येदुरप्पा के पास कुल सदस्य 104 हैं। 8 सदस्य खरीद कर ही तो लाये जाएंगे। कीमत 100 करोड़ है या 150 करोड़, यह तो खरीदने और बिकने वाला जाने। कल जनार्दन रेड्डी का एक ऑडियो सोशल मीडिया पर आया है कि वह शंकर नामक एक विधायक को जो कांग्रेस के हैं, को धन दे कर खरीदने का लालच दे रहे हैं। सभी न्यूज़ चैनल इस जोड़तोड़, खरीद फरोख्त आदि को मोदी शाह की कौशल बता रहे हैं। यह कौशल है। यह कौशल बहुत कम ही राजनीतिक प्राणियों में होता होगा। तभी तो वे आधुनिक चाणक्य कहे जा रहे हैं। बहुत ढूंढा इतिहास के पन्नो में, आचार्य चाणक्य कहीं भी भ्रष्ट आचरण से सरकार बनाते नहीं दिखे। उनमें यह कौशल लुप्त था। पर भ्रष्टाचार करने का यह कौशल है अमित शाह में। विश्वास न हो तो राम माधव से पूछ लें । जब कोई केंद्रीय मंत्री या भाजपा का नेता या आरएसएस के राम माधव जैसे लोग मुस्कुरा कर कहते हैं कि हमारे पास अमित शाह है तो उनके कहने का आशय यह है कि अमित शाह जोड़ तोड़ करने में माहिर है। अमित शाह खरीदने में माहिर है। क्या यह खरीद फरोख्त यह जोड़तोड़ भ्रष्टाचार से उतपन्न धन से नहीं की जाएगी, अगर की जाती है तो ? फिर भ्रष्टाचार मुक्त देश और भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस का वादा कहां गया ? क्या इनका भी चाल चरित्र चेहरा कांग्रेस से अलग नहीं है ? कर्नाटक चुनाव में संविधान की परंपराओं का टूटना, राज्यपाल का केंद्र की सत्ता धारी दल का खुल कर समर्थन करना, कोई पहलीं बार नहीं हो रहा हैं । कभी आंध्र के राज्यपाल रहे रामलाल और मुख्यमंत्री रहे एनटी रामाराव के बीच जो हुआ था कभी, वह भी पढ़ लें। अगर सब कुछ कांग्रेस के ही पैटर्न पर करना है तो, फिर नैतिकता, संस्कार, चाल, चरित्र, चेहरा , पार्टी विद अ डिफरेंस की बात करना छोड़िये। कर्नाटक के नाटक ने यह दिखा दिया कि आप राजनीति में कुछ भी नया और बेहतर करने नहीं आये हैं। भ्रष्टाचार जिसके उन्मूलन की आस दिखा कर आप सत्ता में धमाके के साथ आये थे वह अब आप की संजीवनी बन गयी है और जल्दी ही गले की हड्डी भी। सांप छुंछुन्दर की इस गति को आप कैसे और कब पहुंच गये यह तो आप आत्ममंथन कर के ही जान पायेंगे । आप भी उन्ही जैसे निकले। भ्रष्ट, खुदगर्ज, ठस । यहां आप का तात्पर्य भाजपा और मोदी शाह की जोड़ी से है । आप यह भी चाहते हैं कि आप भ्रष्टाचार करते रहें और लोग आप को साफ सुथरा भी समझते रहें तो यह अब सोशल मीडिया के इस युग मे संभव नहीं है। यह तो हँसब ठठाई फुलाइब गालू की तरह कठिन है।
वे सरकार बनाने की सभी साम दाम दंड भेद से भरी कलाओं में पारंगत अवश्य होंगे पर वे शासन न करने की कला में भी माहिर हैं।
साम दाम दंड भेद के लिये कुटिल और षडयंत्रकारी बुद्धि और कौशल चाहिये पर शासन इन्ही छल छद्मों के भरोसे नहीं किया जा सकता है। शासन प्रजावत्सलता और विधि के विधिपूर्वक पालन के संकल्प के साथ ही किया जा सकता है। शासक को दो रूपों में दिखना पड़ता है। एक तो उसे अपने राज्य का विस्तार करके स्थिर बनाये रखना है दूसरे उसका राज जनता को भी कष्ट न दे। अगर विस्तार हो जाय और जनता की अपेक्षाएं भी पूरी न हों तो जन असंतोष को रोकना असंभव हो जाता है। जनता जब अपनी अपेक्षाओं के प्रति शासन की उपेक्षा देखती है और शासन ठस बना रहता है तो शासन कितना भी प्रतापी और लोकप्रिय हो वह अपना आधार खोने लगता है। बड़े बड़े राजतंत्र भी इसी सिद्धांत का शिकार हुये हैं। लोकतंत्र में तो एक समय सीमा ही तय है, फिर तो जनता के पास जाना पड़ता है। भाजपा का दावा है कि वह 22 राज्यों में सत्ता में है। यह दावा सच भी है। निश्चित रूप से भाजपा के नेता और रणनीतिकार बधाई के पात्र हैं। वे चुनाव प्रबंधन और चुनाव बाद प्रबन्धन में भी कुशल हैं। पर शासन करने की कला और जब उप्लन्धि की बात की जाय तो वे अतीत में चले जाते हैं। अतीत की बहस बैठे ठाले और भरे पेट वालो की हो सकती है, पर जिसे जीवन यापन की मूल सुविधाओं से रोज़ ही निपटना पड़ता है उसे अशोक या अकबर के गौरवशाली अतीत ढांढस नहीं दे सकते हैं। अगर सरकार बनाने का हुनर है तो सरकार चलाने का भी हुनर पैदा कीजिये । दोनों हुनर के तरीके अलग अलग हैं। एक के लिये साम दाम दंड भेद चाहिये, दूसरे के लिये उदारता, विनम्रता, संवेदनशीलता, पाखण्ड का त्याग, प्रजावत्सलता, साफगोई और विधि के प्रति आदर भाव चाहिये।
अध्यात्म रामायण में राम जब अपने गुरु वशिष्ठ से कहते हैं कि शासन करना सबसे कठिन काम है तो वे ऐसे ही नहीं कहते हैं।
© विजय शंकर सिंह
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