ग़ालिब - 73.
उस लब से मिल ही जायेगा बोसा कभी तो, हां,
शौक़ ए फ़िज़ूल ओ जुरअत ए रिंदाना चाहिये !!
Us lab se mil hii jaayegaa bosaa kabhii to, han,
Shauq e fizool o jur'ate, rindaanaa chaahiye !!
- Ghalib
बोसा - चुम्बन
शौक़ ए फ़िज़ूल - अतिरिक्त प्रेम, लालसा, चुम्बन प्राप्ति की उत्कंठा.।
जुरअत ए रिंदाना - एक मद्यपी जैसा साहस.
उनके अधरों का चुम्बन मुझे कभी न कभी तो मिल ही जायेगा, बशर्ते कि हृदय में अतिरिक्त प्रेम और मद्यपी जैसा साहस हो ।
ग़ालिब इस बात पर तो मुतमईन हैं कि देर सबेर तो प्रेयसी के अधरों का चुम्बन तो उन्हें मिल ही जायेगा, पर उसके लिये ह्रदय में और प्रेम का भाव तथा एक मद्यपी के साहस की आवश्यकता है। चुम्बन यहां प्रेम या प्रेयसी को पाने की मंज़िल है। लेकिन उस मंज़िल तक पहुंचने के लिये उन्हें उत्कट प्रेम और साहस की ज़रूरत है। यदि हृदय में उत्कट प्रेम और साहस है तो निश्चय ही भले ही देर हो जाय पर लक्ष्य, जो यहां उसके अधरों के चुम्बन का प्रतीक है, कभी न कभी मिलेगा ही। साहस और उत्कट अभिलाषा ( प्रेम ) अपने निर्दिष्ट लक्ष्य तक पहुंचने में निश्चय ही सफलता देता है। यह ग़ालिब का विश्वास है।
यह शेर उतना आसान भी नहीं है जितना इसे पढ़ते या सुनते ही अधरों पर स्मिति खिल जाय। चुम्बन यहां लक्ष्य का प्रतीक है, और हृदय का प्रेम भाव उस लक्ष्य तक पहुंचने का उत्कंठा। पर लक्ष्य भी हो, लक्ष्य तक पहुंचने की उद्दाम लालसा या उत्कंठा हो पर साहस न हो तो सारी लालसा धरी की धरी रह जाती है। साहस भी, ग़ालिब यहां एक मद्यपी के साहस के समान चाहते हैं। मद्यपी का जुनूनी साहस होता । उन्माद से भरा हुआ । ऐसा साहस और हृदय में लक्ष्य को पाने की उत्कंठा तो, मंज़िल मिल ही जाती है।
© विजय शंकर सिंह
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