ग़ालिब - 85.
ऐ ताज़ा वारिदाने बिसाते हवाये दिल,
जिन्हार, अगर तुम्हें हवसे नाये वो नोश है !!
ऐ ताज़ा वारिदाने बिसाते हवाये दिल,
जिन्हार, अगर तुम्हें हवसे नाये वो नोश है !!
Ai taazaa waareedaane bisaate hawaaye dil,
Jinhaar, agar tumhe hawase naaye wo nosh hai !!
- Ghalib
Jinhaar, agar tumhe hawase naaye wo nosh hai !!
- Ghalib
अपनी इच्छाओं की बिसात के नए नए हुक्मरानों, अगर तुम्हें मदिरा पान की इतनी ही इच्छा और लालच है तो, तुम सावधान हो जाओ ।
यह आज के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक शेर है। यह शेर तो लिखा गया है बादशाह के मुसाहिबो के लोभ और अधिकार मद पर एक तंज़ के रूप में पर यह सत्ता के अधिकार के दुरुपयोग पर एक सार्वकालिक शेर है। यहां मदिरा अधिकार के रूप में है, और जैसे अधिक मदिरापान देह और समाज दोनों के लिये घातक होता है वैसे ही सत्ता के अशिकार का अतिशय उपयोग, जो दुरुपयोग में बदल जाता है , करने का लोभ किसी मे है तो वह सावधान हो जाये। यह सत्ता का मद अंततः पराभव की ओर ले जाता है।
यह शेर नए नए बने हुक्मरानों पर ही है । अंतिम मुग़ल सम्राट के पास राज करने लायक कुछ करने के लिये बचा ही नहीं था। लाल किला तो था पर सूरज किले पर ही उदय और अस्त होने लगा था। पर मुंहलगे मुसाहिबो का क्या कीजै। वह तो पतनोन्मुख मुगलों को ही चढाये रहे । रस्सी जल जाने के बाद भी ऐंठन बरकरार थी। उस सिकुड़े राज में भी मुगल बादशाह अपने साथ कई कई पंक्तियों का खिताब धारण करते थे। वे उस सांध्य बेला में भी जिल्ले इलाही ( ईश्वर की छाया ) थे। ग़ालिब उसी अहंकार जो मद्यपी का मिथ्या अहंकार होता है को इंगित कर के यह शेर कहते हैं। सच है अधिकार सुख सबसे मादक होता है और इस मदिरा की तासीर सबसे तीक्ष्ण।
© विजय शंकर सिंह
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