Thursday, 17 May 2018

Ghalib - Ai dil e naa'aaqbat andesh zabt e shauq kar / ऐ दिल ए नाआकबत अंदेश ज़ब्त ए शौक़ कर - गालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 86.
ऐ दिल ए नाआकबत अंदेश जब्त ए शौक़ कर,
कौन ला सकता है ताब ए जलवा ए दीदार ए दोस्त !!

Ai dil e naa'aaqbat andesh zabt e shauq kar,
Kaun laa saktaa hai taab e jalwaa e deedaar e dost !!
- Ghalib

ना'आकबत अंदेश - परिणाम से अनभिज्ञ
ज़ब्त ए शौक़ - प्रेम या कामनाओं पर नियंत्रण.

परिणाम या अंत से अनभिज्ञ ऐ दिल, तुम ज़रा अपनी कामनाओं, इच्छाओं पर नियंत्रण करो, भला प्रिय के दर्शन करने की सामर्थ्य किसमे है ?

गालिब का यह शेर कर्मो के दर्शन पर है जिसे इस्लाम मे अच्छे आमाल पर स्वर्ग नसीब होने की बात कही गयी है। आकबत या आख़िरत वह क्षण है जब हम संसार से विदा लेते हैं। उस समय जो आमाल रहते हैं, वही संसार मे याद किये जाते हैं। यहां दिल या व्यक्ति को परिणाम या अंत का पता नहीं है। वह उसी अनभिज्ञता में अपनी कामनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाता है। इसी को इंगित कर के ग़ालिब कहते हैं कि जब तक इन इच्छाओं और कामनाओं पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक भला, प्रिय यहां यह ईश्वर का प्रतीक है, के दर्शन या सानिध्य यहां यह जन्नत का प्रतीक है, कैसे प्राप्त होगा। सारी कामनायें और इच्छायें, बस आकबत तक ही है। जैसे ही जीवन शांत हुआ वे भी शांत हो गयीं।

© विजय शंकर सिंह

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