Tuesday 15 May 2018

द्वीतीय विश्वयुद्ध - गांधी जी के एक इंटरव्यू का अंश / विजय शंकर सिंह

द्वीतीय विश्वयुद्ध चल रहा था। शुरुआती दौर में हिटलर ने सोवियत रूस से समझौता कर लिया था कि दोनों ही देश एक दूसरे से युद्ध नहीं करेंगे। ऐसा करने के पीछे हिटलर की मंशा थी पूर्वी मोर्चे पर वह शांति बनाए रख कर वह फ्रांस और इंग्लैंड पर खुद को केंद्रित करे। यह फासीवाद की एक रणनीति होती है कि वह तात्कालिक रूप से शांति की बात जरूर करते हैं पर उनका असल ध्येय अपनी विचारधारा और तानाशाही का प्रसार करना होता है। हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया। फिर वह तेज़ी से इंग्लैंड पर चढ़ बैठा। लंदन में बमबारी होने लगी। ब्रिटिश सम्राट को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया। इंग्लैंड के लिये वह कठिन समय था।

ऐसे ही अवसर पर एक ब्रिटिश पत्रकार गांधी जी से मिलने आया। तब तक भारत छोड़ो आंदोलन शुरू नहीं हुआ था। कांग्रेस नेपथ्य में थी। कांग्रेस और वायसराय के बीच संबंध ठंडे थे। पत्रकार ने गांधी जी को युद्ध के ताजा हालात बताए और यह कहा कि
ऐसे दशा में अहिंसा की क्या भूमिका होगी ?
गांधी जी ने कहा कि
किसी भी सिद्धांत की भूमिका तत्कालीन समय और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। युद्ध तो हिंसक होता ही है।
पत्रकार के यह पूछने पर कि हिटलर अगर लंदन पर कब्ज़ा जमा लेता है और ब्रिटेन जंग हार जाता है तो फिर हिटलर का सामना कैसे किया जाना चाहिये ? आप क्या सुझाव देंगे ?
गांधी ने कहा,
ऐसी दशा में जनता को फिर एकजुट हो कर हिटलर के ज़ुल्म के आगे खड़े होना होगा। लेकिन यह एक काल्पनिक सवाल है। हिटलर एक उन्मादी व्यक्ति है। वह विध्वंस करेगा, निर्माण नहीं। वह कब तक इंग्लैंड में रहेगा। इंग्लैंड की लोकतांत्रिक परंपराएं जो मैग्ना कार्टा के समय से चली आ रही है, जनता उसकी अभ्यस्त है न कि पन्द्रह साल से जन मानस में ज़हर घोल रहे नाज़ीवाद की हिंसक और विभाजनकारी नीतियों की। जनता कुछ देर तो शांत रहेगी फिर खुद ही उखाड़ फेंकेगी।

गांधी की बात सच हुई। यूरोप में एक पर एक हिंसक युद्ध जीतते हुए जब इंग्लैंड ने रूस पर हमला किया तो नैपोलियन के रूसी हमले का इतिहास खुद को दुहरा गया। ठंड और बर्फ के साथ साथ नव सोवियत की जनवादी सरकार और सेना ने हिटलर का अहंकार तोड़ दिया और हिटलर अपने कुकर्मो से खुद ही आजिज़ आ कर आत्महत्या करने को बाध्य हुआ और इतिहास का एक बेहद दारुण समय का अंत हुआ।

© विजय शंकर सिंह

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