ग़ालिब - 82.
ऐ मर्ग ए नागहां तुझे क्या इंतेज़ार है,
दम ए वापसी बर सर ए राह है,
अज़ीज़ों अब अल्लाह ही अल्लाह है !!
Ai marg e naagahaan, tujhe kyaa intezaar hai,
Dam e waapasee bar sar e raah hai,
Ajeejo ab Allah hee Allah hai !!
- Ghalib
वापस लौटने की घड़ी निकट आ गयी है, दोस्तों, अब केवल ईश्वर का ही नाम शेष है।
यह उनके अंतिम दिनों के उच्छ्वास हैं। यह शेर नहीं, उनकी भावनायें हैं, जो मृत्यु के सन्निकट आने पर अपने आप निकल पड़ती हैं। ग़ालिब को मृत्यु के कुछ दिन पहले से ही बेहोशी के दौरे पड़ने लगे थे। अंत मे 15 फरवरी 1869 ई को 72 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली।
ग़ालिब के अंतिम दिन बहुत ही कष्ट में बीते थे। वे बड़े मज़ाकिया थे और खुद के मौत की तारीख नजूमियों से निकलवाया करते थे। फिर जब मज़ाक़ मज़ाक़ में रखी गयी तारीख गुज़र जाती तो वे मज़ाक़ में दूसरी तारीख निकलवाते। ऐसे ही उन्होंने अपने एक शिष्य से अपनी मौत की तारीख बतायी। तब उनके शिष्य ने कहा कि यह तारीख भी निकल जायेगी। तब ग़ालिब ने कहा कि,
" देखो साहब, तुम ऐसी फाल मुंह से न निकालो। अगर यह तारीख भी गलत साबित हुई तो मैं सर फोड़ कर मर जाऊंगा। "
लेकिन मौत का तो एक दिन मु'अय्यन है, नींद क्यों रात भर आती नहीं, जैसी कालजयी पंक्ति लिखने वाले ग़ालिब की भी नींदे मौत की दस्तक से उड़ गयीं थीं। नींद मौत के डर से नहीं बल्कि ज़िन्दगी के डर से नहीं आती है। यह एक कटु यथार्थ है। ग़ालिब के जीवन मे कष्ट बहुत भोगा था। अंतिम समय उनका बीमारी में बीता। शराब और जुए की लत ने भारतीय साहित्य के महानतम शायरों में से सबसे अनोखे इस शायर को अंततः नैराश्य का गह्वर ही मिला। ग़ालिब के शेर में जो सोज़ है वह उनके जीवन का प्रतिविम्ब ही तो है। अंततः, मृत्यु ही चरम सत्य है, का याद दिलाते हुये, मृत्यु ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया। मृत्यु के निकट आने पर यही शेर उनकी ज़ुबान से अक्सर निकल जाया करता था ।
अजीजों अब अल्लाह ही अल्लाह है।
प्रियो, अब ईश्वर ही ईश्वर है !!
© विजय शंकर सिंह
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