Monday 7 May 2018

AMU, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और राजा महेंद्र प्रताप - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह


कुछ साल पहले भी एएमयू में राजा महेंद्र प्रताप को ले कर विवाद हुआ था। तब यह सवाल उठा था कि एएमयू में राजा महेंद्र प्रताप की जयंती क्यों नहीं मनायी जाती। आज फिर यह सवाल उठाया जा रहा है। यह सवाल किस मानसिकता से उठाया जा रहा है यह तो सवाल उठाने वाले जानें। पर कुछ तथ्यों की ओर गौर करना उचित होगा।

एएमयू, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना सर सैयद अहमद खान ने की थी। एएमयू के लिये जिन ज़मीदारों , नवाबो और राजाओं ने ज़मीन दी थी उनमें प्रमुख है, नवाब साहब छतारी । नवाब छतारी ने सबसे अधिक ज़मीन दी थी। राजा महेंद्र प्रताप एएमयू के छात्र थे और इन्होंने अपने विश्वविद्यालय के लिये 3 एकड़ जमीन और अपनी कोठी दान की थी। यह कहना गलत है कि उन्होंने 3000 एकड़ जमीन दान दी थी। एएमयू का कुल कैम्पस ही 457 हेक्टेयर का है। आप इसे एकड़ में बदल कर देख लें। जो किसी भी विश्वविद्यालय, या कॉलेज में पढ़ा होता है वह अपने विश्वविद्यालय के साथ किस प्रकार की भावुकता से जुड़ा रहता है यह पढ़ने वाला अच्छी तरह से समझ सकता है। यह दान राजा साहब ने अपने विश्वविद्यालय को दिया था।

अब यह कहा जा रहा है कि एएमयू राजा महेंद्र प्रताप की जयंती नहीं मनाता है। यह बात सही है। कोई भी विश्वविद्यालय या कॉलेज अमूमन अपने संस्थापक की ही जयंती  मनाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय को बनाने के लिये काशी नरेश ने कुल 11 गांव की ज़मीन दान दी थी। और कुछ छोटे ज़मीदारों ने भी दिया। एक एक हॉस्टल और कॉलेज देश के ख्यातनाम राजा महाराजाओं और पूंजीपतियों ने दिया। हैदराबाद के निजाम का भी अंशदान है इसमे। महाराजाधिराज दरभंगा ने तो सबसे पहले ही धन और भूमि दिया । पर बीएचयू में इनमे से एक की भी जयंती नहीं मनायी जाती है। कारण ? दानदाता आज के संकुचित मनोवृत्ति के नहीं थे। उन्होंने यह दान, यश के लिये नहीं दिया था, बल्कि यह दान शिक्षा के लिये था। जिसकी जितनी इच्छा हुयी, जिसकी जितनी सामर्थ्य थी उसने दान दे दिया। महामना संस्थापक थे, और यह उनका ही भगीरथ प्रयास था कि यह विश्वविद्यालय बना। इसीलिए केवल उनकी ही जयंती मनायी जाती है और किसी की भी नहीं यहां तक कि काशी नरेश की भी नहीं। काशी नरेश यहां के पदेन चांसलर हैं। यह एक आलंकारिक पद है। उन्होंने छात्र वृत्ति और मेडल भी दे रखे हैं।
यही स्थिति एएमयू की भी है। वहां भी सबसे अधिक ज़मीन नवाब साहब छतारी की है तो नवाब छतारी को एएमयू का चांसलर बनाया गया है। दोनों ही केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं इस लिये दोनों के ही विजिटर राष्ट्रपति होते हैं। जैसे बीएचयू में इसके संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती मनायी जाती है वैसे ही एएमयू में इसके संस्थापक सर सैयद अहमद खान की जयंती जो सर सैयद डे के नाम से प्रसिद्ध है मनायी जाती है। सर सैयद डे पूरी दुनिया मे जहां जहां एएमयू के प्राचीन छात्र हैं वे अपने अपने स्तर पर मनाते हैं। यह एक अवसर होता है अपनी मातृ संस्था को याद करने का तथा गुरुकुल के दाय को निभाने का। यह परम्परा सभी प्रतिष्ठित और पुराने शिक्षा संस्थानों में है।

एएमयू तो एक बहाना है। असल मक़सद समाज को बांटना है। जैसे इस्लाम खतरे में है कह कर पोंगापंथी मौलाना धर्म के नाम पर अपनी दुकान चलाते रहते हैं वही आदत हिंदुत्व वालों की भी है। धर्म खतरे में हैं यह इनका पसंदीदा शगल है। मैं बार बार कहता हूं, इनके पचड़े में मत पड़िये। इन्हें सिर्फ नज़रअंदाज़ कीजिये। कट्टर मानसिकता की ज़हर से भरे मुस्लिम हों या हिन्दू, दोनों ही एक प्रगतिशील, आधुनिक और विकसित भारत के शत्रु हैं। दोनों ही न केवल धर्मांध हैं बल्कि अपने धर्म के मूल से अपरिचित भी हैं।

राजा महेंद्र प्रताप मूलतः मुरसान के रहने वाले थे। मुरसान एक छोटी सी रियासत है जो मथुरा हाथरस रोड पर है। अपनी मथुरा और अलीगढ़ पोस्टिंग के दौरान मैं मुरसान कई बार गया हूँ। लेकिन राजा साहब का निधन 1979 में ही हो गया था अतः उनके दर्शन लाभ से वंचित रहा।  मुरसान पहले अलीगढ़ जिले का हिस्सा था अब यह हाथरस जिले में है। यह फोटो एक मित्र ने भेजा है। राजा साहब की तस्वीर एएमयू के पुस्तकालय मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में लगी है। राजा महेंद्र प्रताप ने भारत की पहलीं स्वतंत्र सरकार काबुल में बनायी थी।

© विजय शंकर सिंह

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