Monday, 16 April 2018

Ghalib - Ishq ne tabiiat se zeest kaa mazaa paayaa / इश्क़ ने तबीअत से ज़ीस्त का मज़ा पाया - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 57
इश्क़ ने तबीअत से ज़ीस्त का मज़ा पाया,
दर्द की दवा पायी, दर्द बे दवा पाया !!

Ishq ne tabeeat se zeest kaa mazaa paayaa,
Dard kii dawaa paayee, dard be dawaa payaa !!
- Ghalib.

ज़ीस्त   - जीवन

प्रेम ने हृदय को जीवन का आनन्द दिया। हृदय की वेदना का उपचार तो प्रेम से हुआ,पर प्रेम ने जो वेदना हृदय को दी है उसका उपचार क्या है।

यहां प्रेम आंनद दायक भी है और फिर वह खुद में भी एक वेदना बन जाता है। जीवन की शुष्कता का निदान तो प्रेम ने कर दिया, जीवन मे आनन्द भी प्राप्त हो गया, पर प्रेम ने जो व्याधि, लत, या रोग लगा दिया उसका उपचार क्या और कैसे है यह नहीं कहा जा सकता है। प्रेम जो वेदना देता है, उसका उपचार नहीं है। वह दर्द बे दवा है।

लेकिन ग़ालिब ने प्रेम के एक और पहलू की बात भी इस शेर में कही है। उनके अनुसार,  प्रेम वेदनामय ही नहीं है। यह आंनद का भी श्रोत है। यह आंनद, प्रेयसी के प्रति लगाव के कारण । यह सदैव दुख ही देता है ऐसी बात भी नहीं है।

एक आलोचक ग़ालिब के इस शेर के पहले मिसरे को आध्यात्म से जोड़ कर देखते हैं। उनका कहना है कि, प्रेम ने जिस हृदय की वेदना का उपचार किया वह अपने अस्तित्व को पहचानने की पीड़ा थी। प्रेम ने मुझे मेरे अस्तित्व, वज़ूद को जानने की जो पीड़ा थी, का उपचार कर के जीवन का आनन्द दे दिया।
इश्क़ पर ही मीर का यह शेर पढें ।

मार रहता है उसको आखिरकार,
इश्क़ को जिस से प्यार होता है !!
( मीर तक़ी मीर )

प्रेम जिसे हो जाता है उसे अंततोगत्वा समाप्त ही कर देता है।

यहां मीर ग़ालिब से अलग हैं। मीर ने प्रेम में केवल वेदना देखी। कठिनाई, रुदन और आंसू देखे। उन्होंने इन तारीकी मनोभावों के बीच आंनद का प्रकाश नहीं देखा। जबकि ग़ालिब ने आंनद देखा। और वेदना भी तब दिखी जब आंनद का अभाव दिखा ।
मीर का एक और प्रसिद्ध शेर पढ़ें।

इब्तदा ए इश्क़ है रोता है क्या,
आगे आगे देखिये होता है क्या !!
( मीर तक़ी मीर )

अभी तो प्रेम का प्रारंभ हुआ है। अभी से क्या व्यथित हो कर रोना। अभी आगे आगे देखना क्या क्या होता है ।

© विजय शंकर सिंह

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