ग़ालिब - 84.
ऐ चर्ख, खाक बरसर ए तामीर ए क़ायनाय,
लेकिन बिना ए अहद ए वफ़ा, उस्तवार था !!
Ai charkh khaaq barasar e taameer e qaaynaat,
Lekin binaa e ahad e wafaa, ustwaar thaa !!
- Ghalib
चर्ख - आसमान
उस्तवार - दृढ़
ऐ आसमान, यह संसार जो धूल के एक कण से निर्मित है एक न एक दिन नष्ट हो जाएगा, पर प्रेम के आश्वासन का आधार, तब भी शेष रहेगा।
संसार नश्वर है पर प्रेम ईश्वर है। वही जब धूल मिट्टी से बना संसार जो धूल के एक एक कण से निर्मित है नष्ट हो जाएगा, तब भी प्रेम का मनोभाव जीवित रहेगा। और एक नया संसार उसी प्रेम के बीज से अंकुरित होगा। यह शेर प्रेम की महिमा पर है। प्रेम की महिमा पर बहुत कुछ दुनिया भर के साहित्य में कहा गया है। यहां ग़ालिब ने कहा है।
इसी से मिलती जुलती बात कबीर ने भी कही है। कबीर को पढ़ें।
परभाते तारे खिसहि, त्यों इहु खिसै सरीरु
पै दोई अक्खर ना खिसहि, सो गहि रह्यो कबीर !!
( कबीर )
सुबह होते ही आकाश के सारे तारे मिट जाएंगे, फिर एक दिन यह शरीर भी मिट जाएगा। पर ढाई अक्षर का शब्द प्रेम अमर रहेगा।
© विजय शंकर सिंह
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