ग़ालिब - 79.
एक एक क़तरा का मुझे देना पड़ा हिसाब,
खून ए जिगर बदीअत ए मिज़गान ए यार था !!
Ek ek qatraa kaa mujhe denaa padaa hisaab,
Khoon e jigar badee'at e mizgaan e yaar thaa !!
- Ghalib.
मेरे दिल मे रक्त की जो एक एक बूंद थी, मुझे उसका हिसाब देना पड़ा। वह खून मेरा नहीं बल्कि मेरी प्रेमिका की धरोहर था।
यह शेर कर्म और उसके फलाफल पर आधारित है। कर्मो का फल कर्मो के अनुसार मिलता है यह सभी धर्मों में कहा गया। इन्ही फलों के आधार पर स्वर्ग नर्क, जन्नत दोजख, आदि स्थानों की कल्पना की गयी है। इस्लाम मे यह कहा गया है कि अंत मे एक दिन ऐसा आएगा कि फरिश्ते जीवन मे किये गए कर्मों का लेखा जोखा देखेंगे और उन्ही आमालनामों के आधार पर जन्नत या दोजख नसीब होगी। यहां रक्त की बूंद से अभिप्राय जीवन के क्षण से है। वे कहते हैं जीवन के एक एक क्षण का हिसाब देना है क्यों कि यह क्षण उसी ईश्वर की धरोहर है। यह एक प्रकार का संदेश भी है कि हमे दिये गए धरोहर की साझ संभाल करनी है न कि अमानत में खयानत ।
शेर में कहा गया शब्द मिज़गान ए यार का अर्थ प्रेयसी की धरोहर है । यह धरोहर है, रक्त की एक एक बूंद। जो धरोहर है उसका हिसाब तो रखना पड़ेगा और जिसकी धरोहर है उसे उसका हिसाब देना भी होगा। यह इस शेर की सीधी सी व्यख्या है।
© विजय शंकर सिंह
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