Friday, 13 April 2018

स्मरण - 13 अप्रैल 1919 जलियांवाला बाग - सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता - जलियांवाला बाग में वसंत / विजय शंकर सिंह


जलियांवाला बाग, 13 अप्रैल 1919,
जलियांवाला बाग , वहशत भरे गोलीकांड का एक जीवंत स्मारक है।आज भी वहां वह दीवाल और कुआं मौजूद है जिसपर गोली से जान बचाने के लिये चढ़ कर पार करते और कुवें में कूदते हुए लोगों के निशान मौजूद है। यह लोमहर्षक घटना भारत के स्वाधीनता संग्राम में एक निर्णायक मोड़ है। यह इतिहास का एक टर्निंग पॉइंट है। पंजाब जल उठा था। मार्शल लॉ लागू कर दिया गया था। देश भर में व्यापक प्रतिक्रिया हो रही थी। महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदत्त पुरस्कार कैसर ए हिन्द वापस कर दिया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड , सर की उपाधि लौटा दी। हज़ार के लगभग निर्दोष और निहत्थे लोग ब्रिटिश दरिंदगी के केवल इस लिये शिकार हुये कि वे ब्रिटिश राज में आत्मनिर्णय का अधिकार मांग रहे थे। इसी घटना के बाद स्वाधीनता प्राप्ति की निर्णायक लड़ाई परवान चढ़ी।

जलियांवाला बाग ने न केवल आज़ादी के लड़ाकों, और जनमानस को ही आंदोलित किया बल्कि लेखकों, कवियों आदि को भी मथ डाला। बहुत से नाटक, कवितायें, लेख, कहानियां, हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी पंजाबी आदि भाषाओं में लिखी गईं। ऐसी ही एक कविता, ' #जलियांवाला_बाग_में_वसंत ' , हिंदी कवि #सुभद्रा_कुमारी_चौहान द्वारा लिखी गयी है।


13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी का दिन था। यह पंजाब का एक बड़ा पर्व होता है। उसी के आयोजन में चारों तरफ दीवालों और केवल एक ही निकास वाले रास्ते से घिरे एक छोटे से खुले मैदान में एक जनसभा चल रही थी। उसी को तितर बितर करने के लिये जनरल डायर ने सारी मानवता और कानूनी मर्यादाओं को ताक पर रख कर गोली चलाई। कहते हैं हज़ार लोग उस बर्बर कृत्य में मारे गये पर सरकार आंकड़ा 400 के लगभग का है। फासिस्ट विरोधी ब्रिटिश राज का यह फासिस्ट चेहरा था।
अब आप यह प्रसिद्ध कविता पढ़ें।
****


जलियाँवाला बाग में बसंत
( सुभद्रा कुमारी चौहान )

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है।
ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।

वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,
दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना।
कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गावें,
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें।

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले।
किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,
कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर।
आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।
तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।

यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।
***

सुभद्रा कुमारी चौहान ( 16 अगस्त 1914 - 15 फरवरी 1948 ) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है।
उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में ठा रामनाथसिंह के परिवार में हुआ था। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। 1919 में खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान द्वारा 'मिला तेज से तेज' नामक पुस्तके लिखी गयी है जिसे हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम की सेनानी भी थीं। डॉo मंगला अनुजा की पुस्तक सुभद्रा कुमारी चौहान उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाश डालती है। १५ फरवरी १९४८ को एक कार दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया था।

'मंगला अनुज जिन्होंने इन पर शोध किया है के अनुसार,
" बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा। इस में उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईर्ष्या, अंगूठी की खोज, चढ़ा दिमाग, व वेश्या की लड़की कुल ९ कहानियां हैं। इन सब कहानियों का मुख्य स्वर पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है। 'सीधे साधे चित्र' सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व अंतिम कथा संग्रह है। इसमें कुल १४ कहानियां हैं। रूपा, कैलाशी नानी, बिआल्हा, कल्याणी, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी व मंगला - ८ कहानियों की कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्यायें हैं। हींगवाला, राही, तांगे वाला, एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्ट्रीय विषयों पर आधारित हैं। "
सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं!

भारतीय तटरक्षक सेना ने 28 अप्रैल 2006 को सुभद्रा कुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है। भारतीय डाकतार विभाग ने 6 अगस्त 1976 को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में 25 पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है।



© विजय शंकर सिंह

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर!
    https://rahulghosh5.blogspot.com/2020/04/blog-post_62.html

    ReplyDelete