Saturday, 19 May 2018

Ghalib - Ai baa'e gafalat e nigaah e shauq / ऐ बाए गफलत ए निगाह ए शौक़ / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 88.
ऐ बाए गफलत ए निगाह ए शौक़, वर्ना यां
हर पा रहे संग लख्त ए दिल ए कोह ए तूर था !!

Ai baa'e gaflat e nigaah e shauq, warnaa yaan,
Har paa rahe sang, lakht e jigar koh e tuur thaa !!
- Ghalib

खोज और पहचान न कर पाने की लापरवाही से भरी दृष्टि पर हमें अफसोस है, वर्ना संसार का हर टुकड़ा कोह ए तूर का एक अंश है।

कोह ए तूर वह पहाड़ है जहां हजरत मूसा को ईश्वर के दर्शन हुये थे और 10 समादेशों टेन कमांडमेण्ड्स की घोषणा हुयी थी। हजरत मूसा एक पैगम्बर हैं। यह शेर दृष्टि के परखने के गुण पर है। ग़ालिब को इस बात का अफसोस है कि, संसार मे सब कुछ है, बस हम उसे न देख पाते हैं और न ग्रहण कर पाते हैं। क्यों कि उन चीजों की पहचान करने वाली पारखी दृष्टि का हममे अभाव है। हमारी आंख उतनी गंभीर, दूरदर्शी और अंतर तक भेद सकने वाली नहीं है। ग़ालिब इसी को लापरवाही से भरी दृष्टि कहते हैं। उनका कहना है संसार मे कोह ए तूर सिर्फ तूर ही में नहीं है। यह कोहे तूर संसार के हर टुकड़े में हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं कि खुदा केवल कोहे तूर पर ही रहता है, और उसे पाने के लिये वहां की यात्रा करनी पड़ेगी। अगर हम अपनी नज़र थोड़ी पारखी बना लें तो हर पत्थर ही कोहे तूर का टुकड़ा है। ईश्वर वहां भी है। यह वही ईश्वरीय प्रकाश है जो मूसा को कोहे तूर पर दिखा था। यह शेर भी सूफियाना मिजाज़ का है। अनल हक़ या अहम ब्रह्मास्मि की बात करता है।

बनारस में भी इसी भाव से एक कहावत कहते हैं कि, काशी के कंकड़ कंकड़ में ही शंकर है। तुलसी भी पारखी दृष्टि की।प्रशंसा में यह कहते हैं कि,
सकल पदारथ एहि जग माहीं, कर्म हीन नर पावत नाहीं !!
दृष्टि का पारखी और गुणग्राही होना आवश्यक है।

लगभग ऐसी ही मिलती जुलती बात ग़ालिब से बहुत पहले कबीर कह गए है। कबीर,  मृग और कस्तूरी के उपमा और रूपक से अपनी बात कहते हैं । उनका यह दोहा बहुत प्रसिद्ध और बहू श्रुत भी है।

कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढे वन माहिं,
ऐसे घटि घटि राम है, दुनिया देखै नाहिं !!
( कबीर )

जिस प्रकार कस्तूरी के नाभि में विद्यमान होते हुये भी, हिरण उसकी सुगन्ध से भ्रमित हो कर जंगल जंगल घूमता रहता है, वैसे ही अपने अंदर ईश्वर को विद्यमान पा कर भी हम चारों तरफ भटक भटक कर खोजते रहते हैं।

© विजय शंकर सिंह

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