ग़ालिब - 65.
उन्हें मंज़ूर अपने जख्मियों का देख आना था,
उठे थे सैर ए गुल को, देखना शोखी बहाने की !!
Unhe manzoor apne zakhmiyon kaa dekh aanaa thaa,
Uthe the sair e gul ko, dekhnaa shokhii bahaane kee.
- Ghalib
उठे तो वो अपने से घायलों की दशा का जायज़ा लेने को , पर फुलवारी की सैर तो एक बहाना थी।
यह एक कठिन और बहुत जटिल अर्थ समेटे हुये शेर है। अंग्रेज़ी में एक शब्द है सैडिज़्म। परपीड़ा में ही आंनद प्राप्त करना। मनोविज्ञान इसे एक प्रकार की ग्रन्थि complex मानता है। इस शेर में उसी ग्रन्थि की ओर ग़ालिब का इशारा है। प्रेयसी को यहां परपीड़क रूप में देखा गया है। वह अपने प्रेमी यानी को पीड़ा में देख कर आंनदित होते हैं। वह जब उपवन में घूमते जाती है तो उसका उद्देश्य सैर करना नहीं बल्कि उपवन में उसके जो चाहने वाले हैं उसे तड़पाना और जिन्हें वह घायल कर चुकी है उसे देखना है। यह देखना भी सहानुभूति की नज़र से नहीं बल्कि उस पीड़ा से खुद को आंनदित करना है। अपने प्रेमियों की इस तड़प से वह आंनदित होती है। प्रेयसी को प्रेमी की तड़प में ही आंनद मिल रहा है। यह प्रेम का उलाहना भाव भी है। उपालंभ है।
इस शेर को सैडिज़्म के उदाहरण के रूप में नहीं प्रस्तुत किया जा सकता है। सैडिज़्म, के पीछे ईर्ष्या, विद्वेष, आदि हिंसक मनोभाव प्रभावी होते हैं पर यहां प्रेम है, प्रेयसी को पाने की लालसा है, ललक है और उस ललक, कामना की जब उपेक्षा प्रेयसी द्वारा होती है तो वह परपीड़क नज़र आती है। सैडिज़्म का उपयोग मैंने दूसरे की पीड़ा में सुख ढूंढने के अर्थ में ज़रूर किया है, पर वह हिंसा भाव बिल्कुल नहीं है । यह प्रेम की एक नियति भी है। इसी से मिलती जुलती महादेवी वर्मा की यह पंक्तियाँ पढ़ें ,
पर शेष नहीं होगी, मेरे प्राणों की यह क्रीड़ा,
तुमको पीड़ा में ढूंढा, तुममे ढूंढूंगी पीड़ा !!
( महादेवी वर्मा )
महादेवी ने भी प्रिय को पीड़ा में ढूंढने और फिर उस मिलन में भी पीड़ा ढूंढने की अजब बात कहती है। प्रेम पीड़ा देता है पर उस पीड़ा के इच्छुक भी कम नहीं है। प्रेम की पीड़ा का आनंद तो प्रेमी युगल ही जान सकते हैं।
© विजय शंकर सिंह
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