Wednesday, 25 April 2018

Ghalib - Unhe sawaal pe jo'ame junuun hai kyun ladiye / उन्हें सवाल पे जोअमे जुनूँ है क्यूं लड़िये - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 66.
उन्हें सवाल पे जोअमे जुनूँ है, क्यूं लड़िये,
हमें जवाब से कतअये नज़र है क्या कहिये !!

Unhe sawaal pe jo'ame junoon hai kyun ladiye,
Hamen jawaab se qat'aye nazar hai kyaa kahiye !!
- Ghalib

जोअमे जुनूँ   -  दर्प से भरा हुआ.
क़ता ए नज़र - नज़रअंदाज़ करना.

उनके सवाल उन्माद और घमंड से भरे हुये है। वे जब भी सवाल करते हैं तो उसमें उनका अहंकार दिखता है। ऐसे लोगों के ऐसे अहंकारी सवालों का उत्तर हम क्या दें ? वे ऐसे ही दर्पयुक्त सवाल पूछने के आदी हैं और हम ऐसे सवालों को नज़रअंदाज़ करने के । इन सवालों पर क्या लड़ना औऱ क्यों लड़ना । अब यह तो अपनी अपनी आदत है। इस पर क्या कहिये !

प्रश्नों के भी उद्देश्य होते है। कुछ प्रश्न जिज्ञासु भाव, तो कुछ प्रश्न अहंकार की अभिव्यक्ति होते हैं।  अहंकार से भरे प्रश्न का उद्देश्य ही अपना दर्प महत्व और घमंड दिखाना होता है। गालिब का यह शेर, इसी प्रसंग में हैं ।

उनकी बातें, उनका लहजा, उनके सवाल ये सब घमंड से भरे पड़े हैं। यह अहंकार की अभिव्यक्ति है। यह सवाल नहीं दर्पोक्ति है। जब सवाल पूछने में ही जिज्ञासा और उत्सुकता के बजाय अहंकार दिखने लगे तो ऐसे लोगों के सवालों का क्या उत्तर दिया जाय । उचित यही है कि ऐसे घमंडी सवालों को नजरअंदाज कर दिया जाय। ग़ालिब का यह नसीहत भरा शेर, आज भी मौजूं है।

© विजय शंकर सिंह

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