मिथ्या और भ्रष्ट रूप में ही देखती है|* मेरे अनेकानेक निंदकों और चुगलखोर शत्रुओं में से किसने कभी मेरी इस बात के लिए भर्त्सना की कि मैं किसी द्वितीय श्रेणी के थिएटर में प्रथम श्रेणी के प्रेमी की भूमिका अदा करने के योग्य हूँ ? और फिर भी यह सही है ! यदि इन बदमाशों के पास बुद्धि होती , तो उन्होने एकतरफ 'उत्पादन और विनिमय सम्बन्धों' को और दूसरी तरफ मुझे तुम्हारे चरणों में चित्रित कर दिया होता | 'इस चित्र को देखिये और उस चित्र को देखिये' -- उन्होने नीचे लिख दिया होता | लेकिन वे मूढ़ बदमाश हैं और मूढ़ ही रहेंगे in seculam seculorum (हमेशा के लिए -- अनु ) |
केवल अंतराल ही हमें एक दूसरे से अलग करता है और मुझे फौरन विश्वास हो जाता है कि *समय ने मेरे प्यार की मदद ही की है , वैसे ही जैसे धूप और बारिश से पौधे के बढ़ने में मदद मिलती है | ज्यों ही तुम मुझसे दूर हटती हो , तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम विराट रूप ग्रहण कर लेता है , इसमें मेरे आत्मा की सारी ओजस्विता और मेरे हृदय की सारी शक्ति संकेंद्रित हो जाती है|* मैं पुनः अपने को शब्द के पूरे अर्थ में मनुष्य महसूस करने लगता हूँ , क्योंकि मैं एक प्रचंड मनोवेग अनुभव करने लगता हूँ | विविधता का , जिसे आधुनिक अध्ययन और शिक्षा हममें विकसित करते हैं , और संदेहवाद का , जिससे हम अनिवार्यतः सभी आत्मगत और वस्तुगत प्रभावों की आलोचना करते हैं , अभिप्राय हमें छोटा , शक्तिहीन , शिकायती और असंकल्पशील बनाना है | लेकिन प्रेम फायरबाख के पुरुष के लिए नहीं , मोलेशेत के चयापचय के लिए नहीं , सर्वहारा के लिए नहीं , बल्कि प्रेयसी के लिए , तुम्हारे लिए प्रेम मनुष्य को पुनः मनुष्य बना देता
है |

तुम हँसोगी , मेरी प्रियतमा , और पूछोगी कि क्यों मैंने सहसा अपने को आलंकारिक भाषा में झोंक दिया है ? लेकिन यदि मैं तुम्हारे मधुर , निर्मल हृदय को अपने हृदय से लगा सकता , तो मैं खामोश रहता और मेरे ज़ुबान पर एक शब्द नहीं आता | चूंकि मैं तुम्हें अपने होठों से नहीं चूम पा रहा हूँ , इसलिए मुझे अपनी जिह्वा से चूमना पड़ता है और शब्द लिखने पड़ते हैं | बेशक मैं कवितायें भी लिख सका होता ।
निस्संदेह दुनिया में अनेकानेक औरतें हैं और उनमें से कुछ सुंदर भी हैं | लेकिन मुझे ऐसा चेहरा पुनः कहाँ मिल सकेगा , जिसका हरेक रंग-रूप , जिसकी हरेक झुर्री मेरे जीवन की सबसे शक्तिशाली स्मृतियाँ जगाती हो ? तुम्हारे मधुर मुखड़े में मैं अपने असीम दुखों , अपनी "अपूरणीय क्षतियों " को (यहाँ मार्क्स अपने बेटे एडगर की मृत्यु की ओर इशारा कर रहे हैं ) पढ़ता हूँ और जब तुम्हारे मधुर चेहरे को चूमता हूँ , तो मेरे सारे दुख-दर्द गायब हो जाते हैं | 'उसकी बाँहों में दफ्न , उसके चुंबनों द्वारा पुनरुज्जीवित' -- अर्थात तुम्हारी बाँहों में और तुम्हारे चुंबनों द्वारा , और मुझे पुजारियों और पायथागोरस की , पुनर्जन्म के बारे में उनकी शिक्षा की तथा ईसाई धर्म और पुनरुज्जीवन के बारे में उसकी शिक्षा की कोई ज़रूरत नहीं है |
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कार्ल मार्क्स का योगदान सम्पूर्ण मानवता के इतिहास में अद्भुत है। उनकी कृति पूंजी ने दुनिया मे बढ़ रहे श्रम के शोषण और पूंजी के एकत्रीकरण का एक वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया। उनका अध्ययन यूरोपीय समाज के इतिहास पर आधारित था। उन्होंने भारत के बारे में बहुत अधिक नहीं लिखा है , बस 1857 के विप्लव पर उन्हें जो ब्रिटिश श्रोतों से जानकारी मिली उसी के आधार पर उनके निष्कर्ष निकले थे। उन्हें इंटेक्चुअल जायंट कहा जाता है। लेकिन इतनी प्रखर मेधा के अंदर जो कोमलता छिपी है वह इस पत्र में उभर आयी है।
कार्ल हेनेरिख मार्क्स को उनके 200 वीं जयंती पर विनम्र स्मरण ।

© विजय शंकर सिंह

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