Saturday 12 May 2018

Ghalib - Ai andleeb yaq qafas e khas / ऐ अंदलीब यक कफ़स ए खस - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 83
ऐ अंदलीब यक क़फ़स ए खस, बहर ए आशियाँ,
तूफान आमद, आमद ए फ़स्ल ए बाहर है !!

Ai andleeb yaq qafas e khas, bahar e aashiyaan,
Toofaan aamad, aamad e fasl e bahaar hai !!
- Ghalib.

अंदलीब - बुलबुल
कफ़स ए ख़स - तिनकों का पिंजरा
आमद - आगमन
फसले बहार - वसंत

बुलबुल तिनकों से बने पिंजरे में बंद है। इसी आशियाँ में ह तूफान को आते देख, वह घबरा गया। ग़ालिब कहते हैं, तूफान तो आएगा ही। यह तूफान बसन्त के आने की सूचना भी है।

बसन्त का मौसम सुख का प्रतीक है। वह शीत से मुक्ति देता है। लेकिन बसंत के आगमन के पहले आये तूफान को देख कर बुलबुल जो अपने तृण के पिंजरे में कैद है, और घबरा जाता है, यह सोच रहा है कि शीत का कष्ट सहने के बाद यह तूफान अब कौन सी आफत ले के आ रहा है ?

ग़ालिब, सुखकर बसंत के पहले जो आंधी , तूफान और बारिश आ जाती है की ओर इशारा कर रहे है। यह तूफान दुःख के कुछ झटकों का प्रतीक है। थोड़ा डरा देता है। थोड़ा सहमा भी देता है। इसी भय को इंगित करते हुये डरे हुए बुलबुल को यह शेर ढांढस बंधाता है कि यह तूफान तो आना ही है पर यह अधिक देर तक टिकने वाला नहीं है।  बसंत को तो आना ही है। ऋतु चक्र में वह भी तो है। बस थोड़ी हिम्मत और आत्मविश्वास फिर तो यह तूफान पार और दरवाज़े पर बसंत का आगमन !

© विजय शंकर सिंह

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