Tuesday, 8 May 2018

Ghalib - Ek aalam pai hai tuufaanii e kaifiyat e fasl / एक आलम पै है तूफानी ए कैफ़ियत ए फस्ल - ग़ालिब / विजय शंकर सिंहः

ग़ालिब - 78.
एक आलम पै है तूफानी ए कैफियत ए फ़स्ल,
मौजा ए सब्ज़ा ए नौखेज़ से ता मौज के शराब !!

Ek aalam pai hai tuufaanii e kaifiyat e fasl,
Mauzaa e sabzaa e naukhez se taa mauz ke sharaab.
- Ghalib

सारे संसार पर मस्ती भरा  मौसम छाया हुआ है । ताज़ी ताज़ी ठाठें मारती हरियाली से ले कर मदिरा की उफनती मस्ती तक आंनद ही आनंद है।

यह शेर ग़ालिब के परम्परागत शेर जो दुख, नैराश्य, दर्शन और परिहास भरी रूमानियत लेते हुये होते हैं से हट कर हैं। यह बसंत की मादकता और मदिरता से उतपन्न ठाठें मारती मस्ती की लहरों का वर्णन है। पर ऐसे शेर ग़ालिब पर पढ़ते समय मुझे कम ही मिले। जीवन मे आंनद एक लहर के झोंके की तरह उठती है। आकर्षक, ऊर्जा से भरी हुयी, एक के पीछे एक निरन्तर आती हुयी पर जब ठस और पथरीला साहिल मिलता है तो सिर धुनते हुये वापस चली जाती है। आंनद की भी गति होती है। हुलसती लहरें जब जीवन की कठोरता से टकराती हैं तो फिर धरातल पर आ जाती है। पर साहिल की ठस दिली को छोड़िये, फिलहाल गालिब के इस शेर में छिपे आंनद का आनंद लीजिये !

© विजय शंकर सिंह

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